पाताल विराट् पुरुष के तलवे हैं, उनकी एडियाँ और पंजे रसातल हैं, दोनों गुल्फ—एड़ी के ऊपर की गाँठें महातल हैं, उनके पैर के पिंडे तलातल हैं,। विश्व-मूर्ति भगवान के दोनों घुटने सुतल हैं, जाँघें वितल और अतल हैं, पेंडू भूतल है और उनके नाभिरूप सरोवरों को ही आकाश कहते हैं । आदिपुरुष परमात्मा की छाती को स्वर्गलोक, गले को महर्लोक, मुख को जनलोक और ललाट को तपोलोक कहते हैं। उस सहस्त्र सिर वाले भगवान का मस्तक समूह ही सत्यलोक है । इन्द्रादि देवता उनकी भुजाएँ हैं। दिशाएँ कान और शब्द श्रवणेन्द्रिय हैं। दोनों अश्विनीकुमार उनकी नासिका के छिद्र हैं; गन्ध घ्राणेन्द्रिय है और धधकती हुई आग उनका मुख है ।