"मेरी "जान" तुम ही हो क्या.."
सुनो,
मेरी जान ,,
तुम ,इतना गौर से क्यों ध्यान लगा रहे हो..
मेरी जान तुम ही हो क्या...
अच्छा अच्छा, ठहरो जरा,
तुम इतना नाराज क्यों हो रहे..
सच सच कहो ना
मेरी "जान" तुम ही हो क्या..
सुनो,
मेरी जान,
तुम, इतना क्यों फिर याद आ रहे हो,
मेरी जान तुम ही हो क्या..
अच्छा अच्छा ,सुनो ना,
तुम इतना अब क्यों इतरा रहे हो.
सच सच कहो ना,
मेरी "जान" तुम ही हो क्या..
सुनो,
मेरी जान,
तुम, इतना क्यों फिर अंजान बन रहे हो,
मेरी जान तुम ही हो क्या..
अच्छा अच्छा ,सुनो ना,
तुम इतना अब क्यों नजरें चुरा रहे हो.
सच सच कहो ना,
मेरी "जान" तुम ही हो क्या..
-लफ़्ज-ए-प्रशान्त✍🏻
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