भगवान शंकर कहते हैं।
बायवी धारणा भो यौगियों की महत्त्वपूर्ण धारणा है। पहले के महान् योगी इस धारणा में भी सिद्ध होते थे। आजकल इसका प्रचार नहीं के बराबर है। शास्त्र इसके समर्थक हैं और आदेश देते हैं कि, योगमार्ग के पथिक इस पद्धति को भी अपनायें। इस धारणा के वर्णन प्रसङ्ग में सर्वं प्रथम षड्विन्दु सदृश आकार के सदृश कृष्ण वृत्त के ध्यान की बात कही गयी है। अपना शरीर ही षड्विन्दु सदृश कृष्णवृत्त सदृश मानकर यह व्यान होता है। यहाँ षड्बिन्दु शब्द का प्रयोग ध्यान देने योग्य है। वर्षा ऋतु मे विभिन्न प्रकार के कीट दिखायी पड़ते हैं। इन में काले रंग के एक गोल कीट को भोजपुरी भाषा में 'छबुन्ना' कहते हैं। छबुन्ना षड्विन्दु का ही अपभ्रंश रूप है। यह काला, जहरीला, कृष्ण पीठकमठ पर छह बिन्दु वाला और गोल कीट होता है। यह दब जाने पर जहरीला धुआँ फेंकते हुए चच शब्द भी बोलता है। वृत्त षट्पञ्च लान्छन पाठ के अनुसार छह या पांच रेखाओं से युक्त गोल कीट अर्थ किया जा सकता है।
योगो अपने शरीर को काले रंग वृत्ताकार तथा उसके समान चू-चू शब्द करता हुआ चञ्चल कोट के रूप ध्यान करे। कुम्भक लगा कर बैठे और ध्यान कृष्णवृत्तवत् हो, तो एक चमत्कार घटित होता है। यह वायवी धारणा की पहली प्रक्रिया मानी जातो है ।।
इस चञ्चलात्मक स्पन्दमानता में वायवीय गतिशीलता की सुगन्ध आ जाती है। इससे कफ जन्य व्याधियों का विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है। परिणामतः साधक वायु की तरह भारहीन हो जाता है। इसको छह मास तक लगातार करें तो एक क्षण में १०० योजन (1 योजन=12 km) जा और आ सकता है।
आयास जन्य खेद की तो कल्पना भो नहीं को जा सकती। तीन साल तक इस धारणा की धूति से साधक स्वयं वायुरूप हो हो जाता है ।। ३५-३६ ।।
उसमें अद्भुत शक्ति का आधान हो जाता है। वह चाहे तो पहाड़ों में हड़कम्प मचा सकता है। उन्हें चाहे तो तोड़ फोड़ कर चूर्ण कर सकता है। बड़े-बड़े वृक्षों को चुटकी बजाते उखाड़ सकता है। यदि वह कोध से भर जाये तो इन्द्र को स्वर्ग से भूतल पर लाकर उनको बलवत्ता को माप कर दे।
#siddhi #vayu
बायवी धारणा भो यौगियों की महत्त्वपूर्ण धारणा है। पहले के महान् योगी इस धारणा में भी सिद्ध होते थे। आजकल इसका प्रचार नहीं के बराबर है। शास्त्र इसके समर्थक हैं और आदेश देते हैं कि, योगमार्ग के पथिक इस पद्धति को भी अपनायें। इस धारणा के वर्णन प्रसङ्ग में सर्वं प्रथम षड्विन्दु सदृश आकार के सदृश कृष्ण वृत्त के ध्यान की बात कही गयी है। अपना शरीर ही षड्विन्दु सदृश कृष्णवृत्त सदृश मानकर यह व्यान होता है। यहाँ षड्बिन्दु शब्द का प्रयोग ध्यान देने योग्य है। वर्षा ऋतु मे विभिन्न प्रकार के कीट दिखायी पड़ते हैं। इन में काले रंग के एक गोल कीट को भोजपुरी भाषा में 'छबुन्ना' कहते हैं। छबुन्ना षड्विन्दु का ही अपभ्रंश रूप है। यह काला, जहरीला, कृष्ण पीठकमठ पर छह बिन्दु वाला और गोल कीट होता है। यह दब जाने पर जहरीला धुआँ फेंकते हुए चच शब्द भी बोलता है। वृत्त षट्पञ्च लान्छन पाठ के अनुसार छह या पांच रेखाओं से युक्त गोल कीट अर्थ किया जा सकता है।
योगो अपने शरीर को काले रंग वृत्ताकार तथा उसके समान चू-चू शब्द करता हुआ चञ्चल कोट के रूप ध्यान करे। कुम्भक लगा कर बैठे और ध्यान कृष्णवृत्तवत् हो, तो एक चमत्कार घटित होता है। यह वायवी धारणा की पहली प्रक्रिया मानी जातो है ।।
इस चञ्चलात्मक स्पन्दमानता में वायवीय गतिशीलता की सुगन्ध आ जाती है। इससे कफ जन्य व्याधियों का विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है। परिणामतः साधक वायु की तरह भारहीन हो जाता है। इसको छह मास तक लगातार करें तो एक क्षण में १०० योजन (1 योजन=12 km) जा और आ सकता है।
आयास जन्य खेद की तो कल्पना भो नहीं को जा सकती। तीन साल तक इस धारणा की धूति से साधक स्वयं वायुरूप हो हो जाता है ।। ३५-३६ ।।
उसमें अद्भुत शक्ति का आधान हो जाता है। वह चाहे तो पहाड़ों में हड़कम्प मचा सकता है। उन्हें चाहे तो तोड़ फोड़ कर चूर्ण कर सकता है। बड़े-बड़े वृक्षों को चुटकी बजाते उखाड़ सकता है। यदि वह कोध से भर जाये तो इन्द्र को स्वर्ग से भूतल पर लाकर उनको बलवत्ता को माप कर दे।
#siddhi #vayu