जिसका मन नित्य - निरंतर
सच्चिदानंद ब्रह्म में विचरण करता है,
वही पूर्ण ब्रह्मचारी है। इसमें प्रधानं आवश्यकता है - शरीर, इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि के बल की । यह बल प्राप्त होता है वीर्य की रक्षा से । इसलिए सब प्रकार से वीर्य की रक्षा करना ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना कहा जाता है ।