ीं करता । मुझे सन्देह है कि नेहरू के ही किसी समर्थक ने नरेन्द्र मोदी और भाजपा को क्षति पँहुचाने के उद्देश्य से श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर हेतु गलत मुहूर्त का निर्धारण जानबूझकर किया है ताकि गलत मुहूर्त के कारण देश को भविष्य में क्षति पँहुचे और मोदी सरकार की किरकिरी हो तथा जनता भड़के ।
भौतिक खगोलविज्ञान पर आधारित पञ्चाङ्ग को आजकल “दृक्सिद्धान्त” कहा जाने लगा है । अयनांश पर मनमाने विचारों के कारण दृक्सिद्धान्त के अनेक भेद हैं जिनमें से तथाकथित चित्रापक्षीय अयनांश पर सरकारी “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” आधारित है । चित्रापक्षीय अयनांश आधुनिक युग में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नौकरों की खोज है जिसे केतकर बन्धुओं ने ज्योतिष में प्रचारित किया और नेहरू द्वारा बनायी गयी “पञ्चाङ्ग रिफॉर्म कमिटी” के सचिव निर्मल चन्द्र लाहिड़ी ने “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” पर लागू किया ।
श्रीरामजन्मभूमि गर्भगृह के स्थान से ५ अगस्त २०२० ई⋅ दोपहर १२:१५ बजे की उक्त चित्रापक्षीय−दृक्सिद्धान्त तथा पारम्परिक बीजसंस्कारित सूर्यसिद्धान्त पर आधारित दोनों कुण्डलियाँ संलग्न चित्र में प्रस्तुत हैं । दोनों सिद्धान्तों में केवल शनि की राशि में अन्तर है परन्तु भावचक्र में शनि में भी अन्तर नहीं है;तथा केतु भावचक्र में अन्तर रखता है परन्तु राशिचक्र में नहीं । अन्य सारी बातों में दृक्सिद्धान्तीय और सूर्यसिद्धान्तीय कुण्डलियों में कोई अन्तर नहीं है ।
अब भावफल देखते हैं —
दोनों सिद्धान्तों के अनुसार लग्नेश शुक्र मृत्युभाव में हैं,अतः लग्न अशुभ है । केवल इतना कारण ही उक्त काल को किसी भी शुभ कर्म हेतु वर्जित करने के लिये पर्याप्त है । बृहस्पति तृतीय तथा षष्ठ भावों के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ हैं,और तृतीय भाव में बैठने के कारण अशुभता बढ़ गयी । चन्द्रमा दशमेश हैं जिसे केन्द्रश दोष कहा जाता है । सूर्य एकादशेश हैं;एकादशेश को सर्वाधिक अशुभ माना जाता है । अशुभ सूर्य में अस्त होने के कारण बुध भी अशुभ हैं । मङ्गल मारकेश भी हैं तथा मारक भी,और शत्रुभाव में हैं ।
शनि शुभ हैं किन्तु भावचक्र में अत्यधिक अशुभ बृहस्पति के साथ रहने के कारण दोषग्रस्त है । सूर्यसिद्धान्तीय कुण्डली में शनि शत्रु बृहस्पति की राशि में रहने के कारण प्रबल तथा अशुभ बृहस्पति के पूर्ण वश में हैं । किन्तु दृक्सिद्धान्तीय कुण्डली में शनि स्वराशि में रहने के कारण बलवान हैं परन्तु दृक्सिद्धान्तीय कुण्डली में भी भावचक्र में शनि बृहस्पति के साथ होने के कारण दोषग्रस्त हैं । दोनों सिद्धान्तों में राहु और केतु मूलत्रिकोण में होने के कारण बली हैं ।
किसी कुण्डली में केवल शनि,राहु और केतु ही प्रबल हों और अन्य सारे ग्रह अशुभ हों तो भूतप्रेत,चाण्डालों,कसाईयों,चमगादड़खोरों,आदि के उत्पात होते हैं तथा अन्य कई प्रकार के सङ्कट आते हैं ।
कहा जाता है कि मन्दिर में ऐसे पत्थरों का प्रयोग किया जा रहा है जिनकी आयु एक सहस्र वर्षों की होगी । अतः एक सहस्र वर्षों तक उपरोक्त मुहूर्त का फल हिन्दुओं को भोगना पड़ेगा ।
इसे टाला नहीं जा सकता,कलियुग का प्रभाव है । ‘महापुरुषों’ को समझाना व्यर्थ है । जिन लोगों ने जानबूझकर गलत मुहूर्त निर्धारित किया वे नरक जायेंगे,जिनको इस बात की जानकारी नहीं है उनको भगवान क्षमा कर सकते हैं क्योंकि भगवान भाव देखते हैं । किन्तु अभी तो भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में सो रहे हैं,चार मास के उपरान्त जब उठेंगे तो अपनी ही जन्मभूमि पर ऐसा करामात देखकर क्या करेंगे?अभी तो उनके अवतार का भी समय नहीं है,और सूर्य भगवान के सिद्धान्त की अवमानना करने वालों को हरिशयनकाल में सोये हुए श्रीविष्णु से भय क्यों लगेगा?
केवल इतना सन्तोष है कि बाबरी से तो बेहतर वस्तु ही बनेगी । यहाँ तो ऐसे नेता भी हैं जो कहते हैं कि राममन्दिर बनने से कोरोना नहीं हटेगा;उनके राज्य के पालघर में सन्तों की हत्या होने पर कोरोना हट गयी या महाराष्ट्र कोरोना में भी “महा” हो गया?
दो स्क्रीनशॉट संलग्न हैं जिनमें स्पष्ट लिखा है कि कौन दृक्पक्षीय है और कौन सूर्यसिद्धान्तीय । दोनों मेरे “कुण्डली सॉफ्टवेयर” द्वारा निर्मित हैं । “कुण्डली सॉफ्टवेयर” में दृक्पक्षीय ऑप्शन को बन्द करके मैं वितरित करता हूँ क्योंकि ज्योतिष में दृक्पक्ष का प्रचार मैं नहीं चाहता,यद्यपि कई लोगों का कहना है कि दोनों ऑप्शन रहने पर लोग तुलना कर सकेंगे — वैसे लोगों के लिये अमरीका में रहने वाले नरसिंह राव द्वारा निर्मित “जगन्नाथ होरा” दृक्पक्षीय सॉफ्टवेयर के वर्सन ७⋅६६ में मेरा सूर्यसिद्धान्तीय ऑप्शन भी है,यद्यपि नरसिंह राव दृक्पक्ष के समर्थक हैं और सूर्यसिद्धान्तीय ऑप्शन में भी भावचलितचक्र पराशरी नहीं है ।
भौतिक खगोलविज्ञान पर आधारित पञ्चाङ्ग को आजकल “दृक्सिद्धान्त” कहा जाने लगा है । अयनांश पर मनमाने विचारों के कारण दृक्सिद्धान्त के अनेक भेद हैं जिनमें से तथाकथित चित्रापक्षीय अयनांश पर सरकारी “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” आधारित है । चित्रापक्षीय अयनांश आधुनिक युग में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नौकरों की खोज है जिसे केतकर बन्धुओं ने ज्योतिष में प्रचारित किया और नेहरू द्वारा बनायी गयी “पञ्चाङ्ग रिफॉर्म कमिटी” के सचिव निर्मल चन्द्र लाहिड़ी ने “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” पर लागू किया ।
श्रीरामजन्मभूमि गर्भगृह के स्थान से ५ अगस्त २०२० ई⋅ दोपहर १२:१५ बजे की उक्त चित्रापक्षीय−दृक्सिद्धान्त तथा पारम्परिक बीजसंस्कारित सूर्यसिद्धान्त पर आधारित दोनों कुण्डलियाँ संलग्न चित्र में प्रस्तुत हैं । दोनों सिद्धान्तों में केवल शनि की राशि में अन्तर है परन्तु भावचक्र में शनि में भी अन्तर नहीं है;तथा केतु भावचक्र में अन्तर रखता है परन्तु राशिचक्र में नहीं । अन्य सारी बातों में दृक्सिद्धान्तीय और सूर्यसिद्धान्तीय कुण्डलियों में कोई अन्तर नहीं है ।
अब भावफल देखते हैं —
दोनों सिद्धान्तों के अनुसार लग्नेश शुक्र मृत्युभाव में हैं,अतः लग्न अशुभ है । केवल इतना कारण ही उक्त काल को किसी भी शुभ कर्म हेतु वर्जित करने के लिये पर्याप्त है । बृहस्पति तृतीय तथा षष्ठ भावों के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ हैं,और तृतीय भाव में बैठने के कारण अशुभता बढ़ गयी । चन्द्रमा दशमेश हैं जिसे केन्द्रश दोष कहा जाता है । सूर्य एकादशेश हैं;एकादशेश को सर्वाधिक अशुभ माना जाता है । अशुभ सूर्य में अस्त होने के कारण बुध भी अशुभ हैं । मङ्गल मारकेश भी हैं तथा मारक भी,और शत्रुभाव में हैं ।
शनि शुभ हैं किन्तु भावचक्र में अत्यधिक अशुभ बृहस्पति के साथ रहने के कारण दोषग्रस्त है । सूर्यसिद्धान्तीय कुण्डली में शनि शत्रु बृहस्पति की राशि में रहने के कारण प्रबल तथा अशुभ बृहस्पति के पूर्ण वश में हैं । किन्तु दृक्सिद्धान्तीय कुण्डली में शनि स्वराशि में रहने के कारण बलवान हैं परन्तु दृक्सिद्धान्तीय कुण्डली में भी भावचक्र में शनि बृहस्पति के साथ होने के कारण दोषग्रस्त हैं । दोनों सिद्धान्तों में राहु और केतु मूलत्रिकोण में होने के कारण बली हैं ।
किसी कुण्डली में केवल शनि,राहु और केतु ही प्रबल हों और अन्य सारे ग्रह अशुभ हों तो भूतप्रेत,चाण्डालों,कसाईयों,चमगादड़खोरों,आदि के उत्पात होते हैं तथा अन्य कई प्रकार के सङ्कट आते हैं ।
कहा जाता है कि मन्दिर में ऐसे पत्थरों का प्रयोग किया जा रहा है जिनकी आयु एक सहस्र वर्षों की होगी । अतः एक सहस्र वर्षों तक उपरोक्त मुहूर्त का फल हिन्दुओं को भोगना पड़ेगा ।
इसे टाला नहीं जा सकता,कलियुग का प्रभाव है । ‘महापुरुषों’ को समझाना व्यर्थ है । जिन लोगों ने जानबूझकर गलत मुहूर्त निर्धारित किया वे नरक जायेंगे,जिनको इस बात की जानकारी नहीं है उनको भगवान क्षमा कर सकते हैं क्योंकि भगवान भाव देखते हैं । किन्तु अभी तो भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में सो रहे हैं,चार मास के उपरान्त जब उठेंगे तो अपनी ही जन्मभूमि पर ऐसा करामात देखकर क्या करेंगे?अभी तो उनके अवतार का भी समय नहीं है,और सूर्य भगवान के सिद्धान्त की अवमानना करने वालों को हरिशयनकाल में सोये हुए श्रीविष्णु से भय क्यों लगेगा?
केवल इतना सन्तोष है कि बाबरी से तो बेहतर वस्तु ही बनेगी । यहाँ तो ऐसे नेता भी हैं जो कहते हैं कि राममन्दिर बनने से कोरोना नहीं हटेगा;उनके राज्य के पालघर में सन्तों की हत्या होने पर कोरोना हट गयी या महाराष्ट्र कोरोना में भी “महा” हो गया?
दो स्क्रीनशॉट संलग्न हैं जिनमें स्पष्ट लिखा है कि कौन दृक्पक्षीय है और कौन सूर्यसिद्धान्तीय । दोनों मेरे “कुण्डली सॉफ्टवेयर” द्वारा निर्मित हैं । “कुण्डली सॉफ्टवेयर” में दृक्पक्षीय ऑप्शन को बन्द करके मैं वितरित करता हूँ क्योंकि ज्योतिष में दृक्पक्ष का प्रचार मैं नहीं चाहता,यद्यपि कई लोगों का कहना है कि दोनों ऑप्शन रहने पर लोग तुलना कर सकेंगे — वैसे लोगों के लिये अमरीका में रहने वाले नरसिंह राव द्वारा निर्मित “जगन्नाथ होरा” दृक्पक्षीय सॉफ्टवेयर के वर्सन ७⋅६६ में मेरा सूर्यसिद्धान्तीय ऑप्शन भी है,यद्यपि नरसिंह राव दृक्पक्ष के समर्थक हैं और सूर्यसिद्धान्तीय ऑप्शन में भी भावचलितचक्र पराशरी नहीं है ।