भोज के सक्षम शासन तले एक ऐसा साम्राज्य स्थापित हुआ, जहां प्रजा खुश थी,अत्याचारियों को दण्डित किया जाता था. व्यापार और कृषि को खूब बढ़ावा दिया जा रहा था. राजधानी कन्नौज में 7 किले और दस हजार मंदिर थे. सारा साम्राज्य धन, वैभव से संपन्न था. उनके राज्य में व्यापार सोने और चांदी के सिक्कों से होता था.
🌹🔅मिहिर भोज की गाथाओं से भरे हैं सनातन ग्रंथ
भले ही वामपंथी इतिहासकारों ने मिहिर भोज के इतिहास को काट देने की साजिश की. लेकिन स्कंद पुराण के प्रभास खंड में भी सम्राट मिहिरभोज की वीरता, शौर्य और पराक्रम के बारे में विस्तार से वर्णन है. मिहिरभोज बचपन से ही वीर बहादुर माने जाते थे. उनका जन्म विक्रम संवत 873 को हुआ था. सम्राट मिहिरभोज की पत्नी का नाम चंद्रभट्टारिका देवी था. जो भाटी राजपूत वंश की थी. मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दुनिया मे मशहूर हुए. कश्मीर के राज्य कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक राज तरंगिणी में सम्राट मिहिरभोज का उल्लेख किया है.
🌹🔅महादेव के अनन्य भक्त थे मिहिर भोज
सम्राट मिहिर भोज मूल रूप से शैव थे. वह उज्जैन में स्थापित भगवान महाकाल के अनन्य भक्त थे. उनकी सेना जय महादेव जय विष्णु, जय महाकाल की ललकार के साथ रणक्षेत्र में दुश्मन का खात्मा कर देती थी. कभी रणक्षेत्र में भिनमाल, कभी हकड़ा नदी का किनारा, कभी भड़ौच और वल्लभी नगर तक अरब हमलावरों के साथ युद्ध होता रहता. मिहिर भोज की एक उपाधि ‘आदिवराह’ भी थी. उनके समय के सोने के सिक्कों पर वराह की आकृतियां उकेरी गई थी.
🌹🔅मिहिरभोज के समय अरब के हमलावरों ने भारत में अपनी शक्ति बढ़ाने की कई नाकाम कोशिश की.
लेकिन वह विफल रहे. साहस, शौर्य, पराक्रम वीरता और संस्कृति के रक्षक सम्राट मिहिर भोज जीवन के अंतिम वर्षों में अपने बेटे महेंद्रपाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यास ले लिया था. मिहिरभोज का स्वर्गवास 888 ईस्वी को 72 वर्ष की आयु में हुआ था. भारत के इतिहास में मिहिरभोज का नाम सनातन धर्म और राष्ट्र रक्षक के रूप में दर्ज है.क्षत्रिय राजपूत राजा मिहिर भोज को लेकर स्पषटीकरण कोई भी भाईचारा ना बिगाडे सत्य स्वीकार करने की हिम्मत दम रखो भाई गुर्जर और गूजर/गुज्जर में अंतर है। गूजर शब्द गऊचर से बना है यानी गाय चराने वाले। जो कि एक जाती है।
🌹🔅 प्रतिहार राजपूतों का एक वंश है।
वनवास काल में लक्ष्मण जी भगवान राम के द्वारपाल यानी प्रतिहार बन कर रहे थे। उन्हीं से प्रतिहार वंश चला है जिसे आजकल परिहार या पडियार भी कहा जाता है।गुजरात के साथ राजस्थान का बहुत बड़ा हिस्सा जिसमें भीनमाल जोधपुर आदि आते हैं उसे पहले समय में गुर्जरात्रा या गुर्जरस्त्र कहा जाता था। यहां पर शासन करने वाले राजाओं को गुर्जराधिराज कहा जाता था। ना केवल प्रतिहार बल्कि चावड़ा और चालुक्य भी गुजरात पर शासन करने के कारण गुर्जर वंश कहलाते हैं। इसलिए गुर्जर शब्द का गूजर (गऊचर) शब्द से कोई संबंध नहीं है। पुराने समय में गौ सेवा भी बहुत पवित्र कार्य माना जाता था जिन लोगों ने गौसेवा स्वीकार की वही आगे चलकर गऊचर कहलाए यही शब्द आगे चलकर गूजर हो गया।
🌹🔅राजा मिहिर भोज ,भोज परमार ये सब राजपूत सम्राट थे
क्षत्रिय राजन्य अपभ्रंश राजपूत ठाकुर ऊपाधी । आज भी परमार /पडियार राजपूत हे सबसे ज्यादा गोत्र के चालुक्य सोलंकी राजपूत हे गुजरात के ओर ये गोत्र राजपूतो मे जाने माने हे मिहिर भोज के वंशज आज भी हे ओर वे अपने आप को पडियार/परिहार राजपूत बालते हे ओर रिशतेदारी सब चोहान,सोलंकी, जडेजा, चुडासमा इन राजपूतो मे हे ओर ये गोत्र राजपूतो के सबसे ज्यादा गुजरात मे पाये जाते हे.
सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने 18 अक्टूबर 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 50 साल तक राज किया। मिहिर भोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक था।
🌹🔅प्रतिहार साम्राज्य
प्रतिहार साम्राज्य ने अपने शुरूआती शासनकाल मे ही पूरी दूनिया को अपनी ताकत से हिला दिया था। इनके साम्राज्य का क्षेत्रफल लगभग 20 लाख किलोमीटर स्क्वायर माइल्स था। इनका शासनकाल 6ठी शताब्दी से 10वी शताब्दी तक रहा। प्रतिहारों ने अरबों से 300 वर्ष तक लगभग 200 से ज्यादा युद्ध किये जिसका परिणाम है कि हम आज यहां सुरक्षित है। प्रतिहारों ने अपने वीरता, शौर्य , कला का प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्यचकित किया है। भारत देश हमेशा ही प्रतिहारो का रिणी रहेगा उनके अदभुत शौर्य और पराक्रम का जो उनहोंने अपनी मातृभूमि के