📚"शारदा निर्मला" शिक्षा अभियान राष्ट्र निर्माण✍✍🇮🇳


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"शारदा निर्मला" शिक्षा अभियान
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ध्यान से सुनेगा आपके लिए बहुत जरूरी है


*राम..!*

शब्द में दो अर्थ व्यंजित हैं,

*सुखद होना..!*
*और ठहर जाना..!!*

अपने मार्ग से भटका हुआ कोई क्लांत पथिक किसी सुरम्य स्थान को देखकर ठहर जाता है।

हमने सुखद ठहराव का अर्थ देने वाले जितने भी शब्द गढ़े सभी में *राम* अंतर्निहित है..

यथा,

*आराम..!*
*विराम..!*
*विश्राम..!*
*अभिराम..!*
*उपराम..!*
*ग्राम..!*

जो *रमने* के लिए *विवश* कर दे वह *राम..!*

जीवन की आपाधापी में पड़ा *अशांत* मन जिस आनंददायक *गंतव्य* की सतत तलाश में है, वह गंतव्य है *राम..!*

भारतीय मन हर स्थिति में *राम* को *साक्षी* बनाने का आदी है।

👉दुःख में,
*हे राम..!*

👉पीड़ा में,
*हे राम..!*

👉लज्जा में,
*हाय राम..!*

👉अशुभ में,
*अरे राम राम..!*

👉अभिवादन में,
*राम राम..!*

👉शपथ में,
*रामदुहाई..!*

👉अज्ञानता में,
*राम जाने..!*

👉अनिश्चितता में,
*राम भरोसे..!*

👉अचूकता के लिए,
*रामबाण..!*

👉मृत्यु के लिए,
*रामनाम सत्य..!*

👉सुशासन के लिए,
*रामराज्य..!*

जैसी अभिव्यक्तियां पग-पग पर *राम* को साथ खड़ा करतीं हैं।

*राम* भी इतने सरल हैं कि *हर जगह खड़े हो जाते हैं।*

हर भारतीय उन पर अपना अधिकार मानता है।

👉जिसका कोई नहीं उसके लिए राम हैं-
*निर्बल के बल राम..!*

असंख्य बार देखी सुनी पढ़ी जा चुकी *रामकथा* का आकर्षण कभी नहीं खोता।

राम पुनर्नवा हैं।

हमारे भीतर जो कुछ भी अच्छा है, वह *राम* है।

जो *शाश्वत* है, वह *राम* हैं।

सब-कुछ लुट जाने के बाद जो बचा रह जाता है *वही तो राम है।*

घोर निराशा के बीच जो उठ खड़ा होता है *वह भी राम ही है।*

*सीमाओं के बीच छुपे असीम को देखना हो तो राम को देखिए..!!*
*🙏जय श्री राम..🚩*

*निवेदन......*  आप कोशिश करें कि आज आपकी वजह से आपके परिजनों के चेहरों पर मुस्कान आये !

*इसलिए.....जब भी करें बात मुस्कुराया करिये*
*_सबका मंगल हो_*
😊🪔🪔🪔🪔🌹

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राम नाम अति मीठा है कोई गाके देख ले...
〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰
एक बार एक राजा ने गाव में रामकथा करवाई और कहा की सभी  ब्राह्मणो को रामकथा के लिए आमत्रित किया सभी नगर वाशी को आमंत्रित किया , राजा ने सबको रामकथा पढने के लिए  यथा स्थान बिठा दिया |

एक दलित अंगुटा छाप था उसको पठना लिखना कुछ आता नही था ,  वह दलित सबसे पीछे बैठ गया , और सोचा की जब पास वाला पन्ना पलटेगा तब मैं भी पलट दूंगा।

काफी देर देखा की पास बैठा व्यक्ति पन्ना नही पलट रहा है, उतने में राजा श्रदा पूरवक सबको नमन करते चक्कर लगाते लगाते उस सज्जन के समीप आने लगे, तो उस ने एक ही रट लगादी
की "अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा "
"अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा "

उस सज्जन की ये बात सुनकर पास में बैठा व्यक्ति भी रट लगाने लग गया  ,
की "तेरी गति सो मेरी गति
तेरी गति सो मेरी गति ,"

उतने में तीसरा व्यक्ति बोला ,
" ये पोल कब तक चलेगी !
ये पोल कब तक चलेगी !

चोथा बोला
जबतक चलता है चलने दे ,
जबतक चलता है चलने दे ,
वे चारो अपने सिर निचे किये इस तरह की रट लगाये बैठे है
की,
1 "अब राजा पूछेगा तो क्या कहूँगा..
2 "तेरी गति सो मेरी गति..
3 "ये पोल कब तक चलेगी..
4 "जबतक चलता है चलने दे..

जब राजा ने उन  चारो के स्वर सुने , राजा ने पूछा की ये सब क्या गा रहे है, ऐसे प्रसंग तो रामायण में हम ने पहले कभी नही सुना ,

उतने में , एक ब्राह्मण देवता उठे और बोले महाराज ये सब रामायण का ही प्रसंग बता रहे है ,
पहला व्यक्ति है ये बहुत विद्वान है ये , बात सुमन ने ( अयोध्याकाण्ड ) में कही , राम लक्ष्मण सीता जी को वन में छोड़ , घर लोटते है तब ये बात सुमन कहता है की
"अब राजा  पूछेंगे तो क्या कहूँगा ?
अब राजा  पूछेंगे तो क्या कहूँगा ?

फिर पूछा की ये दूसरा कहता है की तेरी गति सो मेरी गति , महात्मा बोले महाराज ये तो इनसे भी ज्यादा  विद्द्वान है ,( किष्किन्धाकाण्ड ) में जब हनुमान जी, राम लक्ष्मण जी को अपने दोनों कंधे पर बिठा कर सुग्रीव के पास गए तब ये बात राम जी ने कही थी की , सुग्रीव ! तेरी गति सो मेरी गति , तेरी पत्नीको बाली ने रख लिया और मेरी पत्नी का रावण ने हरण कर लिया..

राजा ने आदरसे फिर पूछा , की महात्मा जी ! ये तीसरा बोल रहा है की ये पोल कब तक चलेगी , ये बात कभी किसी संत ने नही कही ? , बोले महाराज ये तो और भी ज्ञानी है ,( लंकाकाण्ड ) में अंगद जी ने रावण की भरी सभा में अपना पैर जमाया  , तब ये प्रसंग मेधनाथ ने अपने पिता रावन से किया की, पिता श्री ! ये पोल कब तक चलेगी , पहले एक वानर आया और वो हमारी लंका जला कर चला गया , और अब ये कहता है की मेरे पैर को कोई यहाँ से हटा दे तो भगवान श्री राम बिना युद्द किये वापिस   लौट जायेंगे।

फिर राजा बोले की ये चोथा बोल रहा है ? वो बोले  महाराज ये इतना बड़ा विद्वान है की कोई इनकी बराबरी कर ही नही सकता ,ये मंदोदरी की बात कर रहे है , मंदोदरी ने कई बार रावण से कहा की , स्वामी ! आप जिद्द छोड़, सीता जी को आदर सहित राम जी को सोप दीजिये अन्यथा अनर्थ हो जायगा ,
तब ये बात रावण ने मंदोदरी से कही
की ( जबतक चलता है चलने दे )

मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू है ,अगर में राम के हाथो मारा गया तो मेरी मुक्ति हो जाएगी , इस अदम शरीर से भजन -वजन तो कुछ होता नही , और में युद्द जित गया तो त्रिलोकी में भी मेरी जय जय कार हो जाएगी

राजा इन सब बातोसे चकित रह गए बोले की आज हमे ऐसा अध्बुत प्रसंग सूनने को मिला की आज तक हमने नही सुना , राजा इतने प्रसन्न  हुए की उस ब्राह्मण देवता से बोले की आप कहे वो दान देने को राजी हु ,
उस ब्राह्मण देवता ने उन अनपढ़ अंगुटा  छाप  लोगों को अनेको दान व्यापार दिल वादिए ,

इन सब बातो का एक ही सार है  की कोई अज्ञानी , कोई नास्तिक , कोई कैसा भी क्यों न हो , रामायण , भागवत ,जैसे महान ग्रंथो को श्रदा पूरवक छूने मात्र से ही सब संकटो से मुक्त हो जाते है ,
और भगवान का सच्चा प्रेमी हो जाये उन की तो बात ही क्या है , मत पूछिये की वे कितने धनि हो जाते है

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श्री हमारे सनातन धर्म में गोमाता पुजय एवं वांछित फल देने वाली है अतः अवश्य ही सभी कों अपने घरों में गाय अवश्य ही रखना चाहिए जहां गो वहां सभी तीर्थ निवास करते हैं एवं गो दुग्ध दही गोमूत्र गोबर गोघिरत से ही यज्ञ सम्पन्न हो ता है इस के बिना यज्ञ कर्म होते ही नहीं बल्कि फ़ल की प्राप्ति नहीं होती है यह बात शारदा निर्मला शिक्षा अभियान ने कहा कि गाय व भैंस के दूध में अंतर
जो बहुत कम लोग जानते हैं !

भैंस अपने बच्चे से पीठ फेर कर बैठती है चाहे उसके बच्चे को कुत्ते खा जायें वह नहीं बचायेगी,

जबकि गाय के बच्चे के पास अनजान आदमी तो क्या शेर भी आ जाये तो जान दे देगी, परन्तु जीते जी बच्चे पर आँच नही आने देगी।
इसीलिए उसके दूध में स्नेह का गुण भरपूर होता है।

भैंस को गन्दगी पसन्द है, कीचड़ में लथपथ रहेगी,,

पर गाय अपने गोबर पर भी नहीं बैठेगी उसे स्वच्छता प्रिय है।

भैंस को घर से 2 किमी दूर तालाब में छोड़कर आ जाओ वह घर नहीं आ सकती उसकी याददास्त जीरो है।

गाय को घर से 5 किमी दूर छोड़ दो।
वह घर का रास्ता जानती है,आ जायेगी।
गाय के दूध में स्मृति तेज है।

दस भैंसों को बाँधकर 20 फुट दूर से उनके बच्चों को छोड़ दो, एक भी बच्चा अपनी माँ को नहीं पहचान सकता,

जबकि गौशालाओं में दिन भर गाय व बछड़े अलग-अलग शैड में रखते हैं, सायंकाल जब सबका माता से मिलन होता है तो सभी बच्चे (हजारों की स॔ख्या में) अपनी अपनी माँ को पहचान कर दूध पीते हैं, ये है गाय दूध की याददास्त।

जब भैंस का दूध निकालते हैं तो भैंस सारा दूध दे देती है,

परन्तु गाय थोड़ा-सा दूध ऊपर चढ़ा लेती है, और जब उसके बच्चे को छोड़ेंगे तो उस चढ़ाये दूध को उतार देती है।
ये गुण माँ के हैं जो भैंस मे नहीं हैं।

गली में बच्चे खेल रहे हों और भैंस भागती आ जाये तो बच्चों पर पैर अवश्य रखेगी...

लेकिन गाय आ जाये तो कभी भी बच्चों पर पैर नही रखेगी।

भैंस धूप और गर्मी सहन नहीं कर सकती...

जबकि गाय मई जून में भी धूप में बैठ सकती है।

भैंस का दूध तामसिक होता है....
जबकि गाय का सात्विक।

भैंस का दूध आलस्य भरा होता है, उसका बच्चा दिन भर ऐसे पड़ा रहेगा जैसे भाँग खाकर पड़ा हो।
जब दूध निकालने का समय होगा तो मालिक उसे उठायेगा...

परन्तु गाय का बछड़ा इतना उछलेगा कि आप रस्सा खोल नहीं पायेंगे।

फिर भी लोग भैंस खरीदने में लाखों रुपए खर्च करते हैं....
जबकि गौमाता का दूध अमृत समान होता है।। अतः अवश्य ही गो सेवा से ही अपना कल्याण कर सकते है सनातन धर्म एवं धर्म

जय गौमाता

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*22 अक्टूबर रविवार 2023*

*मनुष्य के चेहरे पर जो भाव उसकी*
*आँखों के द्वारा प्रकट होते*
*वे उसके मन की अनुकृति होते हैं*
*उन्हें कोई भी नहीं छुपा सकते*
*कमाई की परिभाषा*
*कभी तय नहीं होती*
*धन, तजुर्बा, रिश्ते, सम्मान और*
*पैसा मानव इतिहास की सबसे*
*खराब खोज है लेकिन*
*मनुष्य के चरित्रको परखने की*
*सबसे विश्वसनीय सामग्री है*
*मोमबत्तियों की ऊंचाई*
*भिन्न हो सकती है लेकिन वे*
*समान रोशनी देती हैं*
*आपका पद नहीं आपकी*
*योग्यता आपको चमकाती है*


*स्त्री के 3 स्तर होते है।*
****
*कन्या,पत्नी,और माँ ..*

*कन्या -सत्य है ।*
*पत्नी - प्रेम है ।*
*माँ - करूणा है ।*

*तुलसीदासजी ने भी माँ के*
*3 स्तर बताये हैं मानस में...*

*सुंदर सहज सुसील सयानी।*
*नाम उमा अंबिका भवानी ।।*

*कन्या-उमा है-सहज सुंदर है,*

*पत्नी-अंबिका है-सुशील है-सुंदर स्वभाव*
*वाली है ।माँ-भवानी है-सयानी है-समझदार है।*

* मातृ शक्ति की जय हो *


*100. जलोदरी-* ब्रह्मांड में निवास करने वाली
*101. शिवदूती-* भगवान शिव की राजदूत
*102. करली-* हिंसक
*103. अनन्ता-* विनाश रहित
*104. परमेश्वरी-* प्रथम देवी
*105. कात्यायनी-* ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय
*106. सावित्री-* सूर्य की बेटी
*107. प्रत्यक्षा-* वास्तविक
*108. ब्रह्मवादिनी-* वर्तमान में हर जगह वास करने वाली।।
🕉️
*सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।*
*शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।*

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🕉️ *मां दुर्गा के 108 नाम और उनके अर्थ🕉️:-*

*1. सती-* अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली
*2. साध्वी-* आशावादी
*3. भवप्रीता-* भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली
*4. भवानी-* ब्रह्मांड में निवास करने वाली
*5. भवमोचनी-* संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली
*6. आर्या-* देवी
*7. दुर्गा-* अपराजेय
*8. जया-* विजयी
*9. आद्य-* शुरुआत की वास्तविकता
*10. त्रिनेत्र-* तीन आंखों वाली
*11. शूलधारिणी-* शूल धारण करने वाली
*12. पिनाकधारिणी* - शिव का त्रिशूल धारण करने वाली
*13. चित्रा-* सुरम्य, सुंदर
*14. चण्डघण्टा-* प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली
*15. सुधा-* अमृत की देवी
*16. मन-* मनन-शक्ति
*17. बुद्धि-* सर्वज्ञाता
*18. अहंकारा-* अभिमान करने वाली
*19. चित्तरूपा-* वह जो सोच की अवस्था में है
*20. चिता-* मृत्युशय्या
*21. चिति-* चेतना
*22. सर्वमन्त्रमयी-* सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली
*23. सत्ता-* सत-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है
*24. सत्यानंद स्वरूपिणी-* अनन्त आनंद का रूप
*25. अनन्ता-* जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं
*26. भाविनी-* सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत
*27. भाव्या-* भावना एवं ध्यान करने योग्य
*28. भव्या-* कल्याणरूपा, भव्यता के साथ
*29. अभव्या-* जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
*30. सदागति-* हमेशा गति में, मोक्ष दान
*31. शाम्भवी-* शिवप्रिया, शंभू की पत्नी
*32. देवमाता-* देवगण की माता
*33. चिन्ता-* चिन्ता
*34. रत्नप्रिया-* गहने से प्यार करने वाली
*35. सर्वविद्या-* ज्ञान का निवास
*36. दक्षकन्या-* दक्ष की बेटी
*37. दक्षयज्ञविनाशिनी-* दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली
*38. अपर्णा-* तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली
*39. अनेकवर्णा-* अनेक रंगों वाली
*40. पाटला-* लाल रंग वाली
*41. पाटलावती-* गुलाब के फूल
*42. पट्टाम्बरपरीधाना-* रेशमी वस्त्र पहनने वाली
*43. कलामंजीरारंजिनी-* पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली
*44. अमेय-* जिसकी कोई सीमा नहीं
*45. विक्रमा-* असीम पराक्रमी
*46. क्रूरा-* दैत्यों के प्रति कठोर
*47. सुन्दरी-* सुंदर रूप वाली
*48. सुरसुन्दरी-* अत्यंत सुंदर
*49. वनदुर्गा-* जंगलों की देवी
*50. मातंगी-* मतंगा की देवी
*51. मातंगमुनिपूजिता-* बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय
*52. ब्राह्मी-* भगवान ब्रह्मा की शक्ति
*53. माहेश्वरी-* प्रभु शिव की शक्ति
*54. इंद्री-* इंद्र की शक्ति
*55. कौमारी-* किशोरी
*56. वैष्णवी-* अजेय
*57. चामुण्डा-* चंड और मुंड का नाश करने वाली
*58. वाराही-* वराह पर सवार होने वाली
*59. लक्ष्मी-* सौभाग्य की देवी
*60. पुरुषाकृति-* वह जो पुरुष धारण कर ले
*61. विमिलौत्त्कार्शिनी-* आनन्द प्रदान करने वाली
*62. ज्ञाना-* ज्ञान से भरी हुई
*63. क्रिया-* हर कार्य में होने वाली
*64. नित्या-* अनन्त
*65. बुद्धिदा-* ज्ञान देने वाली
*66. बहुला-* विभिन्न रूपों वाली
*67. बहुलप्रेमा-* सर्व प्रिय
*68. सर्ववाहनवाहना-* सभी वाहन पर विराजमान होने वाली
*69. निशुम्भशुम्भहननी-* शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
*70. महिषासुरमर्दिनि-* महिषासुर का वध करने वाली
*71. मसुकैटभहंत्री-* मधु व कैटभ का नाश करने वाली
*72. चण्डमुण्ड विनाशिनि-* चंड और मुंड का नाश करने वाली
*73. सर्वासुरविनाशा-* सभी राक्षसों का नाश करने वाली
*74. सर्वदानवघातिनी-* संहार के लिए शक्ति रखने वाली
*75. सर्वशास्त्रमयी-* सभी सिद्धांतों में निपुण
*76. सत्या-* सच्चाई
*77. सर्वास्त्रधारिणी-* सभी हथियारों धारण करने वाली
*78. अनेकशस्त्रहस्ता-* कई हथियार धारण करने वाली
*79. अनेकास्त्रधारिणी-* अनेक हथियारों को धारण करने वाली
*80. कुमारी-* सुंदर किशोरी
*81. एककन्या-* कन्या
*82. कैशोरी-* जवान लड़की
*83. युवती-* नारी
*84. यति-* तपस्वी
*85. अप्रौढा-* जो कभी पुराना ना हो
*86. प्रौढा-* जो पुराना है
*87. वृद्धमाता-* शिथिल
*88. बलप्रदा-* शक्ति देने वाली
*89. महोदरी-* ब्रह्मांड को संभालने वाली
*90. मुक्तकेशी-* खुले बाल वाली
*91. घोररूपा-* एक भयंकर दृष्टिकोण वाली
*92. महाबला-* अपार शक्ति वाली
*93. अग्निज्वाला-* मार्मिक आग की तरह
*94. रौद्रमुखी-* विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा
*95. कालरात्रि-* काले रंग वाली
*96. तपस्विनी-* तपस्या में लगे हुए
*97. नारायणी-* भगवान नारायण की विनाशकारी रूप
*98. भद्रकाली-* काली का भयंकर रूप
*99. विष्णुमाया-* भगवान विष्णु का जादू


सत्संग ज्ञान शास्त्र वचन सार

*हरि तजि और भजिये काहि ?*
*नाहिनै कोउ राम सो ममता प्रनत पर जाहि ।।१।।*
*कनककसिपु बिरंचि को जन करम, मन अरु बात ।*
*सुतहिं दुखवत बिधि न बरज्यो, काल के घर जात ।।२।।*
*संभु-सेवक जान जग, बहु बार दिये दस सीस ।*
*करत राम बिरोध सो सपनेहु न हटक्यो ईस ।।३।।*
*और देवन की कहा कहौं, स्वारथहिके मीत ।*
*कबहुँ काहु न राख लियो, कोउ सरन गयउ सभीत ।।४।।*
*को न सेवत देत संपति, लोकहु यह रीति ।*
*दासतुलसी दीन पर एक राम ही की प्रीति ।।५।।*

*भावार्थ—* भगवान् श्रीहरि को छोड़कर और किसका भजन करें ? श्रीरघुनाथजी के समान ऐसा कोई भी नहीं है जिसकी दीन शरणागतों पर ममता हो *।।१।।*
( प्रमाण सुनिये ) हिरण्यकशिपु ब्रह्माजी का कर्म , मन और वचन से भक्त था, किन्तु ब्रह्माजी ने उसके काल को जानते हुये भी उसे पुत्र को ताड़ना देते समय नहीं रोका और फलस्वरुप वह यमलोक चला गया *।।२।।*
संसार जानता है कि रावण शिवजी का भक्त था और उसने कई बार अपने सिर काट-काटकर शिवजी को अर्पित किये थे; किन्तु जब वह श्रीरघुनाथजी के साथ वैर करने लगा तब आपने उसे स्वप्न में भी न रोका ( यह जानते थे कि श्रीरामजी के साथ बैर करने से यह मारा जायगा ) *।।३।।*
(जब ब्रह्माजी और शिवजी का यह हाल है तब ) और देवताओं की तो बात ही क्या कही जाय ? वे तो स्वार्थ के मित्र हैं ही । उनमें से किसी ने भी कभी भयभीत शरणागत की रक्षा नहीं की *।।४।।*
सेवा करने से कौन धन नहीं देता है ? ( सभी देते हैं ) यह तो दुनिया की चाल ही है। किन्तु हे तुलसीदास ! दीनों पर तो एक रघुनाथजी का ही स्नेह है । ( वे बिना ही सेवा किये केवल शरणागत होते ही अपना लेते हैं, देवताओं की भाँति सर्वाङ्गपूर्ण अनुष्ठान की अपेक्षा नहीं करते ) *।।५।।*

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सच्ची बात

पुरुष को हमेशा एक स्त्री का साथ चाहिए फिर वो चाहे मन्दिर हो या संसार

मंदिर में कृष्ण के साथ --> राधा
               राम के साथ --> सीता
            शंकर के साथ --> पार्वती

सुबह से रात तक मनुष्य को अपने हर काम में एक स्त्री की आवश्यकता होती ही है ।

       पढ़ते समय --> विद्या
                फिर --> लक्ष्मी
       और अंत में -->  शाँति
दिन की शुरुआत --> ऊषा के साथ,
दिन की समाप्ति --> संध्या से होती है.
   किन्तु काम तो --> अन्नपूर्णा के लिये ही करना है.

    रात यानी --> निशा के समय भी निंदिया रानी
     सोने के बाद --> सपना

मंत्रोच्चार के लिये --> गायत्री
          ग्रंथ पढ़ें तो --> गीता

  💞 मंदिर में भगवान के सामने 💞
          वंदना, पूजा, अर्चना
            आरती, आराधना
                और ये सब भी ...
   केवल --> श्रद्धा के साथ.

       अंधेरा हो तो  --> ज्योति

          लड़ाई लड़ने जायें तो -->
         जया और विजया

      बुढ़ापे में --> करुणा वो भी
                  --> ममता के साथ.

    गुस्सा आ जाए, तब --> क्षमा

   इसीलिए तो धन्य है --> स्त्री जाति
    जिसके  बगैर पुरुष अधूरा है.

समस्त नारी शक्ति को सादर प्रणाम
                💞🙏💞


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श्री महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन महाकाल लोक




🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕
एक बार शंकर पार्वती भ्रमण पर निकले।रास्ते में उन्होंने देखा कि एक तालाब में कई बच्चे तैर रहे थे , लेकिन एक बच्चा उदास मुद्रा में बैठा था।
🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕🛕
पार्वती जी ने शंकर जी से पूछा, यह बच्चा उदास क्यों है ?
📜📜📜📜📜📜📜📜📜
शंकर जी ने कहा,बच्चे को ध्यान से देखो।पार्वती जी ने देखा, बच्चे के दोनों हाथ नही थे,जिस कारण वो तैर नही पा रहा था। पार्वती जी ने शंकर जी से कहा कि आप शक्ति से इस बच्चे को हाथ दे दो ताकि वो भी तैर सके।
⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️⚜️
शंकर जी ने कहा,हम किसी के प्रारब्ध में हस्तक्षेप नही कर सकते हैं क्योंकि हर आत्मा अपने कर्मो के फल द्वारा ही अपना प्रारब्ध अदा करती है।
‼️‼️‼️‼️‼️‼️‼️‼️‼️
पार्वती ने बार बार विनती की। आखिरकर शंकर जी ने उसे हाथ दे दिए।वह बच्चा भी पानी में तैरने लगा।

एक सप्ताह बाद शंकर पार्वती फिर वहाँ से गुज़रे। इस बार मामला उल्टा था,सिर्फ वही बच्चा तैर रहा था और बाकी सब बच्चे बाहर थे।

पार्वती जी ने पूछा यह क्या है ?

शंकर जी ने कहा,ध्यान से देखो। देखा तो वह बच्चा दूसरे बच्चों को पानी में डुबो रहा था इसलिए सब बच्चे भाग रहे थे।शंकर जी ने जवाब दिया : हर व्यक्ति अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। भगवान किसी के कर्मो के फेर में नही पड़ते है।उसने पिछले जन्मो में हाथों द्वारा यही कार्य किया था इसलिए उसके हाथ नही थे।हाथ देने से पुनः वह दूसरों की हानि करने लगा है।प्रकृति नियम अनुसार चलती है ,किसी के साथ कोई पक्षपात नही।

"आत्माएँ जब ऊपर से नीचे आती हैं तो अच्छी ही होती हैं,कर्मो अनुसार कोई अपाहिज है तो कोई भिखारी,तो कोई झुग्गी में तो कोई बड़े महलों में रहता है लेकिन सब परिवर्तन शील है।अगर महलो में रहकर या पैसे के नशे में आज कोई बुरा काम करता है लेकिन भुगतान तो सबको करना ही पड़ेगा।"
🙏🏼

"शारदा निर्मला" शिक्षा अभियान

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अयोध्या में बनने वाले श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की दीवार पर बनने वाली 60 पेंटिंग्स के नमूने देखिए । भगवान राम पर बहुत खूबसूरत पेंटिंग बनाई गईं हैं। शांति से देखिए और दूसरों को भी दिखाइए।🚩जयश्रीराम👏👏👆


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🚨भारत में जाति व्यवस्था - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी लेख
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सन्दर्भ:-

●हाल के समय में भारत में जातिगत तनाव की स्थिति दृष्टिगत हुई है।

परिचय

●जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जो प्राचीन काल से भारतीय समाज में मौजूद है। वर्षों से लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं लेकिन फिर भी जाति व्यवस्था ने हमारे देश के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है।

●भारतीय समाज में सदियों से कुछ सामाजिक बुराईयां प्रचलित रही हैं और जाति व्यवस्था भी उन्हीं में से एक है। हालांकि, जाति व्यवस्था की अवधारणा में इस अवधि के दौरान कुछ परिवर्तन जरूर आया है और इसकी मान्यताएं अब उतनी रूढ़िवादी नहीं रही है जितनी पहले हुआ करती थीं, लेकिन इसके बावजूद यह अभी भी देश में लोगों के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर असर डाल रही है।

उत्पत्ति

●ऋग वैदिक कालीन वर्ण व्यवस्था ( व्यवसाय के आधार पर निर्धारण ) उत्तर वैदिक काल के आते आते जाति व्यवस्था (जन्म के आधार पर निर्धारण) में परिवर्तित हो गई थी।

●यह माना जाता है कि ये समूह हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि के निर्माता भगवान ब्रह्मा के द्वारा अस्तित्व में आए। भारत में जाति व्यवस्था लोगों को चार अलग-अलग श्रेणियों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र - में बांटती है।

●विकास सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक विकास के कारण जाति प्रथा की उत्पत्ति हुई है। सभ्यता के लंबे और मन्द विकास के कारण जाति प्रथा मे कुछ दोष भी आते गए। इसका सबसे बङा दोष छुआछुत की भावना है। परन्तु विभिन्न प्रयासों से यह सामाजिक बुराई दूर होती जा रही है।

जाति प्रथा की समस्याएं

लोकतंत्र के विरुद्ध :-

●लोकतंत्र जहाँ सभी को समान समझता है।एक लोकतांत्रिक देश के नाते संविधान के अनुच्छेद 15 में राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही गई है। अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है। परन्तु वास्तव में यह आज भी किसी न किसी रूप में विद्यमान है। चुकी जाति व्यवस्था समानता नहीं बल्कि दो वर्गों में वरिष्ठता के सिद्धांत को मानती है अतः यह लोकतंत्र के विरुद्ध है।

समाज का अंग:-

●निःसंदेह जाति प्रथा एक सामाजिक कुरीति है। ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं। यहाँ तक की लोकतान्त्रिक चुनावो में भी जाति एक बड़े कारक के रूप में विद्यमान है।

राष्ट्रीय एकता हेतु समस्या :-

●जाति प्रथा न केवल हमारे मध्य वैमनस्यता को बढ़ाती है बल्कि ये हमारी एकता में भी दरार पैदा करने का काम करती है। जाति प्रथा प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बचपन से ही ऊंच-नीच, उत्कृष्टता निकृष्टता के बीज बो देती है। जो कालांतर में क्षेत्रवाद का कारक भी बन जाती है। जाति प्रथा से आक्रांत समाज की कमजोरी विस्तृत क्षेत्र में राजनीतिक एकता को स्थापित नहीं करा पाती तथा यह देश पर किसी बाहरी आक्रमण के समय एक बड़े वर्ग को हतोत्साहित करती है। स्वार्थी राजनीतिज्ञों के कारण जातिवाद ने पहले से भी अधिक भयंकर रूप धारण कर लिया है, जिससे सामाजिक कटुता बढ़ी है।

विकास के प्रगति में बाधक :

●जातिगत द्वेष से उत्पन्न तनाव , अथवा राजनैतिक पार्टियों द्वारा किये गए जातिगत तुष्टिकरण से राष्ट्र की प्रगति बाधक होती है।

जाति प्रथा के विषय में महात्मा गांधी तथा भीम राव आंबेडकर

●महात्मा गाँधी तथा भीम राव आंबेडकर भारत में जातिगत सुधारो के बड़े समर्थनकर्ता माने जाते हैं। यद्यपि इनका लक्ष्य समान था परन्तु इनके मध्य कई प्रकार की वैचारिक भिन्नताएं थीं

●एक ओर जहाँ गाँधी जी हिन्दू धर्म के अंदरसुधार कर जाति प्रथा की समस्याओं को समाप्त करना चाहते थे ,वहीँ अम्बेडकर हिन्दू धर्म से अलग होकर दलितोद्धार चाहते थे।

●गाँधी जी जहाँ वेद , एवं ग्रंथो की उपयुक्त व्याख्या से हरिजनोद्धार की कामना करते थे वहीँ अमबेडकर ग्रंथो में विश्वास नहीं करते थे।

●गाँधी जी हरिजन को हिन्दू धर्म का अंग मानते थे वहीँ अम्बेडकर उन्हें हिन्दू समाज के बाहर धार्मिक अल्पसंख्यक मानते थे। इसी मत विरोध की एक संधि पूना पैक्ट के नाम से जानी जाती है

●जहाँ गाँधी जी ग्राम स्वराज की बात करते थे वहीँ अम्बेडकर गावो को जातिवाद का प्रमुख केंद्र ,मानकर शहरीकरण पर जोर देते थे।

निष्कर्ष

●वास्तव में जातिप्रथा समाज की एक भयानक विसंगति है जो समय के साथ साथ और प्रबल हो गई। यह भारतीय संविधान में वर्णित सामाजिक न्याय की अवधारणा कजी प्रबल शत्रु है तथा समय समय पर देश को आर्थिक ,सामाजिक क्षति पहुँचाती है। निस्संदेह सरकार के साथ साथ , जन सामान्य , धर्म गुरु , राजनेता तथा नागरिक समाज का उत्तरदायित्व है कि यह विसंगति जल्द से जल्द समाप्त हो।


सामान्य शरीर में तत्वों की औसत मात्रा

◾️ऑक्सीजन
◽️65%

◾️कार्बन
◽️18%

◾️हाइड्रोजन
◽️10%

◾️नाइट्रोजन
◽️3%

◾️कैल्शियम
◽️2%

◾️फॉस्फोरस
◽️1%

◾️पोटैशियम
◽️0.35%

◾️सल्फर
◽️0.25%

◾️सोडियम
◽️0.15%

◾️क्लोरीन
◽️0.15%

◾️मैग्नीशियम
◽️0.05%

◾️लोहा
◽️0.004%

◾️अन्य तत्व
◽️0.046%

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