" अपना और सौतेला पुत्र - सच्ची कहानी "
एक व्यक्ति था उसकी पत्नी का देहांत प्रसव के दौरान ही हो गया था परन्तु किसी तरह बच्चा हो गया था।
छोटा बच्चा माँ के बिना कैसे संभाला जाएगा ये एक बहुत ही चिंता का विषय हो गया था।
कई मित्रों व सगे सम्बन्धियों के कहने पर उसने पुनः विवाह किया, बच्चे को नई माँ मिल गयी।
नयी माँ बच्चे की सार सम्भार करने लगी बच्चे को भी लगा जैसे की उसकी माँ फिर से मिल गयी।
कुछ ही वर्षों में उस युवती को भी एक पुत्र हुआ और उसका ध्यान अपने नए बच्चे पर अधिक रहने लगा।
धीरे धीरे उसकी दृष्टि में दोष आने लगा और वो पक्षपात से ग्रसित हो गयी।
अब उसे लगने लगा की इस घर का वारिस तो बड़ा लड़का है और संपत्ति पर भी अधिक हक़ इसी लड़के का है।
उसे अपने पुत्र के भविष्य की बहुत चिंता रहने लगी।
उसने अपने पति को समझा बुझाके राज़ी किया और बड़े लड़के की पढाई लिखाई सब छुड़वा दी और घर के नौकर को भी हटा दिया तथा सब काम उसी लड़के से कराने लगी।
बच्चे के ऊपर बहुत बड़ी विपदा आ पड़ी वो अभी दूसरी कक्षा में ही था और दुनियादारी कुछ नहीं जानता था।
उसे यही लगता था माँ ने सही किया होगा घर का सारा काम करते करते उसका पूरा दिन बीत जाता था।
धीरे धीरे माँ ने उसे समझा दिया कि उसका असली कार्य अपने छोटे भाई की सेवा ही है और उसका छोटा भाई ही असली मालिक है।
बच्चे ने माँ की आज्ञा मान ली और सदा ही अपने भाई की सेवा सम्भार में तत्पर रहने लगा।
अब वो बड़े लड़के को ज़रा ज़रा सी ग़लती होने पर डांटने मारने भी लगी थी ताकि उस पर एक भय बना रहे। वो कोई अच्छे से अच्छे काम भी करता तो उसकी सौतेली माँ उसे बिलकुल बेकार बताती लेकिन फिर भी बालक के मन में माता के लिए प्यार ही उभरता वो उसे सौतेली नहीं मान पाता था।
उस औरत ने घर के पूजा पाठ का जिम्मा भी उसी बच्चे को दे रखा था अतः उस बालक की बुद्धि धीरे धीरे आध्यात्मिक होने लगी।
जैसे जैसे वो बड़ा होने लगा उसे सच्चाई समझ में आने लगी लेकिन वो अपना सब दुःख भगवान से ही कह कर संतोष कर लेता था और उसका सारा दुःख समाप्त हो जाता था।
पिता से वो बहुत प्रीती करता था और जानता था की पिता उसकी स्थति से बहुत दुखित रहते हैं लेकिन वो उनसे हमेशा माँ की बढ़ाई ही करता था।
पिता का होना ही उसके लिए बहुत था परन्तु उसके पिता भी एक बिमारी में चल बसे और वो बिलकुल अकेला हो गया।
बस भगवान ही उसके रह गए । समय बीतने लगा और दोनों बच्चे बड़े हो गए । अब घर का सारा अधिकार सौतेली माँ के हाथ में था।
योजना के अनुसार बड़े बच्चे की शादी उस औरत ने बहुत ही गरीब घर में व् अनपढ़ औरत से करी तथा अपने पुत्र की बहुत बड़े घर में व पढ़ी लिखी युवती से करी।
उसने बड़े लड़के को नौकरों वाले घर में से एक घर दे दिया और उसकी पत्नी को भी बता दिया की उसका असली कार्य मालकिन यानी छोटी बहु की सेवा करना ही है।
छोटे लड़के के लिए उसने बहुत बड़ा भवन बनवाया था और स्वयं उसी में उन्ही के साथ निवास करने लगी।
बड़ा लड़का ख़ुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगा और पत्नी के साथ माँ व छोटे भाई के परिवार की सेवा करने लगा ।
छोटे लड़के की स्त्री को उसकी माँ बहुत अखरती थी उसे लगता था की मालकिन उसे होना चाहिए।
अब सास बीमार भी रहती थी और साथ में रहने के कारण रात बिरात सेवा उस छोटी बहु को ही करनी पड़ती थी जो उसे बिलकुल नापसंद था।
एक दिन पता चला की सास को छूत की बिमारी हो गयी है ये जानकर तो छोटी बहु और दूर दूर रहने लगी। उसकी आँखों में सास खटकने लगी।
उसने अपने पति से कह दिया की इस घर में या तो वो रहेगी या उसकी माँ।
छोटे लड़के पर अपनी पत्नी का जादू चढ़ा हुआ था उसने अपनी ही माँ को घर से बाहर निकाल दिया और उसे वहीँ नौकरों के घर में रहने को कह दिया।
अब माँ भी वृद्ध हो गयी थी और अचानक हुए इस घटनाक्रम से एकदम बदहवास हो गयी।
उसे अपने जीवनभर की पूँजी व्यर्थ जाती दिखी वो तो अपने इस बेटे के ऊपर पूरी तरह निर्भर थी उसने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था।
उसे लगने लगा की अब उसकी सेवा कौन करेगा, उसने आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया और गंगा जी में डूबने चल दी।
बड़ा लड़का कहीं बाहर गया था और उसे कुछ पता नहीं था, वो एक घाट से गुज़र रहा था शोर सुना तो देखा कोई नदी में डूब रहा है।
उसने भी छलांग लगा दी और जब बचाके लाया तो देखा की ये ये तो उसकी ही सौतेली माँ है।
जब सारी बात पता चली उसे तो वो बहुत दुखित हुआ और अपने पत्नी व माँ के साथ घर त्याग दिया व दूसरे गाँव में रहने लगा।
उसने अपने पत्नी के साथ माँ की बहुत सेवा करी और वो ठीक हो गयी। वो लोग अच्छे से जीवन बसर करने लगे।
एक व्यक्ति था उसकी पत्नी का देहांत प्रसव के दौरान ही हो गया था परन्तु किसी तरह बच्चा हो गया था।
छोटा बच्चा माँ के बिना कैसे संभाला जाएगा ये एक बहुत ही चिंता का विषय हो गया था।
कई मित्रों व सगे सम्बन्धियों के कहने पर उसने पुनः विवाह किया, बच्चे को नई माँ मिल गयी।
नयी माँ बच्चे की सार सम्भार करने लगी बच्चे को भी लगा जैसे की उसकी माँ फिर से मिल गयी।
कुछ ही वर्षों में उस युवती को भी एक पुत्र हुआ और उसका ध्यान अपने नए बच्चे पर अधिक रहने लगा।
धीरे धीरे उसकी दृष्टि में दोष आने लगा और वो पक्षपात से ग्रसित हो गयी।
अब उसे लगने लगा की इस घर का वारिस तो बड़ा लड़का है और संपत्ति पर भी अधिक हक़ इसी लड़के का है।
उसे अपने पुत्र के भविष्य की बहुत चिंता रहने लगी।
उसने अपने पति को समझा बुझाके राज़ी किया और बड़े लड़के की पढाई लिखाई सब छुड़वा दी और घर के नौकर को भी हटा दिया तथा सब काम उसी लड़के से कराने लगी।
बच्चे के ऊपर बहुत बड़ी विपदा आ पड़ी वो अभी दूसरी कक्षा में ही था और दुनियादारी कुछ नहीं जानता था।
उसे यही लगता था माँ ने सही किया होगा घर का सारा काम करते करते उसका पूरा दिन बीत जाता था।
धीरे धीरे माँ ने उसे समझा दिया कि उसका असली कार्य अपने छोटे भाई की सेवा ही है और उसका छोटा भाई ही असली मालिक है।
बच्चे ने माँ की आज्ञा मान ली और सदा ही अपने भाई की सेवा सम्भार में तत्पर रहने लगा।
अब वो बड़े लड़के को ज़रा ज़रा सी ग़लती होने पर डांटने मारने भी लगी थी ताकि उस पर एक भय बना रहे। वो कोई अच्छे से अच्छे काम भी करता तो उसकी सौतेली माँ उसे बिलकुल बेकार बताती लेकिन फिर भी बालक के मन में माता के लिए प्यार ही उभरता वो उसे सौतेली नहीं मान पाता था।
उस औरत ने घर के पूजा पाठ का जिम्मा भी उसी बच्चे को दे रखा था अतः उस बालक की बुद्धि धीरे धीरे आध्यात्मिक होने लगी।
जैसे जैसे वो बड़ा होने लगा उसे सच्चाई समझ में आने लगी लेकिन वो अपना सब दुःख भगवान से ही कह कर संतोष कर लेता था और उसका सारा दुःख समाप्त हो जाता था।
पिता से वो बहुत प्रीती करता था और जानता था की पिता उसकी स्थति से बहुत दुखित रहते हैं लेकिन वो उनसे हमेशा माँ की बढ़ाई ही करता था।
पिता का होना ही उसके लिए बहुत था परन्तु उसके पिता भी एक बिमारी में चल बसे और वो बिलकुल अकेला हो गया।
बस भगवान ही उसके रह गए । समय बीतने लगा और दोनों बच्चे बड़े हो गए । अब घर का सारा अधिकार सौतेली माँ के हाथ में था।
योजना के अनुसार बड़े बच्चे की शादी उस औरत ने बहुत ही गरीब घर में व् अनपढ़ औरत से करी तथा अपने पुत्र की बहुत बड़े घर में व पढ़ी लिखी युवती से करी।
उसने बड़े लड़के को नौकरों वाले घर में से एक घर दे दिया और उसकी पत्नी को भी बता दिया की उसका असली कार्य मालकिन यानी छोटी बहु की सेवा करना ही है।
छोटे लड़के के लिए उसने बहुत बड़ा भवन बनवाया था और स्वयं उसी में उन्ही के साथ निवास करने लगी।
बड़ा लड़का ख़ुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगा और पत्नी के साथ माँ व छोटे भाई के परिवार की सेवा करने लगा ।
छोटे लड़के की स्त्री को उसकी माँ बहुत अखरती थी उसे लगता था की मालकिन उसे होना चाहिए।
अब सास बीमार भी रहती थी और साथ में रहने के कारण रात बिरात सेवा उस छोटी बहु को ही करनी पड़ती थी जो उसे बिलकुल नापसंद था।
एक दिन पता चला की सास को छूत की बिमारी हो गयी है ये जानकर तो छोटी बहु और दूर दूर रहने लगी। उसकी आँखों में सास खटकने लगी।
उसने अपने पति से कह दिया की इस घर में या तो वो रहेगी या उसकी माँ।
छोटे लड़के पर अपनी पत्नी का जादू चढ़ा हुआ था उसने अपनी ही माँ को घर से बाहर निकाल दिया और उसे वहीँ नौकरों के घर में रहने को कह दिया।
अब माँ भी वृद्ध हो गयी थी और अचानक हुए इस घटनाक्रम से एकदम बदहवास हो गयी।
उसे अपने जीवनभर की पूँजी व्यर्थ जाती दिखी वो तो अपने इस बेटे के ऊपर पूरी तरह निर्भर थी उसने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था।
उसे लगने लगा की अब उसकी सेवा कौन करेगा, उसने आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया और गंगा जी में डूबने चल दी।
बड़ा लड़का कहीं बाहर गया था और उसे कुछ पता नहीं था, वो एक घाट से गुज़र रहा था शोर सुना तो देखा कोई नदी में डूब रहा है।
उसने भी छलांग लगा दी और जब बचाके लाया तो देखा की ये ये तो उसकी ही सौतेली माँ है।
जब सारी बात पता चली उसे तो वो बहुत दुखित हुआ और अपने पत्नी व माँ के साथ घर त्याग दिया व दूसरे गाँव में रहने लगा।
उसने अपने पत्नी के साथ माँ की बहुत सेवा करी और वो ठीक हो गयी। वो लोग अच्छे से जीवन बसर करने लगे।