हमें पवित्र क्यों बनना है ?
ब्रह्मचर्य का पालन करना क्यों जरूरी है ?
क्योंकि हम दुनिया को नहीं बना सकते हैं, दुनिया को नहीं चला सकते हैं, हमारे वश में पूरी दुनिया नहीं है, हम तो सिर्फ सहयोग दे सकते हैं। हम पवित्र बन जाएंगे, तो दुनिया कैसे चलेगी इसकी चिंता हमें नहीं करनी है क्योंकि दुनिया चलाने का कार्य परमात्मा का है परमात्मा की श्रीमत से ही हमें पवित्र बनना है। पवित्र क्यों बनाना है इसकी कुछ बातें:-
1. हमें स्वयं पवित्र बनकर पूरे भारत को, पूरे विश्व को पवित्र बनाने में परमात्मा की मदद करनी है इसलिए हमें पवित्र बनना है।
2. पवित्रता, सुख, शांति की जननी है, अगर हमें सुख और शांति चाहिए तो हमें पवित्र बनना है।
3. सतयुग, स्वर्ग में सुख, शांति, पवित्रता संपूर्ण होती है अगर हमें सतयुग, स्वर्ग में जाकर सुख, शांति, पवित्रता की अनुभूति करना है, चलना है तो हमें पवित्र बनना है।
4. पवित्रता सुख, शांति, खुशी का फाउंडेशन है अगर फाउंडेशन नहीं होगा तो सुख, शांति, खुशी मिल नहीं सकती।
5. जो ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बनते हैं, वह पवित्र ब्राह्मण ही परमात्मा के द्वारा रचे गए अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ की संभाल करते हैं जो पूरे कल्प में उन ब्राह्मणों का गायन है, बिना पवित्रता के यज्ञ की संभाल नहीं कर सकते इसलिए हमें पवित्र करना है।
6. जो आत्माएं पवित्र बनती है वह परमात्मा के दुआओं की अधिकारी बनती है, परमात्मा से दुआएं लेनी है, आशीर्वाद लेना है तो पवित्र बनना है इसलिए हमें पवित्र बनना है।
7. हमें सिर्फ ब्रह्मचर्य ही नहीं अपनाना है बल्कि मन, वचन, कर्म, संबंध संपर्क, संकल्प, स्वप्न में भी पवित्रता अपनानी है, नहीं तो कहीं से भी विकारों की प्रवेशिता होगी।
8. पवित्रता को अपनाने से जो भी व्यर्थ सोचना, देखना, बोलना और करने में हम फुल स्टाप लगाकर उसे परिवर्तन कर सकते हैं।
9. पवित्र बनने से हम त्रिकालदर्शी बन जाएंगे, तीनों कालों को देखने की हमारी पवित्र दृष्टि बन जाएगी, जिससे हम तुरंत निर्णय ले सकते हैं, हम कुछ भी देख सकते हैं इसलिए हमें पवित्र बनना है।
10. पवित्रता में बल होता है पवित्रता को अपनाने से हम हलचल में नहीं आते हैं। जैसे मंदिर में मूर्तियां पवित्र होती हैं उनके आगे सभी सिर झुकाते हैं। पवित्र गुरु, संत, महात्माओं के आगे सिर झुकाते हैं।
11. पवित्रता मुझ आत्मा का स्वधर्म है इसलिए पवित्र रहकर हमें अपने धर्म में स्थित रहना है।
12. परमात्मा से सर्व प्राप्तियां करने के लिए हमें पवित्र रहना है।
13. पवित्र बनने से ही हम सभी को शुभ भावना, शुभकामना दे सकते हैं।
14. पवित्र बनने से हमें अतिंद्रीय सुख की अनुभूति होगी इसलिए हमें पवित्र बनना है।
ब्रह्मचर्य का पालन करना क्यों जरूरी है ?
क्योंकि हम दुनिया को नहीं बना सकते हैं, दुनिया को नहीं चला सकते हैं, हमारे वश में पूरी दुनिया नहीं है, हम तो सिर्फ सहयोग दे सकते हैं। हम पवित्र बन जाएंगे, तो दुनिया कैसे चलेगी इसकी चिंता हमें नहीं करनी है क्योंकि दुनिया चलाने का कार्य परमात्मा का है परमात्मा की श्रीमत से ही हमें पवित्र बनना है। पवित्र क्यों बनाना है इसकी कुछ बातें:-
1. हमें स्वयं पवित्र बनकर पूरे भारत को, पूरे विश्व को पवित्र बनाने में परमात्मा की मदद करनी है इसलिए हमें पवित्र बनना है।
2. पवित्रता, सुख, शांति की जननी है, अगर हमें सुख और शांति चाहिए तो हमें पवित्र बनना है।
3. सतयुग, स्वर्ग में सुख, शांति, पवित्रता संपूर्ण होती है अगर हमें सतयुग, स्वर्ग में जाकर सुख, शांति, पवित्रता की अनुभूति करना है, चलना है तो हमें पवित्र बनना है।
4. पवित्रता सुख, शांति, खुशी का फाउंडेशन है अगर फाउंडेशन नहीं होगा तो सुख, शांति, खुशी मिल नहीं सकती।
5. जो ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण बनते हैं, वह पवित्र ब्राह्मण ही परमात्मा के द्वारा रचे गए अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ की संभाल करते हैं जो पूरे कल्प में उन ब्राह्मणों का गायन है, बिना पवित्रता के यज्ञ की संभाल नहीं कर सकते इसलिए हमें पवित्र करना है।
6. जो आत्माएं पवित्र बनती है वह परमात्मा के दुआओं की अधिकारी बनती है, परमात्मा से दुआएं लेनी है, आशीर्वाद लेना है तो पवित्र बनना है इसलिए हमें पवित्र बनना है।
7. हमें सिर्फ ब्रह्मचर्य ही नहीं अपनाना है बल्कि मन, वचन, कर्म, संबंध संपर्क, संकल्प, स्वप्न में भी पवित्रता अपनानी है, नहीं तो कहीं से भी विकारों की प्रवेशिता होगी।
8. पवित्रता को अपनाने से जो भी व्यर्थ सोचना, देखना, बोलना और करने में हम फुल स्टाप लगाकर उसे परिवर्तन कर सकते हैं।
9. पवित्र बनने से हम त्रिकालदर्शी बन जाएंगे, तीनों कालों को देखने की हमारी पवित्र दृष्टि बन जाएगी, जिससे हम तुरंत निर्णय ले सकते हैं, हम कुछ भी देख सकते हैं इसलिए हमें पवित्र बनना है।
10. पवित्रता में बल होता है पवित्रता को अपनाने से हम हलचल में नहीं आते हैं। जैसे मंदिर में मूर्तियां पवित्र होती हैं उनके आगे सभी सिर झुकाते हैं। पवित्र गुरु, संत, महात्माओं के आगे सिर झुकाते हैं।
11. पवित्रता मुझ आत्मा का स्वधर्म है इसलिए पवित्र रहकर हमें अपने धर्म में स्थित रहना है।
12. परमात्मा से सर्व प्राप्तियां करने के लिए हमें पवित्र रहना है।
13. पवित्र बनने से ही हम सभी को शुभ भावना, शुभकामना दे सकते हैं।
14. पवित्र बनने से हमें अतिंद्रीय सुख की अनुभूति होगी इसलिए हमें पवित्र बनना है।