हमें गुमनामी मंज़ूर है,पहचान आप रख लिजिये।
आने दो श्राप हिस्से में,वरदान आप रख लिजिये।।
फ़ीता फेंकोगे,कचहरी जाओगे,तारीख़ें पड़ेंगी-
हमसे नही होगा सब,ये मकान आप रख लिजिये।
वाह-वाही के निवाले तुम्हारी आदत हो गये हैं-
भूख लग सकती है,कद्रदान आप रख लीजिये।
देनी ही है तो ये धूल चढ़ी पुरानी किताबें दे दो-
ये दुर्लभ तलवार,तीर-कमान आप रख लीजिए।
यूँ दिखावे की ख़ातिर ओढ़ ये लेना इंसानियत-
गर यही ईमान है तो ये ईमान आप रख लीजिये।
══════❥❥══════
आने दो श्राप हिस्से में,वरदान आप रख लिजिये।।
फ़ीता फेंकोगे,कचहरी जाओगे,तारीख़ें पड़ेंगी-
हमसे नही होगा सब,ये मकान आप रख लिजिये।
वाह-वाही के निवाले तुम्हारी आदत हो गये हैं-
भूख लग सकती है,कद्रदान आप रख लीजिये।
देनी ही है तो ये धूल चढ़ी पुरानी किताबें दे दो-
ये दुर्लभ तलवार,तीर-कमान आप रख लीजिए।
यूँ दिखावे की ख़ातिर ओढ़ ये लेना इंसानियत-
गर यही ईमान है तो ये ईमान आप रख लीजिये।
══════❥❥══════