मिहिरभोज प्रतिहार बचपन से ही वीर बहादुर माने जाते थे।एक बालक होने के बावजूद, देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करते हुए उन्होंने युद्धकला और शस्त्रविधा में कठिन प्रशिक्षण लिया। राजकुमारों में सबसे प्रतापी प्रतिभाशाली और मजबूत होने के कारण, पूरा राजवंश और विदेशी आक्रमणो के समय देश के अन्य राजवंश भी उनसे बहुत उम्मीद रखते थे और देश के बाकी वंशवह उस भरोसे पर खरे उतरने वाले थे।
🌹🔅वह वैध उत्तराधिकारी साबित हुए
मिहिरभोज प्रतिहार राजपूत साम्राज्य के सबसे प्रतापी सम्राट हुए उनके राजगद्दी पर बैठते ही जैसे देश की हवा ही बदल गई । मिहिरभोज की वीरता के किस्से पूरी दूनीया मे मशूहर हुए।विदेशी आक्रमणो के समय भी लोग अपने काम मे निडर लगे रहते है। गद्दी पर बैठते ही उन्होने देश के लुटेरे,शोषण करने वाले, गरीबो को सताने वालो का चुन चुनकर सफाया कर दिया। उनके समय मे खुले घरो मे भी चोरी नही होती थी।
🌹🔅अरबी लेखो मे मिहिरभोज का है यशोगान ● अरब यात्री सुलेमान – पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं
जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिरभोज के बारे में लिखता है कि इस सम्राट की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिरभोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रु नहीं था । मिहिरभोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार,सोना चांदी के सिक्कों से होता है। ये भी कहा जाता है।कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने भी थी।
🌹🔅बगदाद का निवासी अल मसूदी 915ई.-916ई
वह कहता है कि (जुज्र) प्रतिहार साम्राज्य में 90,000 गांव, नगर तथा ग्रामीण क्षेत्र थे तथा यह दो हजार किलोमीटर लंबा और दो हजार किलोमीटर चौड़ा था। राजा की सेना के चार अंग थे और प्रत्येक में सात लाख से नौ लाख सैनिक थे। उत्तर की सेना लेकर वह मुलतान के बादशाह और दूसरे मुसलमानों के विरूद्घ युद्घ लड़ता है। उसकी घुड़सवार सेना देश भर में प्रसिद्घ थी।जिस समय अल मसूदी भारत आया था उस समय मिहिरभोज तो स्वर्ग सिधार चुके थे परंतु प्रतिहार शक्ति के विषय में अल मसूदी का उपरोक्त विवरण मिहिरभोज के प्रताप से खड़े साम्राज्य की ओर संकेत करते हुए अंतत: स्वतंत्रता संघर्ष के इसी स्मारक पर फूल चढ़ाता सा प्रतीत होता है। समकालीन अरब यात्री सुलेमान ने सम्राट मिहिरभोज को भारत में इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया था,क्योंकि प्रतिहार राजपूत राजाओं ने 11 वीं सदी तक इस्लाम को भारत में घुसने नहीं दिया था। मिहिरभोज के पौत्र महिपाल को आर्यवर्त का महान सम्राट कहा जाता था।
🌹🔅 प्रतिहार शैली कला
भारत मे कोई ऐसा स्थान नही बचा जहां प्रतिहारो ने अपनी तलवार और निर्माण कला का जौहर ना दिखाया हो। प्रतिहारो ने सैकडो मंदिर व किले के निर्माण किए थे जिसमे शास्त्रबहु मंदिर, बटेश्वर मंदिर, मण्डौर किला, जालौर किला, ग्वालियर किला, कुचामल किला, पडावली मंदिर, मिहिर बावडी, चौसठ योगिनी मंदिर आदि इनके अलावा सैकडो इलाके व ठिकाने है जहाँ प्रतिहारो ने अपनी कला का प्रदर्शन किया ।
🌹🔅लक्ष्मणवंशी प्रतिहार राजपूतों का परिचय
⚘️वर्ण – क्षत्रिय ⚘️राजवंश – प्रतिहार वंश ⚘️वंश – सूर्यवंशी ⚘️गोत्र – कौशिक ⚘️वेद – यजुर्वेद ⚘️उपवेद – धनुर्वेद ⚘️गुरु – वशिष्ठ ⚘️कुलदेव – विष्णु भगवान ⚘️कुलदेवी – चामुण्डा देवी, गाजन माता ⚘️नदी – सरस्वती ⚘️तीर्थ – पुष्कर राज ( राजस्थान ) ⚘️मंत्र – गायत्री ⚘️झंडा – केसरिया ⚘️निशान – लाल सूर्य ⚘️पशु – वाराह ⚘️नगाड़ा – रणजीत ⚘️अश्व – सरजीव ⚘️पूजन – खंड पूजन दशहरा ⚘️आदि गद्दी – माण्डव्य पुरम ( मण्डौर ) ⚘️ज्येष्ठ गद्दी – बरमै राज्य नागौद
🌹🔅 भारत मे प्रतिहार/परिहार राजपूतों की रियासत जो 1950 तक काबिज रही
⚘️नागौद रियासत – मध्यप्रदेश ⚘️अलीपुरा रियासत – मध्यप्रदेश ⚘️खनेती रियासत – हिमांचल प्रदेश ⚘️कुमारसैन रियासत – हिमांचल प्रदेश ⚘️मियागम स्टेट – गुजरात ⚘️उमेटा रियासत – गुजरात ⚘️एकलबारा रियासत – गुजरात ⚘️मुजपुर रियासत – गुजरात
🌹🔅 प्रतिहार/परिहार वंश की वर्तमान स्थिति
भले ही यह विशाल प्रतिहार राजपूत साम्राज्य 15 वीं शताब्दी के बाद में छोटे छोटे राज्यों में सिमट कर बिखर हो गया हो लेकिन इस वंश के वंशज राजपूत आज भी इसी साम्राज्य की परिधि में मिलते हैँ।