👑🚩जानिए ‘राजपूत सम्राट मिहिर भोज’ को लेकर क्या कहता है इतिहास: जाति नहीं, क्षेत्र था गुर्जर.
🌹🔅इस लेख में हम बात करेंगे कि ‘आदिवराह’ के नाम से सिंहासन को सुशोभित करने वाले मिहिर भोज को राजपूत बताए जाने के पीछे ऐतिहासिक तथ्य क्या कहते हैं। समकालीन इतिहास में इसके बारे में कुछ है या नहीं। शिवभक्त मिहिर भोज, जिन्हें अरब के यात्री ‘भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन’ बताते थे, उनके क्षत्रिय होने के कौन से प्रमाण मौजूद हैं और किन आधार पर राजपूत संगठन आक्रोश जता रहे हैं, हम इस पर बात करेंगे। क्षत्रिय इतिहास गौरव से भरा रहा है और राजस्थान की तरफ से भारत में दाखिल होने की कोशिश करने वाले इस्लामी आक्रांताओं को उन्होंने बार-बार धूल चटाई है। दिल्ली से कुछ ही दूरी पर स्थित मेवाड़ साम्राज्य ने मुगलों की नाक में जितना दम किया, वो कबीले तारीफ़ है। चित्तौड़ में हुए कई जौहर क्षत्रिय समाज के देश के लिए दिए गए असंख्य बलिदानों में से एक हैं। महाराणा प्रताप पूरे हिन्दू समाज के लिए पूज्य हैं। हल्दीघाटी की मिट्टी हमारे लिए पवित्र है।
🌹🔅‘गुर्जर’ और ‘गुज्जर’ के बीच का अंतर: क्षेत्र या जाति.
अब आते हैं सम्राट मिहिर भोज और ‘राजपूत इतिहास’ पर। मिहिर भोज को ‘गुर्जर सम्राट’ बताए जाने के विरोध में कुछ इतिहासकारों का कहना है कि ‘गुर्जर’ शब्द की व्याख्या करने पर हमें पता चलता है कि ये शब्द एक खास क्षेत्र के लिए प्रयोग में लाया जाता था और उस क्षेत्र के निवासियों के लिए, तभी सुथार, जैन और ब्राह्मण जैसे समुदायों में भी लोगों को गुर्जर कहा गया। बड़ौदा के जो गायकवाड़ थे, उन्हें मराठा होने के बावजूद ‘गुर्जर नरेश’ कहा गया।
🌹🔅TOI के एक लेख में वरिष्ठ पत्रकार संजीव सिंह ने ‘गुर्जर’ और ‘गुज्जर’ के बीच का अंतर भी समझाया है। उनके अनुसार, ‘गुर्जर’ शब्द का पहले पहले ‘हर्षचरित्र’ में वर्णन मिलता है, जिसे सम्राट हर्षवर्धन के राजकवि बाण ने रचा था। ये 640 ईश्वी के करीब की बात है। इसमें राजा प्रभाकरवर्धन का सिंधु, मालवा, गांधार और गुर्जर प्रदेशों में विजय अभियान का जिक्र है। कर्नाटक के ऐहोले में पुलकेशी II के समय का एक शिलालेख भी मिलता है।
🌹🔅634 ईश्वी के इस शिलालेख में लिखा है कि गुर्जर प्रदेश में राजा ने विजय अभियान चलाया था। ह्वेन सांग नाम का यात्री जब भारत आया था, तो उसने अपने संस्मरण में लिखा है कि छठी-सातवीं शताब्दी में गुर्जर नाम के एक इलाके में चावड़ा वंश के राजपूतों का राज है। बड़ौदा के मराठा शासकों को ‘गुर्जर नरेश’ इसीलिए कहा जाता था, क्योंकि पहले उनकी भूमि वही हुआ करती थी। जैन मुनि उद्योतना सूरी ने भी ‘गुर्जर’ शब्द का जिक्र किया है।
🌹🔅उन्होंने ‘कुवलयमाला’ में उन्होंने गुर्जर, सिंध और मालवा के रहने वाले लोगों के लिए उनके क्षेत्र के नाम से ही विशेषण का प्रयोग किया है। साथ ही समुदायों में उन्होंने ब्राह्मण, क्षत्रिय व भील इत्यादि के साथ-साथ ‘गुज्जर’ शब्द का प्रयोग किया है। 1172 ईश्वी के एक शिलालेख में ‘गुर्जर ब्राह्मण’ सतानंद का जिक्र है, जो कृष्णात्रेय गोत्र के थे। ये शिलालेख यादव राजा कृष्णा के समय का है। संजीव कुमार इन आधार पर बताते हैं कि ‘गुर्जर’ एक क्षेत्र था, जाति नहीं।
🌹🔅12वीं शताब्दी में चालुक्य राजा कुमारपाल सोलंकी के समय की पुस्तक ‘कुमारपालप्रबंध’ में क्षत्रिय समाज के के 36 समूहों का जिक्र किया है, जिसमें ‘गुज्जर’ नहीं हैं। गुजरात में ‘गुर्जरधरित्री’ और ‘गुर्जरत्रिकदेशे’ नाम के जगहों का जिक्र जरूर मिलता है। कश्मीर के इतिहास की सबसे बड़ी पुस्तक राजतरंगिणी में भी ‘गुर्जर’ का जिक्र नहीं है, जबकि वहाँ अभी इनकी जनसंख्या 10 लाख है। ब्राह्मणों, क्षत्रियों व जैनों में भी गुर्जरों का जिक्र है, लेकिन कहीं भी वो गुर्जर समुदाय के नहीं थे और न ही गोजीरी भाषा बोलते थे।