🔱भारतवर्ष🔱


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भारतवर्ष के गौरवमय इतिहास से युवा पीढ़ी को अवगत करवाना तथा युवा पीढ़ी को धर्म, राष्ट्र तथा समाज के प्रति जागरूक करना इस चैनल का मुख्य उद्देश्य है।
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*आओ जरा विचारें कि आखिर हिन्दू पतनोन्मुखी क्यों है??*

आज हम हिंदुओं की वास्तविक स्थिति का आकलन करें ।

आज का जो हिंदू है वह दिशाहीन कथित हिंदुवादी राजनैतिक दल और विविध पंथों में विभक्त हो चुका है।

*यह पंथ धर्म के नाम पर ही हिंदुओं में विभिन्नता पैदा करते हैं*

हिंदुओं के चार पुरुषार्थ शास्त्रों में वर्णित हैं,

*उनमें से केवल दो पुरूषार्थ अर्थ और काम तक ही हिंदू सीमित रह चुका है*
तथा धन, मान, दान और परिजन रूपी कीचड़ में हिंदू आपादमस्तक निमग्न है ।

*और शिक्षा पद्धति कैसी है हिंदुओं की?*

आज के युवाओं की नीति और अध्यात्म विहीन शिक्षा पद्धति के कारण अश्लील मनोरंजन एवं मादक द्रव्य का रसिक युवक और युवती का समुदाय ,इस समाज में कोई क्रांति ला सके यह सर्वथा असंभव सा प्रतीत होता है ।

आज जो शिक्षा पद्धति है हमारी सभ्यता का विलोप वह क्रांति बिंदु के नाम पर करती है। हमारी सभ्यता का विलोप होता है ,तो खबर बनती है कि एक क्रांति हुई।

एक बात अत्यंत विचार करने योग्य है ब्रम्हर्षि श्री बाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण और महर्षि द्वैपायन जी महाराज के द्वारा रचित महाभारत दो आर्ष प्रणीत ग्रंथ हैं ।

दोनों में एक तरफ माता सीता जी के शील पर कटाक्ष दूसरी तरफ माता द्रोपदी के शील पर कटाछ होने के कारण विश्वयुद्ध का उल्लेख है ,

परंतु आज के समय में *शीलापहरण को संघर्ष बिंदु मानने वाले या बनाने वाले पिता, माता भ्राता तथा पति आदि के विरुद्ध ही संघर्ष दृष्टिगोचर है ।*

शिखा सूत्र आदि विहीनता को सभ्यता स्वीकार करने के कारण शिखा सूत्र आदि अपहरण निमित्त संघर्ष का स्रोत ही विलुप्त है ।

यदि हम विचार करें हमारे पूर्वजों ने अपनी शिखा नहीं कटायी थी ,अपने गर्दन कटा दिए थे ,
परंतु यदि आज के पिता माता और भाई शिखा इत्यादि के पक्षधर हों तो वह व्यक्ति ही उनके ही विरुद्ध हो सकता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक हम अपने प्राथमिक मान बिंदुओं के प्रति सचेत नहीं होंगे ,तब तक हम गर्त में जाते रहेंगे ।

हमको अपने उन्नति के आयामों के उन आधारों को देखना है जिनके चलते हम संपूर्ण विश्व में सबसे दिव्य माने जाते थे,

और आज सभ्यता के नाम पर किसी न किसी रूप में यदि हम उन को तोड़ रहे हैं तो निश्चित रुप से यह हमारे लिए सबसे बड़ी हानि है ।

जागना पड़ेगा युवाओं को जागना पड़ेगा

देश के व्यक्तियों को जागना पड़ेगा

हिंदू परिवारों को जागना पड़ेगा

सनातन मान बिंदुओं के प्रति उनको तैयार होना ही पड़ेगा

*यदि वह तैयार नहीं हुए तो भूल जाइए कि दो-चार पीढ़ी बाद आपको कोई तर्पण देने वाला आपके कुल में कोई बालक पैदा होगा!*

मर जाएंगे बिना पानी के..!!

और आपकी भूल ही आपको नरक में गिरा देगी।

यदि अभी भी चेतना बची है तो अपने आप को संभाले आप।
.

प्रशान्त कुमार मिश्र

*वैदिक ब्राह्मण ग्रुप गुजरात*


म लिखकर धन्यवाद किया है और कहा है कि आपके प्रमाणों के आधार पर ही हम फैसला देने में सफल हो पाए। यही नही, हाई कोर्ट के इस प्रमाण को सीधे सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को सुलझाने के लिए स्वीकार किया और अपने फैसले में बकायदे स्वामी जी और अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति सहित हमारे अधिवक्ता पी एन मिश्र जी का नाम लेकर धन्यवाद किया है जिसका प्रमाण न्यायालय के 1045 पन्ने के न्यायादेश अर्थात जजमेंट से कोई भी पढ़ सकता है। जिसमे 50 से अधिक बार शंकराचार्य जी के अधिवक्ता, उनके शिष्य प्रतिनिधि का नाम आया है जबकि संघ विश्व हिंदू परिषद का नाम नही आया है क्योंकि वो थे ही नही न्यायालय में।
हाई कोर्ट के लगभग 6 हजार और सुप्रीम कोर्ट के लगभग 1000 पन्ने के फैसले को पढ़कर कोई भी व्यक्ति यह समझ सकता है कि पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने रामजन्मभूमि के लिए क्या किया और तथाकथित अन्य आचार्यों, संगठनों और नेताओं ने क्या किया?
●शंकराचार्य और हमारे अधिवक्ता श्री पी एन मिश्रा जी ने यह मानने से ही मना कर दिया कि विवादित ढाँचा मस्जिद था और कभी बाबर या उसका कोई आदमी वहाँ आया जिसका प्रमाण हमारे अधिवक्ता ने न्यायालय में दिया जिसके आधार पर न्यायालय ने हिन्दुओं के पक्ष में फैसला सुनाया और पी एन मिश्र जी का धन्यवाद किया। इससे यह भी सिद्ध हो गया था कि संघियों ने बाबरी मस्जिद के नाम पर राम मन्दिर ही तोड़वाया था। अतः यह कहना कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने रामालय न्यास के माध्यम से मन्दिर के साथ मस्जिद बनवाना चाहते थे ये एक बहुत बड़ा झूठ है।
कांक्षी सरकार नाम की झांसी जिले की एक विशाल सभा में अयोध्या की मणिराम छावनी के महन्त नृत्यगोपाल दास जी ने शंकराचार्य जी से सार्वजनिक रूप से अनुरोध किया कि हम रामजन्मभूमि के मामले को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं आप आगे आइये । तब महाराज श्री ने श्रीरामजन्मभूमि परिक्रमा महासपर्या कार्यक्रम बनाया और लगभग पचास हजार लोगों के साथ महाराज श्री ने श्रीरामजन्मभूमि की परिक्रमा की ।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने रामजन्मभूमि की बाधाओं के निराकरण के लिये सवा लाख आदित्य हृदय का पाठ करवाया।

उन्होंने इस कार्य में आध्यात्मिक उपाय के रूप में सवा लाख रामचरितमानस का पाठ करवाने का संकल्प लिया जिसे मानस महासपर्या के नाम से आज भी जारी रखा गया है और जिसमें लगभग चालीस हजार पाठ अभी तक हो चुके हैं ।
पूज्य शंकराचार्य जी ने रामजन्मभूमि की बाधाओं के अपसारण हेतु छत्तीसगढ़ की शिवनाथ नदी के किनारे बेमेतरा जिले में सवा लाख शिवलिंग मन्दिर की स्थापना कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि शिव जी की कृपा हो जायेगी तो राम जी का मन्दिर बन जायेगा । वे कहते हैं कि रामजी ने रामेश्वर की स्थापना कर अपने इष्ट की पूजा कर ली है अब शिवजी की भारी है कि वे अब रामजन्मभूमि को बाधारहित करवावें ।
● 25,26,27 नवम्बर 2018 में काशी में परम धर्म संसद 1008 के तत्वाधान में देश भर के कानूनी विद्वानों से चर्चा करके, धर्म संसद में प्रस्ताव पारित कराके, जगद्गुरु ने सरकार को राम मन्दिर का मामला कोर्ट से खींचकर संसद में लाकर संसद से कानून बनाकर राम मन्दिर बनाने का संवैधानिक तरीका भेजा जिसपर केंद्र सरकार ने कोई जवाब नही दिया क्योंकि उनको 2019 की चुनावी राजनीति करनी थी।
●28,29,30 जनवरी 2019 को परमधर्म संसद 1008 के दूसरे सम्मेलन में संसद में प्रस्तावित बिल के आधार पर अयोध्या जाकर राम मन्दिर निर्माण करने का तारिक घोषित किया पर उसके ठीक पहले पुलवामा हमले के कारण देश को शोक में डूबा देख इस यात्रा को रद्द किया ।
● जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने पिछले 30 वर्षों में राम मन्दिर के लड़ाई में कई करोड़ रुपये खर्च कर दिये। इसके अलावा शंकराचार्य के पद पर रहते हुए जेल यात्रा सहित अनेक यातनाएं भी सह ली पर कभी हिन्दुओ से एक रुपया राम के नाम पर चन्दा नही मांगा, न ही कभी इसके लिए वोट मांगा।

●इतना कुछ करने के बावजूद भी आज 98 वर्षीय एक स्वतन्त्रता सेनानी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज को अपने आप को हिन्दू कहने वाले संघी, भाजपाइयों ने उनकी आलोचना, उनको गालियां देने के सिवाय आजतक क्या दिया?
यही नही आजतक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्वहिन्दू परिषद ने राम के लिए सिवाय वोट और चंदा लेने के अलावा कुछ नही किया कोर्ट में भाजपा, संघ, विश्व हिन्दू परिषद ने राम के लिए एक पन्ना तक जमा नही किया, केस लड़ने की बात ही क्या करनी। कोर्ट केस में पक्षकार के रूप में कही इनका नाम नही है।
●वर्तमान में राम मन्दिर बनाने के लिए न्यायालय का जो आदेश आया है उसके हिसाब से यह मौका रामालय न्यास को मिलना चाहिए था क्योंकि "द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट, 1993" के हिसाब से एक मात्र रामालय न्यास ही है जो एक्ट के सारे शर्तो को पूरा करता है। और इसके लिए सारी तैयारी


आज 5 एकड़ का जो कलंक अयोध्या में हिन्दुओं के माथे पर लग गया है उसके एकमात्र दोषी कोई और नही बल्कि भाजपा, आरएसएस और विश्वहिंदू परिषद हैं। ये संघी कहाँ भारत से इस्लाम मिटाने की बात करते थे और आज कहाँ अयोध्या में 5 एकड़ जमीन मुस्लिमो को दिलवा दिए बाकी बेटियां तो पहले से ही मुसलमानों को ब्याहने की परम्परा संघ में रही है जिसका ताजा उदाहरण भाजपा संघ का नेता राम लाल गुप्ता है। जिसने फैजान करीम से अपनी बेटी ब्याही जिसमे उत्तर प्रदेश की योगी कैबिनेट सम्मिलित हुई थी।
●3 अप्रैल 1993 को, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के दबाव में, नरसिम्हा राव ने "द एक्विजिसन ऑफ सर्टेन एरिया एट अयोध्या एक्ट, 1993" बनाकर 67 अकड़ जमीन अधिग्रहित की, जो हिन्दू और मुसलमानों दोनो से लिया गया है।
●27 जून 1993 में पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी ने श्रृंगेरी में चतुष्पीठ सम्मेलन बुलवाया, जिसमे पूज्य स्वामी निश्चलानंद जी के अलावा, काँची के आचार्य को भी बुलवाया यद्यपि वो चारो पीठो से अलग है फिर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज चाहते थे सबको एक साथ जोड़ा जाए।
●चतुष्पीठ सम्मेलन में ये तय हुआ कि नया राम मन्दिर पहले से बहुत विशाल अंकोरवाट के तर्ज पर धर्माचार्य बनाएंगे न कि राजनैतिक लोग। स्वामी स्वरूपानंद जी ने अंकोरवाट के जैसे विशाल राम मन्दिर के लिए पहले ही सब सोचा हुआ था इसलिए चतुष्पीठ सम्मेलन से पहले ही जमीन अधिग्रहण करवा दिया था जिससे भव्य मन्दिर बने। फिर चतुष्पीठ सम्मेलन बुलवा कर यह घोषणा करवाया कि राम मन्दिर के लिए देश के सभी प्रमुख आचार्य रामालय यानी राम का घर न्यास बनाएंगे जिसमे सभी शंकराचार्यों सहीत, सभी वैष्णवाचार्य, सभी अखाड़ो के आचार्य सहित कुल 25 लोग रहेंगे। जिसमें शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज स्वयं शामिल थे और उन्होंने बाकायदा हस्ताक्षर भी किया था।
● फिर जब अगले वर्ष रामालय न्यास कि बैठक काशी में हुआ जिसमें श्रृंगेरी शंकराचार्य, ज्योतिष एवं द्वारिका शंकराचार्य सहित अनेक शीर्ष प्रमुख वैष्णवाचार्य सहित अनेक अन्य आचार्य सम्मिलित हुए तो उसमें अकेले पुरि शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी ने आने से मना कर दिया, 
ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि उन्हें उनके कुछ करीबियों ने गलत जानकारी दे दी कि रामालय न्यास मन्दिर और मस्जिद दोनो बना रहा है।
अन्यथा जिस रामालय न्यास में भारत के प्रमुख 25 आचार्यों में ज्योतिष एवं द्वारिकाशारदा शंकराचार्य, श्रृंगेरी शंकराचार्य, काँची के आचार्य, रामानंदाचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, उडुपी के पेजावर स्वामी, 13 अखाड़ो के आचार्य सहित अन्य सब राम जन्मभूमि के स्थान पर मन्दिर के साथ मस्जिद कैसे बनवा सकते थे। उनका ऐसा कहना अपने आप मे कितना यह सिद्ध करता है कि पूज्य पूरी शंकराचार्य को किसी उनके करीबी ने जानबूझ कर गलत जानकारी दे दी थी।
हमने रामालय न्यास का पूरा उद्देश्य पढ़ा है जिसमे कही भी मन्दिर के साथ मस्जिद की बात नही है।
● स्वामी स्वरूपानंद जी अपना प्रयास नही छोड़े और लगातार न्यायालय में लड़ते रहे। कोर्ट में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी प्रमुख पक्षकार के रूप में रहे और इनका प्रमुख लड़ाई इस बात पे ही थी कि इतिहास में कही यह प्रमाण नही मिलता कि कभी बाबर या उसका सिपहसलार अयोध्या में आया और राम मन्दिर को तोड़ा अतः उस स्थान पर मुलसमानों का कोई अधिकार ही सिद्ध नही होता। इस बात के सैकड़ो साक्ष्य इकट्ठा किया गया और सबसे पहले हाई कोर्ट में 90 दिन की सुनवाई में 24 दिन लगातार इनके अधिवक्ता श्री पी एन मिश्र जी एवं सुश्री रंजना अग्निहोत्री जी ने बहस की और जब हाई कोर्ट का फैसला आया तो कोर्ट ने स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज का विशेष धन्यवाद किया जो कि समिति के उपाध्यक्ष है और कोर्ट में इन्होंने बड़ी अद्भुत प्रमाण प्रस्तुत कर गवाही दी। उसी बात को उच्चतम न्यायालय ने सीधे बिना किसी विवाद के स्वीकार किया और यह माना कि विवादित भूमि ही राम जन्मभूमि है सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन की बहस में अकेले 9 दिन की बहस शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी के वकील ने की और जब हमारे वकील श्री पी एन मिश्र जी और सुश्री रंजना अग्निहोत्री जी न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित होते थे तो न्यायाधीश हाथ बांध कर चुपचाप इन्हें ही सुनते थे। जबकि इस केस कुल 20 पक्षकार थें। इलाहाबाद हाई कोर्ट में तो पूज्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज हिन्दुओं के ओर से धार्मिक विशेषज्ञ के रूप में प्रस्तुत होकर एक महीने तक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक गवाही देते रहे, वो स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज ही थें जिनके प्रमाणों के आधार पर यह तय हो पाया कि रामजन्मभूमि वास्तव में वही स्थान है जहाँ श्रीरामलला का जन्म हुआ था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में पूज्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज का ना


भी हो चुकी थी। शंकराचार्य के रामालय न्यास ने जो राम मन्दिर बनाने का संकल्प लिया वो संघियों के रामजन्म भूमि न्यास के मन्दिर से 20 गुना बड़ा बनाने का निर्णय था और आज भी है अतः संघियों के कार्यशाला में जो पत्थर गढे गये है उसका कोई मतलब नही है। आज जनता छोटी सी राम मन्दिर नही बल्कि विशाल मन्दिर चाहती है जो रामालय न्यास ही मात्र बना सकता है।

●15 जनवरी 2020 को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने प्रमुख शिष्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज को इस बात का अधिकार दिया कि वो भारत के प्रत्येक सनातनी हिन्दुओं के घर से स्वर्णदान ले और इस प्रकार 1008 किलो स्वर्ण एकत्रित करके, रामलला के मन्दिर में उनके सिंहासन, उनके गुम्बद आदि में मण्डित किया जाए जिससे संसार मे हिन्दुओं के हृदयसम्राट भगवान रामलला के भव्य दिव्य मन्दिर की कीर्ति युगों युगों तक फैलती रहें। इस आदेश को पाकर पूज्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी ने स्वर्णालय श्रीरामलला स्वर्ण संग्रह अभियान शुरू कर दिया था जिससे देश भर से स्वर्ण एकत्रित होना आरम्भ हो चुका था। इस स्वर्ण दान में स्वयं जगद्गुरु अपने पास से कई किलो स्वर्ण भगवान राम के मन्दिर के लिए अर्पित करने के लिए संकल्पित हैं।
●22 जनवरी 2020 को प्रयाग के संगम तट स्थित माघ मेले में भक्त सन्त सम्मेलन बुलाया गया जिसमें कई हजार साधु सन्त और आम नागरिक सम्मिलित हुए जिसमे इस बात का प्रस्ताव पारित हुआ कि भगवान राम के लिए 25 फुट ऊँचा, स्वर्ण जटित एक अस्थायी बाल मन्दिर "स्वर्णालय" का निर्माण किया जाएगा और भगवान राम को शीघ्र तम्बू से मुक्त कर एक भव्य चन्दन के लकड़ी से बने विशाल सिंहासन पर विराजमान करके स्वर्णालय में तबतक रखा जाएगा जबतक कि भगवान राम का दिव्य भव्य स्थायी मन्दिर नही बन जाता।
●भगवान रामलला को तम्बू से शीघ्र मुक्त कर उन्हें स्वर्णालय में विराजमान करने का सर्वप्रथम विचार यदि किसी देवपुरुष के मन मे आया तो है जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज जिनके सपने को साकार कर दिखाया उनके प्रिय शिष्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज ने। जी हाँ स्वर्णालय बनकर तैयार हो चुका था और वह शीघ्र अयोध्या के लिए लेकर जाना था पर जैसे ही यह बात संघियों को पता चली उन्होंने अपनी राजनैतिक चाल चली और अपने सरकारी ट्रस्ट से शंकराचार्य जी का बनाया हुआ स्वर्णालय अस्वीकार कर दिया और जर्मन फाइबर वाले एक कमरे में राम जी को स्थापित करा दिया।

मित्रों यह है वो सच्चाई जिसे आजतक भारत की जनता नही जानती थी पर आप सब सच्चे गुरु भक्तो से निवेदन है कि हर एक हिन्दू को ये आप पढ़ाओ। इसके पोस्टर छपवा के बटवाओ । चाहें जो करो पर परम पूज्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के प्रयासों को दुनिया तक ले कर जाओ। मैंने अपने अध्ययन और शोध में जो बातें पायी उसको लिखा है बाकी जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने न जाने कितने ऐसे प्रयास किये जिसे कोई नही जानता पर जितना मैंने लिखा है उससे ही यह सिद्ध हो जाता है कि राम मन्दिर के लिए पूरी निष्ठा से कौन लड़ रहा था और कौन राजनीति कर रहा था।
आज से लगभग 30 साल पुराना वो पोस्टर मिल गया जो 3 जून 1989 के कार्यक्रम के लिए छपा था।
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज की जय
हर हर महादेव
जय जय श्री सीताराम

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विश्व हिंदू परिषद वाले है शंकाराचार्य जी नही क्योंकि शंकाराचार्य जी ने उस समय कांग्रेस और विश्व हिंदू परिषद के सम्मिलित षड़यंत्र का भंडाफोड़ कर दिया था पर धर्म विरुद्ध कार्य का समर्थन नही किया।

●1989 में हुए चुनाव के केन्द्र में वी पी सिंह की जनता दल की सरकार भाजपा के बाहर से समर्थन से बनी और उत्तर प्रदेश राज्य में वी पी सिंह के पार्टी जनता दल से मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बन गया था। 
ध्यान देने वाली बात यह है कि इसी सरकार के समय में कश्मीरी पण्डितो को कश्मीर में मारा गया तब इसी भाजपा की सरकार केंद्र में थी और मुफ़्ती मोहम्मद सईद इनका गृहमंत्री था।

● इधर संतों का जो पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था जिसका चुनाव से कोई संबंध नहीं था, उसे तो होना ही था संतों ने यह तय किया था कि जगतगुरु के नेतृत्व में उत्तरायण के शुभ मुहूर्त में 7 मई 1990 को अयोध्या में राम मन्दिर का शिलान्यास करेंगे तो करेंगे। तब तक तो केंद्र में वी पी सिंह की और राज्य में मुलायम सिंह की सरकार बन ही चुकी थी।

●30 अप्रैल 1990 को, पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार शंकराचार्य जी द्वारिका से दिल्ली होते हुए राम जन्मभूमि का शिलान्यास करने के लिए निकल पड़े, वाराणसी होते हुए जैसे ही वो आजमगढ़ पहुँचे उसी समय रात को ही मुलायम सिंह की सरकार ने उनको गिरफ्तार करवा लिया और यह गिरफ्तारी बीजेपी के दबाव में आकर के मुलायम सिंह से वी पी सिंह ने करवाया था क्योंकि बीजेपी के समर्थन से ही केन्द्र में जनतादल की सरकार चल रही थी और बीजेपी ने धमकी दिया था कि यदि उनको गिरफ्तार नहीं करोगे तो हम तुम्हारी सरकार गिरा देंगे और इस धमकी के डर के कारण जनता दल के नेता वी पी सिंह ने अपने नेता मुलायम सिंह को कहा कि उनको अरेस्ट किया जाए।

●बिना किसी आरोप के, बिना किसी गलती के झूठे आरोप में उत्तर प्रदेश पुलिस ने जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को रात को आजमगढ़ में गिरफ्तार कर लिया और रात भर मिर्जापुर के जंगलों में घुमाती रही, उन्हें उनका दैनिक पूजा संध्या भी नही करने दिया और अंत में रातभर जंगल मे घुमाने के पश्चात सुबह चुनार के किले में ले जाकर बंद कर दिया। वहाँ पर पहले जो थे उन्हें बता दिया गया था कि कश्मीर से एक खूंखार आतंकवादी लाया जा रहा है जो चुनार के किले में बंद किया जाएगा जिससे वहां की सामान्य पब्लिक बहुत डर गई थी वहां की सिक्योरिटी बहुत ज्यादा चौकन्ना हो गई थी पर जब सुबह सबको पता चला कि यह कोई खूंखार आतंकवादी नहीं बल्कि पूज्यपाद जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज हैं तो सबके होश उड़ गए। यह खबर लीक हुई अगले दिन आग की तरह देश भर में फैल गयी, लोगों के होश उड़ गए चारों तरफ साधु संत विभिन्न धार्मिक संगठन आम नागरिक आंदोलन करने लग गए। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार बंगाल, इस प्रकार से सम्पूर्ण भारत में ही आंदोलन प्रदर्शन शुरू हो गए। लोगों ने केंद्र सरकार से कहा कि यदि आप उनको नहीं छोड़ेंगे तो हम बहुत जल्द हिंसक आंदोलन शुरू कर देंगे और इसकी सारी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार की होगी। 
●8 मई 1990 को अन्त में जनता के दबाव के कारण 9 दिन चुनार जेल में रखने के बाद सरकार ने माफी मांगते हुए बिना शर्त शंकराचार्य जी को ससम्मान मुक्त किया ।
●उसी वर्ष 1990 में शंकराचार्य जी ने पूरे भारत मे दशरथ कौशल्या यात्रा निकाली जिसका हिन्दू समाज के जागरण में बहुत बड़ा योगदान साबित हुआ। इस अभियान में देश भर में लाखों लोगो के हस्ताक्षर लिए गए।
●2नवम्बर 1990 में संघियों ने भोलेभाले हजारो हिन्दुओ को कारसेवा के नाम पर मरवा दिया। वो बात सबको पता है जिसकी सहानुभूति ले लेकर ये आज सत्ता में बैठे हैं।
●6 दिसम्बर 1992 में फिर संघियों ने कल्याण सिंह के सरकार में राम मन्दिर जिसमे रामलला विराजमान थे और उनकी पूजा होती थी, को बाबरी मस्जिद बोल कर तोड़वा दिया, यही नही इन्होंने वो सब कुछ भी तोड़ दिया जिसमें कोई विवाद नही था और जिसपे हिन्दूओं का पूरा कब्जा था जैसे सीता रसोई, राम चबूतरा, हनुमान जी का मन्दिर और एक मन्दिर था जो जन्मभूमि के साथ सब थे। भोले भाले कारसेवक हिन्दुओं को भड़का कर हिन्दू द्रोही संघियों ने सब तोड़वा दिया। इस जबरदस्ती के गुंडागर्दी के कारण उच्चतम न्यायालय ने मुसलमानों को बाबरी मस्जिद के लिए अयोध्या में मिले 5 एकड़ जमीन दी है । कोर्ट का कहना है कि जबतक मामला न्यायाधीन था तबतक कैसे उस ढाँचे को तोड़ दिया गया जिसे मुसलमान मस्जिद मानकर हमारे पास न्याय पाने की प्रतीक्षा कर रहे थे अतः संविधान का विशेष अधिकार लेते हुए न्यायालय उन्हें 5 एकड़ जमीन उसी अयोध्या में देने का आदेश देती है जहाँ पर मन्दिर के आंदोलनकारियों ने ढाँचे को तोड़ दिया। जिससे इस देश मे यह विश्वास स्थापित रहे कि संविधान और कानून से बढ़कर कोई नही है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट है कि


में तय बिना किसी निजी मांग के न्यायालय में राम जन्मभूमि का मजबूत पक्ष रखने के लिए शंकराचार्य जी ने अखिल भारतीय राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति गठित की क्योंकि निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान निजी मांग के साथ केस लड़ रहे थे।
●अखिल भारतीय राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति तब से लेकर आज तक कोर्ट में मजबूती से केस लड़ती रही और 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट और 2019 के सुप्रीम कोर्ट का जो निर्णय हिन्दुओ के पक्ष में आया उसका प्रमुख कारण जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज बने। 
● 3 जून 1989 के चित्रकूट सम्मेलन के बाद शंकराचार्य जी ने देश के अनेक बड़े संतों को लेकर समाज मे राम जी के लिए जनजागरण करने उतर गए जिसका प्रभाव बहुत बड़ा पड़ा। मध्यप्रदेश के झोतेश्वर में एक बार 5 लाख से अधिक जनता पहुँची जो इनके व्यक्तित्व, इनके प्रभाव की विशालता को दर्शाती है।
● उस समय विश्व हिन्दू परिषद के पास हिन्दुओं के वोट के लिए कोई मुद्दा नही था बीजेपी के पास दो सीटें थी, जब उन्होंने शंकराचार्य को राम मन्दिर पर आगे आते देखा और जनता को इससे प्रभावित होते देखा तो वो शंकराचार्य के इस मुद्दे को लपक लिये और इसे 1989 के दिसम्बर में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भुनाना शुरू कर दिए।
● 1989 में ही राम मन्दिर के आंदोलन के समय शंकराचार्य ने काशी के पंडितो से राम मन्दिर के शिलान्यास का शुभ मुहूर्त निकलवाया जो कि उत्तरायण में 7 मई 1989 तय हुआ। 
● चित्रकूट के उस सम्मेलन का कोई राजनीतिक उद्देश्य नही था क्योंकि शंकराचार्य जी का सदैव से यह मानना था कि धर्म सम्बन्धी विषयों का राजनीतिकरण नही होना चाहिए, पर धर्म के नाम पर राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले दल को ये कहाँ मान्य था कि वो धर्म का राजनीतिकरण करके हिन्दूओं के भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करे अतः उसे तो करना ही था।

● बीजेपी यानी विश्व हिन्दू परिषद यानी संघ को बहुत ही जल्दी यह समझ में आ गया था कि यह राम मन्दिर एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिससे वह सत्ता की सीढ़ियों तक आसानी से पहुँच सकती है अतः ये मौका हाथ से न चला जाये और हिन्दू जनता, शंकराचार्य जी को राम मन्दिर का उद्धारक न मान ले उससे पहले ही क्यों न वही शिलान्यास का दिखावा कर दे क्योंकि इसी वर्ष दिसम्बर में केंद्र और राज्य में चुनाव भी होने वाले थे।
अतः उसने राम मन्दिर के विषय को हिन्दू समाज में ले जाने का निश्चय किया जिससे कि हिंदुओं का वोट उसे मिल सके।

●पर यहाँ तो पहले से ही जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज एवं उनके साथ अन्य साधु-संत देशभर में राम मंदिर निर्माण के लिए नागरिकों में अलख जगाना शुरू कर चूकें थें। तब शंकराचार्य जी को पता भी नहीं था कि कल को बीजेपी विश्व हिन्दू परिषद द्वारा, इस विषय का राजनीतिकरण हो जाएगा।

● दिसम्बर 1989 से 9वी लोकसभा के चुनाव का तारीख तय हो चुका था। उधर अगले साल शुभ मुहूर्त 7 मई 1990 को राम मन्दिर के शिलान्यास की तारीख शंकराचार्य जी द्वारा तय हो चुका था।

●देश भर में घूम घूम कर देश की जनता को शंकराचार्य जी ने राम मन्दिर के लिए पहले ही जागरूक कर दिया अतः विश्व हिन्दू परिषद भाजपा ने चुनाव को देखते हुए योजना बनायी और शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के शिलान्यास के तर्ज पर चुनाव से ठीक पहले आनन फानन में दक्षिणायन के गलत मुहूर्त में 9 नवम्बर 1989 को अयोध्या जाकर राम मन्दिर का एक फर्जी शिलान्यास कर दिया। दरअसल वह शिलान्यास गर्भ गृह पे न होकर 192 फिट दूर सिंहद्वार पर कर दिया। इस नकली शिलान्यास का लाभ चुनाव में भाजपा को मिल गया और भारत की जनता ने भाजपा के छल को समझती उससे पहले चुनाव आ गया और भाजपा को राम मन्दिर का शिलान्यास कराने वाला सोच कर वोट दे दिया जिससे लोकसभा में भाजपा सीधे 2 सीट से 85 सीट पे आ गयी।
● शिलान्यास के समय विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में सिंह द्वारा के पास एक बहुत बड़ा गड्ढा खना जिसमे लाखो लोगो ने उस दिन राम के नाम पर रुपया पैसा सोना चाँदी उस गड्ढे में डाले क्योंकि लोगो से संघीयो यानी विश्व हिन्दू परिषद वालो ने राम मन्दिर के नाम पर उस गड्ढे में डलवाया। सोने चांदी से पटा वो गड्ढे का धन कहा गया ये बात आजतक आम जनता को नही पता है। एक कमरे के बराबर वाले उस गड्ढे का चित्र संलग्न।

● जब जगद्गुरु शंकराचार्य सहित वैदिक विद्वानो ने शास्त्र के आधार पर इस नकली शिलान्यास को उजागर कर दिया तो भाजपायी संघी चिढ़ गए और तब से स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज को कांग्रेसी कहना आरम्भ कर अपने कार्यकर्ताओं से गाली दिलवाना शुरू कर दिया जो आजतक चला आ रहा है।
●कांग्रेस सरकार के तत्कालीन गृहमन्त्री बूटा सिंह संघ और विहिप के साथ मिलकर शंकाराचार्य जी के विरोध में अयोध्या में गर्भगृह से 192 फिट दूर शिलान्यास किये थे जिसका विरोध जगद्गुरु शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने किया था अतः असली कांग्रेसी तो स्वयं


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अविनाश गुप्ता

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*प्रश्न:- राममन्दिर के मामले में ज्योतिष पीठाधीश्वर होने के नाते जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरुपानंद सरस्वती जी महाराज अब तक कहाँ थें ? क्योंकि उत्तर भारत उत्तराम्नाय ज्योतिष पीठ के क्षेत्राधिकार में आता है और धर्मसत्ता के सर्वोच्च शासक धर्मसम्राट होने के नाते ज्योतिषपीठाधीश्वर का दायित्व है कि वो राम मन्दिर के लिए सबसे अधिक कार्य करें?*

उत्तर:-

★★ पिछले 70 वर्षों से लेकर अबतक अनन्त श्री विभूषित ज्योतिष एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज क्या क्या करते आये अयोध्या श्रीराम मन्दिर के लिए और दूसरे ने क्या क्या किया उसे हर हिन्दू को पढ़ना चाहिए★★
:
●1948 में धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज ने कांग्रेस के खिलाफ अखिल भारतीय राम राज्य परिषद बनायी जिसका प्रथम अध्यक्ष अपने विश्वासपात्र प्रिय गुरुभाई स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को बनाया और 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में चुनावी घोषणा पत्र में राम राज्य परिषद ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के अध्यक्षता में यह घोषणा किया कि यदि भारत में परिषद की सरकार बनती है तो, अयोध्या, मथुरा और काशी सहित देश के तमाम उन मंदिरो का पुनरुद्धार कराया जाएगा जिसे इस्लामिक काल मे नष्ट किया गया है। यानी मन्दिरो के पुनरुद्धार का सर्वप्रथम भारत मे, विचार बीज स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने बोया।
●1983 में राम जन्मभूमि की मुक्ति सबके सहयोग और सद्भावना से बिना किसी जय पराजय की भावना से हो और शास्त्रोक्त विधि से भगवान राम का मन्दिर निर्मित हो इसका उपदेश हिन्दुओ सहित संत समाज को जगद्गुरु के रूप में जोर देकर कहा और इसके लिए खुल कर सामने आए ।
●1985 में राजीव गाँधी को राम मन्दिर का ताला खुलवाने के लिए कहा, जिसे राजीव गाँधी मान गए थे।
यह पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ही थे जिन्होंने राजीव गाँधी को कहा कि रामायण और महाभारत का टीवी के माध्यम से प्रचार करो जिससे इस युवाओं में राम और कृष्ण का चरित्र स्थापित हो। जिसके फलस्वरूप राजीव गांधी की प्रेरणा से सरकारी चैनल दूरदर्शन ने रामानन्द सागर से रामायण सीरियल बनवाया ।
जय श्री राम और हर हर महादेव का नारा भी पूज्य शंकराचार्य जी ने ही सुझाया था जो अत्यधिक लोकप्रिय हुआ । 
इन धारावाहिकों के प्रसारण से देश में रामजी का वातावरण बना जिसे बाद के दिनों में राजनीति करने वाले भुनाते रहे ।
जब जय श्री राम का नारा अत्यधिक प्रचलित हो गया तब यही से विश्व हिंदू परिषद ने जय श्री राम का नारा कॉपी कर लिया।
● 1 फरवरी 1986 को कोर्ट के माध्यम से ताला राजीव गाँधी के सुरक्षा आश्वासन पर खोलवाया गया। जिसमें पूज्य शंकराचार्य जी की प्रेरणा कार्य कर रही थी।
●जनवरी माघ मेला 1989 में निर्मोही अखाड़े के कुछ प्रतिनिधि पूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के यहाँ आये और निवेदन किया कि महाराज जी राम जन्मभूमि का विवाद अब अखाड़े से संभल नही रहा है। आप ज्योतिष एवं द्वारिकाशारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु है, अयोध्या आपके अधिकार क्षेत्र में आता है अतः कृपया आप हमारा सहयोग करें, और आप स्वयं इस विवाद को सुलझाने के लिए आगे आने का कष्ट करें।
●निर्मोही अखाड़े का निवेदन स्वीकार कर स्वयं मन्दिर के विवाद में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी हस्तक्षेप किये और 3 जून 1989 में चित्रकूट में भारी गर्मी में परम पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने राम मंदिर के आंदोलन की शुरूआत किया। इस आंदोलन में उन्होंने देश भर के 1000 बड़े सन्तो को बुलाया। 108 संतों ने एक साथ भगवान रामलला के जन्मभूमि और मन्दिर के पुनरुद्धार के लिए शंखनाद किया इस सम्मेलन में देश भर से लाखों राम भक्त शिष्य सम्मिलित हुए। जिसमें हजारों सन्तों ने एकसाथ शंखनाद किया।
●चित्रकूट सम्मेलन के बाद देश भर में श्रीरामजन्म भूमि पुनरुद्धार के लिए सन्त सम्मेलन का शिलशिला तेजी से आरम्भ किया। 
●1989 में उत्तर प्रदेश और केंद्र में राजीव गांधी के कांग्रेस की सरकार थी अतः जो लोग महाराज श्री को कांग्रेसी कहते हैं उन्हें चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए क्योंकि दिसंबर 1989 में लोकसभा के चुनाव के पूर्व महाराज श्री ने आंदोलन किया उस समय यह आन्दोलन राजीव गाँधी सरकार के खिलाफ भी था।
●अक्टूबर 1989 में भक्तो बुद्धजीवियों के साथ अयोध्या में श्री जन्मभूमि में रामलला के दर्शन करके वास्तु और मन्दिर स्थापत्य के साक्ष्य एकत्र किए।
●19 अक्टूबर 1989 को, चित्रकूट सम्मेलन


महाराज के विरुद्ध कार्य कर सकें।

इसके बाद वर्तमान में न्यायालय के माध्यम से ही राममन्दिर का निर्णय आता है,

इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि रामजन्मभूमि सुरक्षित रही तो वह केवल पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज के कारण
वरना यह सरकारें कब की आसपास मन्दिर व मस्जिद का निर्माण करवा देतीं।

वर्तमान प्रधानमंत्री को सनातन धर्म के सर्वोच्च आचार्य के निर्देशों का सम्मान करते हुए सम्पूर्ण मर्यादा का पालन करते हुए उनके अधिकार का ध्यान रखना चाहिए।

गौरतलब है कि आध्यात्मिक शासन के दृष्टिकोण से भी अयोध्या पुरी शंकराचार्य जी महाराज के शासन सीमा के अंतर्गत ही आती है।

सम्पूर्ण सनातनी जनों से आग्रह है कि वो अपने सर्वोच्च आचार्य के प्रति सम्मान का दृष्टिकोण रखें और यह भी याद रखें कि राम जन्म भूमि की सुरक्षा केवल उनके कारण ही ढांचा टूटने के बाद अब तक संभव रही है न कि किसी संघ या संगठन के द्वारा।

.
प्रशान्त कुमार मिश्र


( सर्वत्र प्रसारित करें,
. अगर पुरी शंकराचार्य जी ने एक हस्ताक्षर कर दिया होता तो न ही राम जन्मभूमि सुरक्षित होती न ही कभी भाजपा सत्ता में आती।)

.
जय जगन्नाथ !

राममन्दिर को लेकर सर्वत्र चर्चा का विषय व्याप्त हैं।

ऐसे में सनातनी जनों के मध्य यह उत्सुकता का विषय है कि इस आंदोलन में आखिर सनातन धर्म के सर्वोच्च आचार्यों की क्या भूमिका रही??

आइये हम आपको पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज की इस आंदोलन में प्रासंगिकता के बारे में बताते हैं-

बात उस समय की है, जब विवादित ढांचा टूटा भी नहीं था और निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज शंकराचार्य के पद पर विराजमान नहीं थे,
उसी समय तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के दो दूत शंकराचार्य जी के पास आकर प्रधानमंत्री जी का संदेश बताते हुए कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी की इच्छा है कि आपको 66 करोड़ रुपये दिए जाएं, जिससे आपकी प्रभावी भूमिका के अंतर्गत भव्य राममन्दिर का निर्माण किया जाए,

महाराज जी तुरन्त प्रश्न कर बैठते हैं कि वहां केवल मन्दिर ही बनेगा न !

इस पर वो व्यक्ति कुछ सहज उत्तर न दे पाए और वहां से चले गए।

कालान्तर में ढांचा टूटता है और महाराज श्री भी शंकराचार्य के पद पर प्रतिष्ठित होते हैं।

गौरतलब है कि ढांचा टूटने के पूर्व उसे मीडिया में बाबरी मस्जिद के नाम से प्रचारित किया जा रहा था,
सबसे पहले महाराज जी ने ही कहा कि वो मस्जिद नहीं है,
उसमें मंदिर के लक्षण हैं। उसमें गुम्बद है ,मीनारें नहीं ।

इस आंदोलन पर बारीकी नजर रखने वाले सज्जन जानते हैं कि ढांचा टूटने में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की अप्रत्यक्ष भूमिका सर्वाधिक रही है।
जैसे ही ढांचा टूटता है तो संवैधानिक तंत्र की विफलता के नाम पर पांच राज्यों में भाजपा की सरकार गिरा दी जाती है।

नरसिम्हा राव ने संत तंत्र को एकत्रित किया और श्रृंगेरी के शंकराचार्य जी के नेतृत्व में रामालय ट्रस्ट का गठन किया।
इस ट्रस्ट पर हस्ताक्षर करने वाले सभी संतों को धन-धान्य से लाद दिया।
आश्चर्य कि बात है कि लगभग सभी प्रामाणिक शंकराचार्यों , वैष्णवाचार्यों ने इस पर हस्ताक्षर भी कर दिया, केवल पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज को छोड़कर।

क्योंकि महाराज जी का एक ही प्रश्न था- वहाँ केवल मंदिर ही बनेगा न !!

(क्योंकि नरसिम्हा राव जी को बगल में मस्जिद बनवाकर कांग्रेस का मुस्लिम वोट भी सुरक्षित रखना था, इसलिए वह
कभी भी स्पष्ट रूप से उत्तर नहीं दिए)

अब एक दौर शुरू हुआ पुरी शंकराचार्य जी महाराज को मनाने का,
मंत्रियों के समूह के समूह आने लगे, संतों की टोलियां आने लगी,
स्वयं श्रृंगेरी के शंकराचार्य जी महाराज अपने सौ भक्तों के साथ तीन दिन तक गोवर्धन मठ में आकर महाराज जी को मनाते रहे।

मठ को सोने चांदी से भरने का प्रलोभन तो रेलवे के ठेकेदारों से पैसा लेकर दर्जनों की संख्या में मठ के द्वार पर गाड़ियां खड़ी करने का भी क्रम चला।

फिर धमकियों का दौर भी शुरू हुआ।
नरसिम्हा राव ने स्पष्ट रूप से धमकी भिजवाई कि पुरी के शंकराचार्य जी ट्रस्ट पर हस्ताक्षर कर दें, नहीं तो धन, मान व प्राण तीनों से हाथ धोना पड़ेगा।

शंकराचार्य जी महाराज ने उत्तर भेजा -

'मैं धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज का शिष्य हूँ। मैं अपने कुल व माता- पिता को कलंकित नहीं कर सकता ,मैं किसी भी दशा में इस बात पर हस्ताक्षर नहीं कर सकता कि वहाँ पर अगल- बगल मंदिर मस्जिद बने। क्योंकि अगल बगल मंदिर- मस्जिद का बनना दूसरे पाकिस्तान की नींव रखने जैसा होना है।
मैं वहाँ पर केवल मन्दिर ही देखना चाहता हूँ।

रही बात धन, प्राण व मान के अपहरण की तो प्रधानमन्त्री जी पूरी ताकत लगा लें, धन तो मेरे है नहीं, प्राण तो है ही तभी बोल रहा हूँ, मान तो अवश्य है,
देखते हैं कि विजय किसकी होती है ??

प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की हिम्मत नहीं पड़ी कि वो बिना पुरी शंकराचार्य जी के सहमति के मन्दिर सम्बन्धी अपने निर्णय को क्रियान्वित कर सकें।

उल्लेखनीय है कि इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लग जाता है। उस प्रतिबन्ध को हटवाने में शंकराचार्य जी की ही भूमिका रही।

अब यह बात यहाँ समझ लेना चाहिए कि अगर पुरी शंकराचार्य जी महाराज ने हस्ताक्षर कर दिया होता तो न राम मंदिर आंदोलन शेष रहता और न ही राम मन्दिर के नाम पर कभी भाजपा सत्ता में आती।

कालान्तर में राममन्दिर के नाम पर भाजपा सरकार में आती है और वाजपेयी जी प्रधानमंत्री बनते हैं। वाजपेयी जी भी अंदर से मन्दिर - मस्जिद के समर्थक थे।
उन्होंने तत्कालीन भाजपा सांसद व अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के माध्यम से शंकराचार्य जी से कहलवाया कि अगर पुरी शंकराचार्य जी महाराज अनुमति दे दें और वहां मंदिर मस्जिद बन जाये तो क्या हर्ज है ??

शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि कथमपि नहीं, वहां केवल मंदिर बनना चाहिए।

वाजपेयी जी की भी हिम्मत नहीं पड़ी कि पुरी शंकराचार्य जी


🙏🙏🙏🙏


ीं करता । मुझे सन्देह है कि नेहरू के ही किसी समर्थक ने नरेन्द्र मोदी और भाजपा को क्षति पँहुचाने के उद्देश्य से श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर हेतु गलत मुहूर्त का निर्धारण जानबूझकर किया है ताकि गलत मुहूर्त के कारण देश को भविष्य में क्षति पँहुचे और मोदी सरकार की किरकिरी हो तथा जनता भड़के ।

भौतिक खगोलविज्ञान पर आधारित पञ्चाङ्ग को आजकल “दृक्सिद्धान्त” कहा जाने लगा है । अयनांश पर मनमाने विचारों के कारण दृक्सिद्धान्त के अनेक भेद हैं जिनमें से तथाकथित चित्रापक्षीय अयनांश पर सरकारी “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” आधारित है । चित्रापक्षीय अयनांश आधुनिक युग में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नौकरों की खोज है जिसे केतकर बन्धुओं ने ज्योतिष में प्रचारित किया और नेहरू द्वारा बनायी गयी “पञ्चाङ्ग रिफॉर्म कमिटी” के सचिव निर्मल चन्द्र लाहिड़ी ने “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” पर लागू किया ।

श्रीरामजन्मभूमि गर्भगृह के स्थान से ५ अगस्त २०२० ई⋅ दोपहर १२:१५ बजे की उक्त चित्रापक्षीय−दृक्सिद्धान्त तथा पारम्परिक बीजसंस्कारित सूर्यसिद्धान्त पर आधारित दोनों कुण्डलियाँ संलग्न चित्र में प्रस्तुत हैं । दोनों सिद्धान्तों में केवल शनि की राशि में अन्तर है परन्तु भावचक्र में शनि में भी अन्तर नहीं है;तथा केतु भावचक्र में अन्तर रखता है परन्तु राशिचक्र में नहीं । अन्य सारी बातों में दृक्सिद्धान्तीय और सूर्यसिद्धान्तीय कुण्डलियों में कोई अन्तर नहीं है ।

अब भावफल देखते हैं —

दोनों सिद्धान्तों के अनुसार लग्नेश शुक्र मृत्युभाव में हैं,अतः लग्न अशुभ है । केवल इतना कारण ही उक्त काल को किसी भी शुभ कर्म हेतु वर्जित करने के लिये पर्याप्त है । बृहस्पति तृतीय तथा षष्ठ भावों के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ हैं,और तृतीय भाव में बैठने के कारण अशुभता बढ़ गयी । चन्द्रमा दशमेश हैं जिसे केन्द्रश दोष कहा जाता है । सूर्य एकादशेश हैं;एकादशेश को सर्वाधिक अशुभ माना जाता है । अशुभ सूर्य में अस्त होने के कारण बुध भी अशुभ हैं । मङ्गल मारकेश भी हैं तथा मारक भी,और शत्रुभाव में हैं ।

शनि शुभ हैं किन्तु भावचक्र में अत्यधिक अशुभ बृहस्पति के साथ रहने के कारण दोषग्रस्त है । सूर्यसिद्धान्तीय कुण्डली में शनि शत्रु बृहस्पति की राशि में रहने के कारण प्रबल तथा अशुभ बृहस्पति के पूर्ण वश में हैं । किन्तु दृक्सिद्धान्तीय कुण्डली में शनि स्वराशि में रहने के कारण बलवान हैं परन्तु दृक्सिद्धान्तीय कुण्डली में भी भावचक्र में शनि बृहस्पति के साथ होने के कारण दोषग्रस्त हैं । दोनों सिद्धान्तों में राहु और केतु मूलत्रिकोण में होने के कारण बली हैं ।

किसी कुण्डली में केवल शनि,राहु और केतु ही प्रबल हों और अन्य सारे ग्रह अशुभ हों तो भूतप्रेत,चाण्डालों,कसाईयों,चमगादड़खोरों,आदि के उत्पात होते हैं तथा अन्य कई प्रकार के सङ्कट आते हैं ।

कहा जाता है कि मन्दिर में ऐसे पत्थरों का प्रयोग किया जा रहा है जिनकी आयु एक सहस्र वर्षों की होगी । अतः एक सहस्र वर्षों तक उपरोक्त मुहूर्त का फल हिन्दुओं को भोगना पड़ेगा ।

इसे टाला नहीं जा सकता,कलियुग का प्रभाव है । ‘महापुरुषों’ को समझाना व्यर्थ है । जिन लोगों ने जानबूझकर गलत मुहूर्त निर्धारित किया वे नरक जायेंगे,जिनको इस बात की जानकारी नहीं है उनको भगवान क्षमा कर सकते हैं क्योंकि भगवान भाव देखते हैं । किन्तु अभी तो भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में सो रहे हैं,चार मास के उपरान्त जब उठेंगे तो अपनी ही जन्मभूमि पर ऐसा करामात देखकर क्या करेंगे?अभी तो उनके अवतार का भी समय नहीं है,और सूर्य भगवान के सिद्धान्त की अवमानना करने वालों को हरिशयनकाल में सोये हुए श्रीविष्णु से भय क्यों लगेगा?

केवल इतना सन्तोष है कि बाबरी से तो बेहतर वस्तु ही बनेगी । यहाँ तो ऐसे नेता भी हैं जो कहते हैं कि राममन्दिर बनने से कोरोना नहीं हटेगा;उनके राज्य के पालघर में सन्तों की हत्या होने पर कोरोना हट गयी या महाराष्ट्र कोरोना में भी “महा” हो गया?

दो स्क्रीनशॉट संलग्न हैं जिनमें स्पष्ट लिखा है कि कौन दृक्पक्षीय है और कौन सूर्यसिद्धान्तीय । दोनों मेरे “कुण्डली सॉफ्टवेयर” द्वारा निर्मित हैं । “कुण्डली सॉफ्टवेयर” में दृक्पक्षीय ऑप्शन को बन्द करके मैं वितरित करता हूँ क्योंकि ज्योतिष में दृक्पक्ष का प्रचार मैं नहीं चाहता,यद्यपि कई लोगों का कहना है कि दोनों ऑप्शन रहने पर लोग तुलना कर सकेंगे — वैसे लोगों के लिये अमरीका में रहने वाले नरसिंह राव द्वारा निर्मित “जगन्नाथ होरा” दृक्पक्षीय सॉफ्टवेयर के वर्सन ७⋅६६ में मेरा सूर्यसिद्धान्तीय ऑप्शन भी है,यद्यपि नरसिंह राव दृक्पक्ष के समर्थक हैं और सूर्यसिद्धान्तीय ऑप्शन में भी भावचलितचक्र पराशरी नहीं है ।


अशुभ मुहूर्त में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर का आरम्भ

मन्दिर के भवन का आरम्भ गृहारम्भ के अन्तर्गत ही आता है,यद्यपि देवालय हेतु कुछ अतिरिक्त नियम भी होते हैं । गृहारम्भ के सामान्य नियमों के अनुसार ५ अगस्त २०२० ई⋅ को गृहारम्भ का मुहूर्त द्वितीया तिथि में है ।

उस समय कुछ छिटपुट अशुभ योग भी हैं जिनका शमन किया जा सकता है । किसी भी कार्य हेतु पूर्णतया शुभ मुहूर्त ढूँढना अत्यन्त कठिन होता है । एक कठपिङ्गल पण्डित केवल इसी कारण अविवाहित रह गये क्योंकि विवाह करने की ईच्छा रहने पर भी उनको पूर्णतया शुभ मुहूर्त कभी मिला ही नहीं ।

परन्तु तिथि आदि का निर्धारण हो जाने पर ठीक−ठीक समय जानने के लिये लग्नशुद्धि भी अनिवार्य है,क्योंकि पूरी तिथि एकसमान शुभ नहीं होती । भवन के आरम्भ काल की कुण्डली में ग्रहों का अच्छे भावों में रहना अनिवार्य है । मुहूर्त−चिन्तामणि में भी गृहारम्भ मुहूर्त काल की कुण्डली के शुभ होने पर बल दिया गया है । चौबीस घण्टों में कुल १०४ कुण्डलियाँ बनती हैं क्योंकि ग्रहों की राशियाँ और भाव बदलते रहते हैं ।

५ अगस्त २०२० ई⋅ के दिन दोपहर १२ बजकर १५ शुभ मुहूर्त निर्धारित किया गया है जो उस दिन सर्वाधिक अशुभ है ।

काशी के तीन ज्योतिषियों को आमन्त्रित किया गया है जिनमें से किसी ने इस त्रुटि का खण्डन नहीं किया,उन तीनों में सबसे वरिष्ठ हैं डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय । दूसरे आमन्त्रित ज्योतिषी उनके शिष्य हैं । डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष रह चुके हैं किन्तु उसी विश्वविद्यालय के सूर्यसिद्धान्तीय “विश्वपञ्चाङ्ग” का विरोध करते रहे हैं क्योंकि उनके मतानुसार सूर्यसिद्धान्त २५० ईस्वी की रचना है जिस कारण अब आउट−अॅव−डेट हो चुकी है । सूर्यसिद्धान्त के अनुसार सूर्यसिद्धान्त के रचयिता भगवान सूर्य हैं । यदि सूर्यसिद्धान्त २५० ईस्वी के आसपास की रचना है तो सूर्यसिद्धान्त का रचयिता कोई पाखण्डी था जिसने झूठमूठ भगवान सूर्य को रचयिता बता दिया!तब विक्रमादित्य के नवरत्न वराहमिहिर को भी झूठा और मक्कार कहना पड़ेगा जिन्होंने सूर्यसिद्धान्त को वेदमन्त्र गायत्री के देवता सविता की रचना बताया । डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय “विश्वपञ्चाङ्ग” को भौतिक खगोलविज्ञान के आधार पर अप−टू−डेट करना चाहते थे जिस कारण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के “विश्वपञ्चाङ्ग” के तत्कालीन गणितकर्ता डा⋅ कामेश्वर उपाध्याय से उनका मतभेद हो गया और लम्बे विवाद के पश्चात डा⋅ कामेश्वर उपाध्याय की विजय हुई जिस कारण ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय से “विश्वपञ्चाङ्ग” की रक्षा करने के लिये “विश्वपञ्चाङ्ग” को ज्योतिष विभाग से ही अलग करने का निर्णय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को करना पड़ा ।

“विश्वपञ्चाङ्ग” सूर्यसिद्धान्तीय तो है किन्तु सूर्यसिद्धान्त के अंग्रेजी भाष्यकार ईसाई पादरी बर्जेस के गलत मत पर आधारित है । पादरी बर्जेस के ही अनुयायी डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय हैं जो पादरी बर्जेस के मतानुसार सूर्यसिद्धान्त को भगवान सूर्य की रचना नहीं मानते और भौतिक खगोलविज्ञान के आधार पर अप−टू−डेट करना चाहते हैं । “विश्वपञ्चाङ्ग” का गणित सूर्यसिद्धान्त के ग्रहगणित पर आधारित है किन्तु बीजसंस्कार रहित है । सूर्यसिद्धान्त के उपलब्ध ग्रन्थ में बीजसंस्कार के अध्याय को मध्ययुग में किसी बेवकूफ ने अप−टू−डेट करने के अधूरे प्रयास में भ्रष्ट कर दिया था,परन्तु सूर्यसिद्धान्तीय बीजसंस्कार पर ही आजतक भारत के सारे परम्परावादी पञ्चाङ्ग बनते आये हैं जिनमें सबसे प्रसिद्ध हैं काशी की “मकरन्द सारिणी” द्वारा बने पञ्चाङ्ग । आरम्भ में हिन्दू विश्वविद्यालय के नाम पर “विश्वपञ्चाङ्ग” बहुत बिकता था किन्तु शीघ्र ही लोगों ने पाया कि उससे बनी कुण्डलियाँ गलत फलादेश देती हैं तो “विश्वपञ्चाङ्ग” की बिक्री कई गुणी घट गयी ।

काशी में ही अंग्रेजों ने बापूदेव शास्त्री द्वारा भौतिक खगोलविज्ञान पर आधारित पञ्चाङ्ग आरम्भ कराया जो आजतक सरकार प्रकाशित करती आयी है किन्तु वह कहीं नहीं बिकता — क्योंकि मुर्दा भौतिक पिण्डों की गति पर आधारित कुण्डली का फलादेश व्यर्थ होता है । डा⋅ रामचन्द्र पाण्डेय “विश्वपञ्चाङ्ग” को भौतिक गणित पर आधारित करने का प्रयास अकारण कर रहे थे,काशी से ही उनके मनोनुकूल बापूदेव शास्त्री पञ्चाङ्ग तो ब्रिटिश राज के ही युग से प्रकाशित होता आया है जिसका प्रयोग कोई नहीं करता ।

परन्तु खेद की बात है कि श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर का आरम्भ करने के लिये जो मुहूर्त निकाला गया है वह विश्व के किसी भी प्राचीन अथवा नवीन सिद्धान्त के अनुसार सही नहीं है । हिन्दू पञ्चाङ्गों को नष्ट करने का सुनियोजित प्रयास नेहरू ने आरम्भ किया जिन्होंने विक्रम संवत् की बजाय शक संवत् को राष्ट्रीय संवत् घोषित किया और भौतिक खगोलविज्ञान पर आधारित “राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग” आरम्भ कराया — जिसका प्रयोग विश्व का कोई पण्डित अथवा पञ्चाङ्गों का जानकार नह


*गुरूचरण कमलेभ्यो नमः*

*महापुराण - उपपुराण- अतिपुराण- पुराण ।*

कुछ कथिय मेकौले शिक्षा प्राप्त बुद्धिजीवियों का मानना है कि पुराण ब्राह्मणों की कपोल कल्पित रचनाएँ हैं- जबकि वास्तविकता ये नहीं है
जबकि इतिहास- पुराणों को श्रुति ( वेद ) ने पँचवाँ वेद माना है।

" ॠचः सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह ।
उच्चिष्ठाज्जिरे सर्वे दिवि देवा दिवश्चिता: ।। "
अथर्ववेद 11/7/24
" यज्ञ से यजुर्वेद के साथ ॠक्, साम, छन्द और पुराण उत्पन्न हुऐ " ।
छान्दोग्योपनिषद् में नारद जी ने सनत्कुमार से कहा है--
" स होवाच ॠग्वेदं भगवोऽध्येमि यजुर्वेदं सामवेदमाथर्वणं
चतुर्थमितिहासपुराणं पञ्चमं वेदानां वेदम्-- "
अर्थात् :--
" मैं ॠग्वेद , यजुर्वेद, सामवेद, चौथे अथर्ववेद और पाँचवें
वेद इतिहास- पुराण को जानता हूँ "

तो इससे सिद्ध होता है कि इतिहास और पुराण भी अनादि हैं ।

18 महापुराण--
ब्रह्म पुराण , पद्म पुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, श्रीमद् भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिंग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरूड़ पुराण, और ब्रह्माण्ड पुराण ।

18 उपपुराण:--
भागवत पुराण, माहेश्वर पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, आदित्य पुराण, पराशर पुराण , सौर पुराण, नन्दिकेश्वर पुराण,
साम्ब पुराण, कालिका पुराण, वारूण पुराण, औशनस पुराण, मानव पुराण, कापिल पुराण, दुर्वासस पुराण, शिवधर्म पुराण, बृहन्नारदीय पुराण, नरसिंह पुराण, और
सनत्कुमार पुराण ।

18 अतिपुराण:--
कार्तव पुराण, ॠजु पुराण, आदि पुराण, मुद्गल पुराण, पशुपति पुराण, गणेश पुराण, सौर पुराण, परानन्द पुराण,
बृहद्धर्म पुराण, महाभागवत पुराण, देवी पुराण, कल्कि पुराण, भार्गव पुराण, वाशिष्ठ पुराण, कौर्म पुराण, गर्ग पुराण, चण्डी पुराण, और लक्ष्मी पुराण ।

18 पुराण:--
बृहद्विष्णु पुराण, शिव उत्तरखंड पुराण, लधु बृहन्नारदीय पुराण, मार्कण्डेय पुराण,वह्नि पुराण, भविष्योत्तर पुराण,
वराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, बृहद्वामन पुराण, बृहन्मत्स्य पुराण, स्वल्पमत्स्य पुराण, लघुवैवर्त पुराण, और पाँच प्रकार के भविष्य पुराण ।

इन नामों में, नामावली के विभाग में और क्रम में अंतर हो सकता है- हमें जो प्राप्त हुआ वैसा प्रस्तुत है-।

*भारत सरकार से अनुरोध है कि देश में गोहत्या पूर्णतः बंद हो-- और भारत को हिंदूराष्ट्र घोषित किया जाये ।*


*#नित्यसन्ध्योपासना में भी विधर्मीयोंने बहोत तोड़ मरोड़ कर गड़बड़ी कर दी हैं* --

(१)आर्यसमाजी (संकीर्णवर्णसंकर)की तरह उनकी मिश्र सन्ध्योपासना पद्धति न विधाक्रम न शाखा का कोई ठीकाना-- द्विजों के लिये अनुपयुक्त हैं।

(२)गायत्रीपरिवार की (मिश्र // शाखारंडदोषयुक्त--- सभी वेदशाखा के द्विज के लिये उपयुक्त नहीं)

(३)स्वाध्यायपरिवार पांडुरंग आठवले (माधवबाग मुंबई)वालो की त्रिकालसंध्या -- अज्ञानीयो ! यह दैनिक प्रार्थना के मंत्र हैं सन्ध्योपासना की विधा नहीं-- और ये मंत्रों में भी सभी वर्ण का सभी मंत्रों में अधिकार नहीं हैं।।

द्विज होकर भी यदि ये सन्ध्योपासना कर रहे हैं तो निश्चित ही पतित हैं। पुनः(फिरसे)जनेऊ के बिना इनकी शुद्धि नहीं हैं।।

*#स्वशाखीय सन्ध्योपासना का महत्व हैं -- परशाखीय या कपोलकल्पित का नहीं -->*

#स्वसूत्रोक्तविधानेन_सन्ध्यावन्दनमाचरेत्। #अन्यथा_यस्तु_कुरुते_आसुरीं_तनुमाप्नुयात्।। विश्वामित्र संहिता।।

*अपने गोत्र के वेद-शाखानुसार ही सन्ध्योपासना करें।सातदिन स्वशाखीय-नित्यसन्ध्योपासनात्याग करने मात्र से द्विज द्विजत्व से पतित हो जाता हैं उनका प्रायश्चित्त पूर्वक पुनः उपनयन होगा तब ही वे पुनः द्विजत्व को प्राप्त होगे अन्यथा द्विजाधिकारी के सभी वैदिककर्मों का अनधिकार हो जायगा* --

#सन्ध्यातिक्रमणं_यस्य_सप्तरात्रमपिच्युतम्। #उन्माददोषयुक्तोपि_पुनः_संस्कार_मर्हति।।शौनकः।।

विस्तार से समजिये -- कोई सामवेदी कौथुमीशाखा का है तो उन्हे कौथुमीशाखा की, कोई यजुर्वेदीय माध्यंदिनी शाखा का हैं तो उन्हें माध्यंदिनी की, कोई, ऋग्वेदीय शाकलशाखा का हैं तो उन्हें शाकलशाखा की, कोई अथर्वर्वेदी पिप्पलादशाखा का हैं तो उन्हें पिप्पलादशाखा की ही सन्ध्योपासना करनी चाहिये - अन्य शाखा की नहीं । नहीं तो सिधा पतन निश्चित हैं।

*साभार पुलकित शास्त्रीजी*

*वैदिक ब्राह्मण ग्रुप गुजरात*🙏🙏🙏🙏


ग्ररूड पुराण।
भगवान विष्णु द्वारा गरुडको उपदेश, ग्ररूड पुराणका महात्म्य।

पोस्ट 166
भाग 5

सत्संग और विवेक यह दो प्राणीके मलरहित स्वस्थ दो नेत्र हैं। जिसके पास ये दोनों नहीं है, वह मनुष्य अँधा है। वह कुमार्ग पर कैसे नहीं जायेगा ? अर्थात् वह अवश्य ही कुमार्गगामी होगा। अपने-अपने वर्णाश्रम-धर्मको माननेवाले सभी मानव दूसरेके धर्मको नहीं जानते हैं, किंतु वे दंभके वशीभूत हो जाय तो अपना ही नाश करते हैं। व्रतचर्यादीमें लगे हुए प्रयासरत कुछ लोगोंसे क्या बनेगा ? क्योंकि अज्ञानसे स्वयं अपने आत्मतत्वको ढके हुए लोग प्रचारक बनकर देश-देशांतरमें विचरण करते हैं। नाम मात्रसे स्वयं संतुष्ट कर्मकांडमें लगे हुए मनुष्य तथा मंत्रोचार एवं होमादिसे युक्त याज्ञीक यज्ञविस्तारके द्वारा भ्रमित है। मेरी मायासे विमोहित मूढ लोग शरीर को सुखा देनेवाले एक भक्त तथा उपवासादि नियमोंसे अपने पुण्यरुप अदृष्टकी कामना करते हैं। शरीरकी ताड़ना मात्रसे ज्ञानी जन क्या मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं ? या व्यामिकी पीटनेसे महावीषधारी सर्प मर सकता है ? यह कदापि संभव नहीं है। जटाओंके भार और मृचर्मसे युक्त वेश धारण करनेवाले दांभिक ज्ञानियोंकी भाँती इस संसारमें भ्रमण करते हैं और लोगोंको भ्रमित करते हैं। लौकिक सुखमें आसक्त 'मैं ब्रह्मको जानता हूं' ऐसा कहनेवाले कर्म तथा ब्रह्म, इन दोनोंसे भ्रष्ट, दँभी एवं ढोंगी व्यक्तिका अत्यंतजके समान परित्याग कर देना चाहिये। घर को वनके समान मानकर निर्वस्त्र और लज्जारहित जो साधु गधे अन्य पशुओंकी भांति इस जगतमें घूमते रहते हैं, क्या वे विरक्त होते हैं ? कदापि नहीं। यदि मिट्टी, भस्म तथा धूलका लेप करनेसे मनुष्य मुक्त हो सकता है तो क्या मिट्टी और भस्ममें ही नीत्य रहनेवाला कुत्ता मुक्त नहीं हो जायगा ? वनवासी तापसजन घांस, फुस पत्ता तथा जलका ही सेवन करते हैं, क्या इन्हींके समान वनमें रहने वाले सियार, चूहे और मृगादि जीवजंतु तपस्वी हो सकते हैं ? जन्मसे लेकर मृत्युपर्यंत गंगा आदिका पवित्रतम नदियोंमें रहनेवाले मेंढक या मछली आदि प्रमुख जलचर प्राणी योगी हो सकते हैं ? कबूतर, शीलाहार और चातक पक्षी कभी भी पृथ्वीका जल नहीं पीते हे, क्या उनका व्रति होना संभव ह। अतः ये नित्यादि कर्म, लोकरंजनके कारक हे। हे खगेश्वर ! मोक्षका कारण तो साक्षात तत्वज्ञान है।

क्रमशः


*वेदघोष_के_विड़ीयों_का सोशियलमिड़ीया_में_दुष्प्रचार*

सामूहिक यज्ञों आदि का ऐसा व्यसन हुआ हैं कि कुछ अच्छे से अच्छे वैदिकों ! इस सोशियल मिड़ीया में भी अनधिकृतों --> जनेऊ-रहितों(व्रात्य),शाखारण्ड,शूद्र,म्लेच्छ,
नित्य-सन्ध्योपासनारहित-द्विजों तथा पतित-ब्राह्मणों के मध्य #वेदमंत्रघोष_के_विड़ीयो अपलोड़ किया करतें हैं..

जिसको आपका परिचय हैं वह तो जानते ही हैं कि आपमें या आपके शिष्य में कितनी सक्षमता हैं। यह सब विद्यालय तक सिमित रहे तो ही शास्त्र की मर्यादा हैं- "#श्रुतं_मे_गोपाय || तैत्तरीय शि०१/४/१।।

और न तो यह व्यवसायीकरण की श्रृंखला में आता है कि उसकी प्रायोगिक विज्ञापन(जाहेरात करनी)चाहिये। हम सबको समादर पूर्वक निवेदन करतें हैं कि ऐसा अनुचित कार्य न हो।।

कलियुग से पहिले न तो कैमेरे थे और न तो विड़ीयो-शूटिंग के साधन, फिर भी अध्ययन-अध्यापन की आर्ष-पद्धति सुरक्षित थी ..

और आज न तो स्व-स्वशाखा का कहीं अध्ययन हो रहा हैं और न तो स्व-स्व शाखा के उपनयन -- ये सब द्विज की वैकल्पिक कल्पना भी सार्थक नहीं, क्योंकि परशाखीय जनेऊ, नित्यकर्म, जनेऊ और समस्त संस्कार तथा यज्ञादि कर्म स्वशाखीय न हुएँ तो निरर्थक ही हैं...

यहाँ सोशियल-मिड़ीया चाहे वह वॉट्सएप हो, चाहे वह फेसबुक हो या अन्य कोई प्रसाधन; सभी इसके श्रवण के अधिकारी न होने के कारण से (ऐसी जगहों पर )वैदिक विड़ीयो अपलोड़ करना वेद के मर्मों पर प्रहार करना जैसा ही हैं । हे वैदिको ! जरा #श्रावणी_उपाकर्म का संकल्प भी उठाकर पढ़ लेना तो भी पता चल ही जायेगा कि अनधिकारीयों के आगे वेदोच्चार की कोई मर्यादा नहीं रहती... "( #नाब्रह्मचारिणे #नातपस्विने #नासंवत्सरोषिताय #नाप्रक्त्रेनुब्रूयात् ०००आदि*।।शु-यजुर्वेदीय सर्वानुक्रम अ-४/१३।।)"

हमने वैदिक लेखित-सस्वरांकन वाले रुद्रपाठ का विड़ीयो को अपलोड़ किया हुआ दैखा हैं, कोई अनधिकारी यदि उसमें से तोतलाकर बोलने का अनधिकृत प्रयत्न करता हैं तो दोष किसको लगेगा ? सभी में यह विचारणीय हैं...
सोशियल मिड़ीया में वेदोच्चार के ओड़ीयो-विड़ीयो डा़लने वाले सुन लिजिये । आप के डाले ओड़ीयो-विड़ीयो को वारंवार सुन कर अनधिकारी भी वेद मंत्र गुनगुनातें हैं। कुछलोग तो कुछ हद तक वेदमंत्र जैसे तैसे बोल भी लिया करते हैं। फिर आप सबकी ही आपत्ति रहती हैं कि फलाना ढीमक़ा वेद के लिये अनधिकारी होनेपर भी ऐसा करता हैं वैसा करता हैं। यह सब आपके अज्ञानता के ही कारण अनधिकारीयों की वेदमंत्रोच्चार में उपज होती रहती हैं। सोशियल मिड़ीया में रहे कुछ ब्राह्मण भी पतित होने के कारण अनधिकारी होतें ही हैं। इस तरह अनधिकारीयों को भी प्रबुद्ध कहे जानेवाले शास्त्रीय भाषा में अज्ञ वेदपाठी अनधिकारीयों को परोक्षरिति से वेदाध्ययन करवा रहे हैं।
वैदिकमंत्र, वैदिक विड़ीयो आदि के लिये यह सोशियल मिड़ीया के स्थान अयोग्य हैं... सभी वैदिको को यह मानना चाहिये ,, और सभी को प्रयत्न पूर्वक पालन भी करना चाहिये..

अधिक गृह्यसूत्रधर्मसूत्रस्मृति निर्णयसिंधु धर्मसिंधु, शुक्ल-यजुः सर्वानुक्रम , चतुर्वर्गचिंतामणि प्रायश्चित्त खंड, मुर्हूतमार्तण्ड, नारदसंहिता आदि ग्रन्थो में अनध्याय प्रकरण दैखे साथ में श्रावणीउपाकर्म का विज्ञान भी मननीय हैल

साभार
*पुलकित शास्त्रीजी*
*श्री वैदिक ब्राह्मण ग्रुप गुजरात*


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