Ankahi Bateein🙃


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Репост из: इंद्र Meena
#प्यार_का_बंधन...

अनुज नाम था उसका....मेरे आफिस में थर्ड ग्रेड वर्कर था....मेरा तबादला अभी यहाँ हुआ था आफिसर की पोस्ट पर मैने तीन चार दिन पहले ही ज्वाईनिंग की थी....!!!

अनुज बहुत मेहनती व समझदार था मुझे तो दीदी ही बोलता था पर एक दिन मेरे जूनियर प्रशांत ने उसे डाँटते हु़ये बोला कि वो मेडम है....तो सपना मैम बोला करो बस तब से वो मुझे मैम बोलने लगा....पर जाने क्यूँ मुझे उसका दीदी बोलना अच्छा लगता था....!!!!

आज वो बहुत खुश था तो मैंने कहा...क्या हुआ अनुज आज बहुत खुश हो...????
हाँजी मैम कल राखी है ना इसलिये घर जा रहा हूँ...!!!
मैंने कहा...अच्छा तुम्हारी बहन है..!!!
जोर से हँसता हुआ बोला....है ना पाँच है...तीन बड़ी शादीशुदा है व दो छोटी है...!!!

मैंने कहा...तोहफे ले लिये बहनों के लिये...तो बोला आज खरीदूँगा ज्यादा मँहगे तो नहीं ले सकता पर जो भी...बोलकर जल्दी जल्दी अपना काम करने लगा...!!!!!
उसे देखकर बहुत अच्छा लग रहा था...सच कहूँ तो आज भाई की कमी बहुत खल रही थी...मैं इकलौती बेटी हूँ अपनी मम्मी-पापा की....तभी मन में एक ख्याल आया और पहले अनुज की फाईल निकालकर उसके घर का पता लिख लिया व जल्दी ही आफिस से निकल गयी....इक नयी उंमग के साथ शॉपिंग की ढेर सारी और घर आ गयी...!!!!

मम्मी ने आते ही बोला...अरे ! सपना आज ये इतना सब क्या खरीद लायी....;;;;
मैंने बोली राखी की तैयारी है मम्मी...वो हैरत से मेरा मुँह देखने लगी कि जो बेटी हर राखी पर उदास बैठी रहती है आज इतनी चहक रही है...फिर मैंने मम्मी को अपनी प्लानिंग बताई और पापा को भी समझाया तो वो भी मान गये..!!!!
आज राखी के दिन पहली बार मैं इतनी खुश थी व जल्दी जल्दी तैयार भी हो गयी...मैं ,पापा व मम्मी हम तीनों कार से अनुज के घर पहुँच गये....!!!

दरवाजा खुला था व शोर आ रहा था सब बहनों में पहले कौन राखी बाँधेगा...यही मस्ती मजाक चल रहा था...बहुत सुंदर नजारा था.....तभी मुझे देख अनुज एकदम सकपका गया....!!!

अरे मैम आप यहाँ कैसे....तो मैंने राखी निकाली और बोली अगर आप सबको मंजूर हो तो आज पहले मैं राखी बाँधना चाहती हूँ....क्या मेरे भाई बनोगे अनुज...मेरी आँखों से आँसू बहने लगे....अनुज ने बोला मैम मैं आपको क्या बोलूँ....मैं आपको क्या दे सकता हूँ...?????

उसने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया....मैं राखी बाँधी और सभी तोहफे निकाल कर सभी को दे दिये....अनुज के लिये घड़ी लायी थी वो भी उसके हाथ में बाँध दी और बोली...ये बंधन तोहफे का नही है....ये तो प्यार व विश्वास का है जो मुझे तुममें दिखा....अब से तुम मुझे मैम नही दीदी ही बोलना जैसे मुझे मिलते ही तुमने बोला था..

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🙏🙏🙏.🙏🙏🙏🙏


मंज़िलें पाँव पकडती हैं ठहरने के लिए

*शौक़ कहता है कि दो चार क़दम और सही*


एक बार मेरे शहर में एक प्रसिद्ध बनारसी विद्वान्
ज्योतिषी का आगमन हुआ...!!
माना जाता है कि उनकी वाणी में सरस्वती
विराजमान है। वे जो भी बताते है वह 100% सच
होता है।
501/- रुपये देते हुए एक मान्यवर ने अपना दाहिना
हाथ आगे बढ़ाते हुए ज्योतिषी को कहा
महाराज..
मेरी
मृत्यु कब कहां और किन परिस्थितियों में होगी?
ज्योतिषी ने उस मान्यवर की हस्त रेखाएं देखीं, चेहरे
और माथे को अपलक निहारते रहे।
स्लेट पर कुछ अंक लिख कर जोड़ते-घटाते रहे।
बहुत देर बाद वे गंभीर स्वर में बोले
मान्यवर, आपकी भाग्य रेखाएँ कहती है कि जितनी
आयु आपके पिता को प्राप्त होगी, उतनी ही आयु
आप भी पाएँगे।
जिन परिस्थितियों में और जहाँ आपके पिता की
मृत्यु होगी, उसी स्थान पर और उसी तरह, आपकी
भी मृत्यु होगी।
यह सुन कर वह मान्यवर भयभीत हो उठे और चल
पड़े......
एक घण्टे बाद...
वही मान्यवर वृद्धाश्रम से अपने वृद्ध पिता को साथ
लेकर घर लौट रहे थे.. !


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Репост из: इंद्र Meena
एक *चूहा* एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।

एक दिन *चूहे* ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।

उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक *चूहेदानी* थी।

ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर *कबूतर* को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।

कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?

निराश चूहा ये बात *मुर्गे* को बताने गया।

मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।

हताश चूहे ने बाड़े में जा कर *बकरे* को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।

उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई, जिस में एक ज़हरीला *साँप* फँस गया था।

अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।

तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे *कबूतर* का सूप पिलाने की सलाह दी।

कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।

खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी *मुर्गे* को काटा गया।

कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो *बकरे* को काटा गया।

*चूहा* अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ……….।

_*अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।*_

*_समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है।_*

                   जय हिंद🇮🇳
                    💞🙏💞


*राजू के पास रात को सांताक्लॉज आया और बोला कि कोई Wish मांगो*

*राजू बोला की मेरी बीवी झगड़ा बहुत करती है कोई दूसरी बीवी दिलवा दो...,*

*सांताक्लॉज़ ने राजू को इतना मारा की अस्पताल जाना पड़ा...!!*

*फिर पता चला राजू की बीवी ही सांताक्लॉज़ बन कर आयी थी.🤣*

*सावधान रहें, सतर्क रहें।*
😂 😂 😂

Happy crismas day


Репост из: इंद्र Meena
इंसान की सोच ही उसके उसके व्यक्तित्व का परिचय कराती है :-
इंटरव्यूअर *: बीएमडब्ल्यू खरीदने के लिए आपको कितना समय लगेगा ?
* डॉक्टर *: मुझे लगता है कि मैं अपने प्रेक्टिस से 6-8 महीने में खरीद सकता
हूं।
* एमबीए *: मुझे कड़ी मेहनत के साथ 11-12 महीने की लगेंगे।
* इंजीनियर *: बहुत मेहनत की तो भी कम से कम 2-3 साल ।
* श्री रतन टाटा *: मुझे लगता है... लगभग 5 साल।
*
'इटरव्यूअर *: श्री टाटा क्यों?
* श्री रतन टाटा *: यह आसान नहीं है, बीएमडब्ल्यू एक बड़ी कंपनी है!

💞💞🙏💞💞


*कुछ न कुछ छूटना तो लाज़मी है।*

अचानक से आज यूँ ही ख़्याल आया कि....

अख़बार पढ़ा तो प्राणायाम छूटा,
प्राणायाम किया तो अख़बार छूटा,
दोनों किये तो नाश्ता छूटा,
सब जल्दी जल्दी निबटाये
तो आनंद छूटा,
मतलब.....
कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है...!!

जॉब देखो तो परिवार छूट जाता है,
और परिवार देखो तो जॉब छूट जाता है
और दोनों को छोड़ने की कल्पना मात्र से,
लगता है कि रूह छूटी,
कुछ ना कुछ छूटना तो लाजमी है

हेल्दी खाया तो स्वाद छूटा,
स्वाद का खाया तो हेल्थ छूटी,
दोनों किये तो.....
अब इस झंझट में कौन पड़े..!!

मुहब्बत की तो शादी टूटी,
शादी की तो मुहब्बत छूटी
दोनों किये तो वफ़ा छूटी,
अब इस पचड़े में कौन पड़े..!!
मतलब
कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है...!!!

औरों का सोचा तो मन का छूटा,
मन का लिखा तो तिस्लिम टूटा,
ख़ैर हमें क्या..
ख़ुश हुए तो हँसी छूटी,
दुःखी हुए तो रुलायी छूट गयी,
मतलब...
कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है...!!!

इस छूटने में ही तो पाने की ख़ुशी है,
जिसका कुछ नहीं छूटा,
वो इंसान नहीं मशीन है,
इसलिये कुछ ना कुछ छूटना तो लाज़मी है...!!!

जी लो जी भर कर
क्योंकि एक दिन
ये ज़िन्दगी छूटना भी
लाज़मी है.....

💞🙏💞


*🌷"मेरा दरवाज़ा खटखटाने का शुल्क"🌷*

जिन घरों में मैं अखबार डालता हूं उनमें से एक का मेलबॉक्स उस दिन पूरी तरह से भरा हुआ था, इसलिए मैंने उस घर का दरवाजा खटखटाया।
उस घर के मालिक, बुजुर्ग व्यक्ति श्री बनर्जी ने धीरे से दरवाजा खोला।
मैंने पूछा, "सर, आपका मेलबॉक्स इस तरह से भरा हुआ क्यों है?"
उन्होंने जवाब दिया, "ऐसा मैंने जानबूझकर किया है।" फिर वे मुस्कुराए और अपनी बात जारी रखते हुए मुझसे कहा "मैं चाहता हूं कि आप हर दिन मुझे अखबार दें... कृपया दरवाजा खटखटाएं या घंटी बजाएं और अखबार मुझे व्यक्तिगत रूप से सौंपें।"
मैंने हैरानी से प्रश्न किया, " आप कहते हैं तो मैं आपका दरवाजा ज़रूर खटखटाऊंगा, लेकिन यह हम दोनों के लिए असुविधा और समय की बर्बादी नहीं होगी ?"
उन्होंने कहा, "आपकी बात सही है... फिर भी मैं चाहता हूं कि आप ऐसा करें ...... *मैं आपको दरवाजा खटखटाने के शुल्क के रूप में हर महीने 500/- रुपये अतिरिक्त दूंगा।"*

विनती भरी अभिव्यक्ति के साथ, उन्होंने कहा, *"अगर कभी ऐसा दिन आए जब आप दरवाजा खटखटाएं और मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिले, तो कृपया पुलिस को फोन करें!"*

उनकी बात सुनकर मैं चौंक-सा गया और पूछा, "क्यों सर?"
उन्होंने उत्तर दिया, "मेरी पत्नी का निधन हो गया है, मेरा बेटा विदेश में रहता है, और मैं यहाँ अकेला रहता हूँ । कौन जाने, मेरा समय कब आएगा?"
उस पल, मैंने उस बुज़ुर्ग आदमी की आंखों में छलक आए आंसुओं को देख कर अपने भीतर एक हलचल महसूस कीं ।
उन्होंने आगे कहा, *"मैं अखबार नहीं पढ़ता... मैं दरवाजा खटखटाने या दरवाजे की घंटी बजने की आवाज सुनने के लिए अखबार लेता हूं। किसी परिचित चेहरे को देखने और कुछ परस्पर आदान-प्रदान करने के इरादे से....!"*
उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, "नौजवान, कृपया मुझ पर एक एहसान करो! यह मेरे बेटे का विदेशी फोन नंबर है। अगर किसी दिन तुम दरवाजा खटखटाओ और मैं जवाब न दूं, तो कृपया मेरे बेटे को फोन करके इस बारे में सूचित कर देना ..."
इसे पढ़ने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि हमारे दोस्तों के समूह में बहुत सारे अकेले रहने वाले बुजुर्ग लोग हैं।
कभी-कभी, आपको आश्चर्य हो सकता है कि वे अपने बुढ़ापे में भी व्हाट्सएप पर संदेश क्यों भेजते रहते हैं, जैसे वे अभी भी बहुत सक्रिय हों।
*दरअसल, सुबह-शाम के इन अभिवादनों का महत्व दरवाजे पर दस्तक देने या घंटी बजाने के अर्थ के समान ही है;  यह एक-दूसरे की सुरक्षा की कामना करने और देखभाल व्यक्त करने का एक तरीका है।*
*आजकल, व्हाट्सएप टेलीग्राम बहुत सुविधाजनक है । अगर आपके पास समय है तो अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को व्हाट्सएप चलाना सिखाएं!*
*किसी दिन, यदि आपको उनकी सुबह की शुभकामनाएँ या संदेश नहीं मिलता है, तो हो सकता है कि वे अस्वस्थ हों और उन्हें आप जैसे किसी साथी की आवश्यकता हो 

                  🙏🙏🙏🙏


थोड़ी देर में रोना-धोना मच गया । आस पड़ोस के लोग आ गए। बेटे को बुलाया गया और अम्मा को अंतिम यात्रा के लिए तैयार किया गया अम्मा को नहला धुला कर, सुहागन की तरह तैयार कर, अर्थी पर लेटा कर बाहर लाया गया ।
बाबा ने देखा अम्मा के माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी लगी थी । बाबा उठे और घर में गए । थोड़ी देर बाद बाहर आए और धीरे-धीरे अम्मा की अर्थी के पास गये । और अम्मा के माथे पर से बिंदी हटा दी,
" बाबा क्या कर रहे हो ? अम्मा सुहागन थी । आप बिंदी क्यों हटा रहे हो ?" बेटे ने कहा ।
" बेटा! उसका पति बिंदी खरीदने की औकात नहीं रखता था, इसलिए हटा रहा हूं" !
सुनकर सब लोग अवाक रह गए । बहू शर्मसार हो गई । सब ने देखा बाबा अपने हाथ में लाए हिंगलू से एक बड़ी सी लाल बिंदिया अम्मा के माथे पर लगा रहे हैं ।
थोड़ी देर बाद बहू की चित्कार छूट गई । बाबा भी अम्मा के साथ हमेशा हमेशा के लिए लंबी यात्रा पर रवाना हो गए थे।
मित्रों, इस भावनात्मक, हृदय स्पर्शी कहानी बहुत कुछ संदेश दे रहा है । अपने समाज मे सिर्फ 2-4 प्रतिशत ही बुजुर्गों की स्थिति परिवार में सम्मान जनक है । इसका मूल कारण कही संयुक्त परिवार का एकल परिवार में रूपांतरित होकर नाते ,रिश्ते की समाप्ति, धन की लिप्सा में अंधी दौड़ एवं लड़के, लड़कियों का अधिक पढ़ कर सभी से अधिक जानकारी व बुद्धिमान होने का झूठा अभिमान,किताबी ज्ञान का होना परन्तु व्यवहारिक ज्ञान की कमी ।
*कृपया हम सभी एक छोटा प्रयास से अपने घर के बुजुर्गों का उचित सम्मान करें, सभी को एक दिन बूढ़ा होना है । माता पिता के नही रहने पर उनका महत्व मालूम पड़ता है । पश्चिमी देशों का अनुसरण नही कर अपनी भारतीय संस्कृति का अनुसरण करें ।
सादर प्रणाम।
🙏🙏🙏🙏


परीक्षा में गब्बरसिंह का चरित्र चित्रण करने के लिए कहा गया-😀😁

.

दसवीं के एक छात्र ने लिखा-😉

.

1. सादगी भरा जीवन-

:- शहर की भीड़ से दूर जंगल में रहते थे,

एक ही कपड़े में कई दिन गुजारा करते थे,

खैनी के बड़े शौकीन थे.😂

.

2. अनुशासनप्रिय-

:- कालिया और उसके साथी को प्रोजेक्ट ठीक से न करने पर सीधा गोली मार दिये थे.😂

.

3. दयालु प्रकृति-

:- ठाकुर को कब्जे में लेने के बाद ठाकुर के सिर्फ हाथ काटकर छोड़ दिया था, चाहते तो गला भी काट सकते थे😂

.

4. नृत्य संगीत प्रेमी-

;- उनके मुख्यालय में नृत्य संगीत के कार्यक्रम चलते रहते थे..

'महबूबा महबूबा',😂

'जब तक है जां जाने जहां'.

बसंती को देखते ही परख गये थे कि कुशल नृत्यांगना है.😂😂

.

5. हास्य रस के प्रेमी-

:- कालिया और उसके साथियों को हंसा हंसा कर ही मारे थे. खुद भी ठहाका मारकर हंसते थे, वो इस युग के 'लाफिंग पर्सन' थे.😂

.

6. नारी सम्मान-

:- बंसती के अपहरण के बाद सिर्फ उसका नृत्य देखने का अनुरोध किया था,😀😂

.

7. भिक्षुक जीवन-

:- उनके आदमी गुजारे के लिए बस अनाज मांगते थे,

कभी बिरयानी या चिकन टिक्का की मांग नहीं की.. .😂

.

8. समाज सेवक-

:- रात को बच्चों को सुलाने का काम भी करते थे ..

सो जा नही तो गब्बर सिंह आ जायेगा

टीचर ने पढा तो आँख भर आई और बोली सारी गलती जय और वीरू की है!!

😁😂😂😂😂


एक छोटा सा बच्चा अपने दोनों हाथों
एक एक एप्पल लेकर खड़ा था
उसके पापा ने मुस्कराते हुए कहा कि
"बेटा एक एप्पल मुझे दे दो"
इतना सुनते ही उस बच्चे ने एक एप्पल को
दांतो से कुतर लिया.
उसके पापा कुछ बोल पाते उसके पहले ही
उसने अपने दूसरे एप्पल को भी दांतों से
कुतर लिया
अपने छोटे से बेटे की इस हरकत को
देखकर बाप ठगा सा रह गया और उसके
चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई थी...
तभी उसके बेटे ने अपने नन्हे हाथ आगे
की ओर बढाते हुए पापा को कहा....
"पापा ये लो.. ये वाला ज्यादा मीठा है.
शायद हम कभी कभी पूरी बात जाने बिना
निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं..
किसी ने क्या खूब लिखा है:
नजर का आपरेशन
तो सम्भव है,
पर नजरिये का नही..!!!
फर्क सिर्फ सोच का होता है.....
वरना वही सीढ़ियां ऊपर भी जाती है,
और निचे भी आती है

🙏🙏


Репост из: इंद्र Meena
एक बार एक सेठ के घर इनकम टैक्स का छापा पड़ा।

इनकम टैक्स अफसरः बाकी तो ठीक है सेठजी,
          लेकिन आपने कुत्तों को जलेबी खिलाने
          का खर्चा 5 लाख रुपये जो लिखे हैं,
          उससे हम संतुष्ट नहीं हैं।
          क्या आप इसका कोई पक्का दस्तावेज
          या बिल या कोई प्रूफ दिखा सकते हैं?

सेठः जी नहीं, इसका तो कोई प्रूफ
        या दस्तावेज नहीं है मेरे पास।

इनकम टैक्स अफसरः सेठजी, ये तो दिक्कत
        हो गई। हां, एक रास्ता है। यदि आप
        हमें 25,000 रुपये दे दें तो हम बात
        को यहीं रफा-दफा कर देंगे।

सेठजी मान गए और बोले कि ठीक है साहब,
मैं आपको 25,000 दे देता हूं।

सेठ ने अपने मुनीम को आवाज लगाई
और कहाः मुनीम जी, इन लोगों को 25,000 रुपये
         दे दो और खाते में लिख देना कुत्तों ने
         25,000 की जलेबियां और खाई।


संस्कार     

एक  बड़ी  सी  गाड़ी आकर  बाजार  में  रूकी, कार  में  ही  मोबाईल  से  बातें  करते  हुयें, महिला  ने अपनी  बच्ची  से  कहा, जा उस  बुढिया  से  पूछ  सब्जी कैंसे  दी..?

बच्ची  कार  से  उतरतें  ही,
अरें  बुढिया  यें  सब्जी  कैंसे दी?

Rs 40  रूपयें  किलों, बेबी जी.....

सब्जी  लेते  ही, उस  बच्ची  ने  सौ  रूपयें  का  नोट  उस सब्जी  वाली  को  फेंक कर दिया, और  आकर  कार  पर बैठ  गयी।

कार  जाने  लगी तभी  अचानक  किसी  ने  कार  के  सीसे  पर  दस्तक  दी,
एक  छोटी  सी  बच्ची  जो हाथ  में  60  रूपयें  कार  में  बैठी  उस  औरत  को  देते हुये, बोलती  हैं  आंटी  जी  यें आपके  सब्जी  के  बचे  60 रूपयें  हैं, आपकी  बेटी  भूल आयी  हैं ।

कार  में  बैठी  औरत  ने  कहा तुम  रख  लों...!

उस  बच्ची  ने  बड़ी  ही  मिठी और  सभ्यता  से  कहा, नहीं आंटी  जी  हमारें  जितने  पैंसे बनते  थें  हमने  ले  लियें , हम इसे  नहीं  रख  सकतें, मैं आपकी  आभारी  हूं, आप हमारी  दुकान  पर  आए, आशा  करती  हूं, की  सब्जी आपको  अच्छी  लगें, जिससे आप  हमारें  ही  दुकान  पर हमेशा  आए, उस  लड़की  ने हाथ  जोड़े  और  अपनी दुकान  लौट  गयी.......!

कार  में  बैठी  महिला  उस लड़की  से  बहुत  प्रभावित हुई  और  कार  से  उतर  कर फिर  सब्जी  की  दुकान  पर जाने  लगी, जैसें  ही  वहाँ पास  गयी, सब्जी  वाली अपनी  बच्ची  को  पूछते  हुयें,  तुमने  तमीज  से  बात की  ना, कोई  शिकायत  का मौका  तो  नही  दिया  ना??

बच्ची  ने  कहा, हाँ  माँ  मुझे आपकी  सिखाई  हर  बात याद  हैं, कभी  किसी  बड़े  का  अपमान  मत  करो, उनसे  सभ्यता  से  बात  करो, उनकी  कद्र  करो, क्यूकि  बड़े  बुजर्ग  बड़े  ही होते  हैं, मुझे  आपकी  सारी बात  याद  हैं, और  मैं  सदैव इन  बातों  का  स्मरण रखूगी,

बच्ची  ने  फिर  कहा, अच्छा माँ  अब  मैं  स्कूल  चलती  हूं, शाम  में  स्कूल  से  छुट्टी होते  ही, दुकान  पर  आ जाऊंगी.......!

कार  वाली  महिला  शर्म  से पानी  पानी  थी, क्यूकि  एक सब्जी  वाली  अपनी  बेटी को,  इंसानियत  और  बड़ों से  बात  करने  शिष्टाचार करने  का  पाठ  सीखा  रही थी  और  वो  अपने  अपनी बेटी  को  छोटा  बड़ा  ऊंच नीच  का  मन  में  बीज  बो रही  थी.....!!

"गौर  करना  दोस्त,
बहुत  अच्छा  तो  वो कहलाता  हैं, बहुत  अच्छा तो  वो  कहलाता  हैं, जो आसमान  पर  भी  रहता  हैं, जमीं  पर  भी  बहता  चला जाता  हैं"....!

"बस  इंसानियत, भाईचारें, सभ्यता, आचरण, वाणी में मिठास, सब  की  इज्जत करने  की  सीख  दीजिए अपने  बच्चों  को, क्यूकि  अब  बस  यही  पढ़ाई  हैं  जो आने  वाले  समय  में  बहुत ही  ज्यादा  ही  मुश्किल  होगी, इसे  पढ़ने  इसे  याद रखने  इसे  ग्रहण  करने  में, और  जीवन  को  उपयोगी बनानें  में.....!!

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व्हाट्सएप में प्राप्त एक रचना
लेखक: अज्ञात

🙏🏻 मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किन्तु इंसान कभी-कभार ही आता है। 🙏🏻

बनारस में एक चर्चित दूकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त-यार आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई।

उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया,

"दादी लस्सी पियोगी ?"

मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक। क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 40 रुपए की एक है। इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा *मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी।*

दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा,

"ये किस लिए?"

"इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी !"

भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था... रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी।

एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बनाने को कहा... उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई।

अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका।

डर था कि कहीं कोई टोक ना दे.....कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर आपत्ति न हो जाये... लेकिन वो कुर्सी जिसपर मैं बैठा था मुझे काट रही थी.....

लस्सी कुल्लड़ों मे भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़ पकड़कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था...इससे किसी को आपत्ति नही हो सकती थी... हां! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा... लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा,

"ऊपर बैठ जाइए साहब! *मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किन्तु इंसान कभी-कभार ही आता है।

🙏🙏🏻


*हर घर में शबरी*
🙏🙏
पति के लिए जूस बनाया और जूस पीने से पहले ही पति की आंख लग गई थी।
नींद टूटी,तब तक एक घंटा हो चुका था।
पत्नी को लगा कि इतनी देर से रखा जूस कहीं खराब ना हो गया हो।
उसने पहले जरा सा जूस चखा और जब लगा कि स्वाद बिगड़ा नहीं है, तो पति को दे दिया पीने को।

सवेरे जब बच्चों के लिए टिफिन बनाया तो सब्जी चख कर देखी।
नमक, मसाला ठीक लगा तब खाना पैक कर दिया।
स्कूल से वापस आने पर बेटी को संतरा छील कर दिया।
एक -एक परत खोल कर चैक करने के बाद कि कहीं कीड़े तो नहीं हैं,खट्टा तो नहीं है,
सब देखभाल कर जब संतुष्टि हुई तो बेटी को एक एक करके संतरे की फाँके खाने के लिए दे दीं।

दही का रायता बनाते वक्त लगा कि कहीं दही खट्टा तो नहीं हुआ और चम्मच से मामूली दही ले कर चख लिया।
"हां ,ठीक है ", जब यह तसल्ली हुई तब ही दही का रायता बनाया।

सासु माँ ने सुबह खीर खूब मन भर खाई और रात को फिर खाने मांगी तो झट से बहु ने सूंघी और चख ली कि कहीँ गर्मी में दिन भर की बनी खीर खट्टी ना हो गयी हो।

बेटे ने सेंडविच की फरमाईश की तो ककड़ी छील एक टुकड़ा खा कर देखा कि कहीं कड़वी तो नहीं है। ब्रेड को सूंघा और चखा की पुरानी तो नहीं दे दी दुकान वाले ने। संतुष्ट होने के बाद बेटे को गर्मागर्म सेंडविच बनाकर खिलाया।

दूध, दही, सब्जी,फल आदि ऐसी कितनी ही चीजें होती हैं जो हम सभी को परोसने से पहले मामूली-सी चख लेते हैं।

कभी कभी तो लगता है कि हर मां, हर बीवी, हरेक स्त्री अपने घर वालों के लिए शबरी की तरह ही तो है।
जो जब तक खुद संतुष्ट नहीं हो जाती, किसी को खाने को नही देती।
और यही कारण तो है कि हमारे घर वाले बेफिक्र होकर इस शबरी के चखे हुए खाने को खाकर स्वस्थ और सुरक्षित महसूस करते हैं।

हमारे भारतीय परिवारों की हर स्त्री शबरी की तरह अपने परिवार का ख्याल रखती है और घर के लोग भी शबरी के इन झूठे बेरों को खा कर ही सुखी, सुरक्षित,स्वस्थ और संतुष्ट रहते हैं।

हर उस महिला को समर्पित जो अपने परिवार के लिये *"शबरी"* है।
सादर प्रणाम है मातृशक्ति को...
🙏🙏

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