परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम् ।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥
(हितोपदेश: 1.77)
पीठ पीछे कार्य बिगाड़ने वाले और मुख पर मीठी-मीठी बातें करने वाले मित्रको, मुखपर दूध वाले विषके घड़े के समान(अर्थात घड़े के ऊपर ऊपर तो दूध लगा हुआ है, किंतु भीतर विष भर रखा है) ऐसे मित्र को सर्वथा त्याग देना चाहिये।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥
(हितोपदेश: 1.77)
पीठ पीछे कार्य बिगाड़ने वाले और मुख पर मीठी-मीठी बातें करने वाले मित्रको, मुखपर दूध वाले विषके घड़े के समान(अर्थात घड़े के ऊपर ऊपर तो दूध लगा हुआ है, किंतु भीतर विष भर रखा है) ऐसे मित्र को सर्वथा त्याग देना चाहिये।