कच्चे धागों की क़फ़स से रिहा
छोड़ दिया उन्हें कुछ देर
मैंने आज़.....।
वो सिलवटें लेते हुए हर रोज़
की तरह आज़ भी बार बार
चूम लेते मेरे रुख़सार को
किसी बहाने से.....।
मगर उनकी इस बचकानी
हरकतों पे कुछ कहा नहीं
मैंने आज़.....।
उन्हें मचलने दिया खुली
फिज़ाओं में कुछ
देर यूं हीं.....।
सवर के उन्हें हवाओं संग
बिखर जानें दिया कुछ
देर यूं हीं.......।
बना के पोनी उनकी
उन्हें क़ैद नहीं किया
मैंने आज़......।
छूने दिया अपने रुख़सार को
कुछ देर यूं हीं......।
मेरे झुमकों की लड़ियों में फशके
ख़ुद को तंग करने दिया
कुछ देर यूं हीं....।
हाथों की अंगुलियों में दबा के
बड़ी बेरहमी से कानों के पीछे
उन्हें फंसाया नहीं
मैंने आज़.....।
ये गेशुओं की उलझी हुई लटें
पसंद है मुझे कहा था
किसी ने.....।
उन्हें छोड़ दिया उलझा हुआ
ही आज़ मगर उसे बताया नहीं
मैंने आज़......।
~S.🍁akshi
छोड़ दिया उन्हें कुछ देर
मैंने आज़.....।
वो सिलवटें लेते हुए हर रोज़
की तरह आज़ भी बार बार
चूम लेते मेरे रुख़सार को
किसी बहाने से.....।
मगर उनकी इस बचकानी
हरकतों पे कुछ कहा नहीं
मैंने आज़.....।
उन्हें मचलने दिया खुली
फिज़ाओं में कुछ
देर यूं हीं.....।
सवर के उन्हें हवाओं संग
बिखर जानें दिया कुछ
देर यूं हीं.......।
बना के पोनी उनकी
उन्हें क़ैद नहीं किया
मैंने आज़......।
छूने दिया अपने रुख़सार को
कुछ देर यूं हीं......।
मेरे झुमकों की लड़ियों में फशके
ख़ुद को तंग करने दिया
कुछ देर यूं हीं....।
हाथों की अंगुलियों में दबा के
बड़ी बेरहमी से कानों के पीछे
उन्हें फंसाया नहीं
मैंने आज़.....।
ये गेशुओं की उलझी हुई लटें
पसंद है मुझे कहा था
किसी ने.....।
उन्हें छोड़ दिया उलझा हुआ
ही आज़ मगर उसे बताया नहीं
मैंने आज़......।
~S.🍁akshi