दिन हफ्तों मेें,
हफ्ते महीनों मेें
महीने सालो मेें
बदल गए है
इं सब मेें, मैं हर दर्द पार
कर चुका हूं,
मैं हर हद्द
पार कर चुका हूं
सबकी नजरो मैं
भले ही मैं हार चुका हूं
पर हार की हर उम्मीद
को मैं मार चुका हूं
होने को ये कुछ भी नहीं
पर खोने को ये बहुत कुछ है
अब ये समय की मार
अपना घर सा लगता है
जिनसे मुझे थोड़ा
डर सा लगता है
क्या मैं जीत जाऊँगा
या फिर किसी कहानी की
तरह, चुप चाप बीत जाऊँगा?
हफ्ते महीनों मेें
महीने सालो मेें
बदल गए है
इं सब मेें, मैं हर दर्द पार
कर चुका हूं,
मैं हर हद्द
पार कर चुका हूं
सबकी नजरो मैं
भले ही मैं हार चुका हूं
पर हार की हर उम्मीद
को मैं मार चुका हूं
होने को ये कुछ भी नहीं
पर खोने को ये बहुत कुछ है
अब ये समय की मार
अपना घर सा लगता है
जिनसे मुझे थोड़ा
डर सा लगता है
क्या मैं जीत जाऊँगा
या फिर किसी कहानी की
तरह, चुप चाप बीत जाऊँगा?