में तय बिना किसी निजी मांग के न्यायालय में राम जन्मभूमि का मजबूत पक्ष रखने के लिए शंकराचार्य जी ने अखिल भारतीय राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति गठित की क्योंकि निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान निजी मांग के साथ केस लड़ रहे थे।
●अखिल भारतीय राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति तब से लेकर आज तक कोर्ट में मजबूती से केस लड़ती रही और 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट और 2019 के सुप्रीम कोर्ट का जो निर्णय हिन्दुओ के पक्ष में आया उसका प्रमुख कारण जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज बने।
● 3 जून 1989 के चित्रकूट सम्मेलन के बाद शंकराचार्य जी ने देश के अनेक बड़े संतों को लेकर समाज मे राम जी के लिए जनजागरण करने उतर गए जिसका प्रभाव बहुत बड़ा पड़ा। मध्यप्रदेश के झोतेश्वर में एक बार 5 लाख से अधिक जनता पहुँची जो इनके व्यक्तित्व, इनके प्रभाव की विशालता को दर्शाती है।
● उस समय विश्व हिन्दू परिषद के पास हिन्दुओं के वोट के लिए कोई मुद्दा नही था बीजेपी के पास दो सीटें थी, जब उन्होंने शंकराचार्य को राम मन्दिर पर आगे आते देखा और जनता को इससे प्रभावित होते देखा तो वो शंकराचार्य के इस मुद्दे को लपक लिये और इसे 1989 के दिसम्बर में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भुनाना शुरू कर दिए।
● 1989 में ही राम मन्दिर के आंदोलन के समय शंकराचार्य ने काशी के पंडितो से राम मन्दिर के शिलान्यास का शुभ मुहूर्त निकलवाया जो कि उत्तरायण में 7 मई 1989 तय हुआ।
● चित्रकूट के उस सम्मेलन का कोई राजनीतिक उद्देश्य नही था क्योंकि शंकराचार्य जी का सदैव से यह मानना था कि धर्म सम्बन्धी विषयों का राजनीतिकरण नही होना चाहिए, पर धर्म के नाम पर राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले दल को ये कहाँ मान्य था कि वो धर्म का राजनीतिकरण करके हिन्दूओं के भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करे अतः उसे तो करना ही था।
● बीजेपी यानी विश्व हिन्दू परिषद यानी संघ को बहुत ही जल्दी यह समझ में आ गया था कि यह राम मन्दिर एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिससे वह सत्ता की सीढ़ियों तक आसानी से पहुँच सकती है अतः ये मौका हाथ से न चला जाये और हिन्दू जनता, शंकराचार्य जी को राम मन्दिर का उद्धारक न मान ले उससे पहले ही क्यों न वही शिलान्यास का दिखावा कर दे क्योंकि इसी वर्ष दिसम्बर में केंद्र और राज्य में चुनाव भी होने वाले थे।
अतः उसने राम मन्दिर के विषय को हिन्दू समाज में ले जाने का निश्चय किया जिससे कि हिंदुओं का वोट उसे मिल सके।
●पर यहाँ तो पहले से ही जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज एवं उनके साथ अन्य साधु-संत देशभर में राम मंदिर निर्माण के लिए नागरिकों में अलख जगाना शुरू कर चूकें थें। तब शंकराचार्य जी को पता भी नहीं था कि कल को बीजेपी विश्व हिन्दू परिषद द्वारा, इस विषय का राजनीतिकरण हो जाएगा।
● दिसम्बर 1989 से 9वी लोकसभा के चुनाव का तारीख तय हो चुका था। उधर अगले साल शुभ मुहूर्त 7 मई 1990 को राम मन्दिर के शिलान्यास की तारीख शंकराचार्य जी द्वारा तय हो चुका था।
●देश भर में घूम घूम कर देश की जनता को शंकराचार्य जी ने राम मन्दिर के लिए पहले ही जागरूक कर दिया अतः विश्व हिन्दू परिषद भाजपा ने चुनाव को देखते हुए योजना बनायी और शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के शिलान्यास के तर्ज पर चुनाव से ठीक पहले आनन फानन में दक्षिणायन के गलत मुहूर्त में 9 नवम्बर 1989 को अयोध्या जाकर राम मन्दिर का एक फर्जी शिलान्यास कर दिया। दरअसल वह शिलान्यास गर्भ गृह पे न होकर 192 फिट दूर सिंहद्वार पर कर दिया। इस नकली शिलान्यास का लाभ चुनाव में भाजपा को मिल गया और भारत की जनता ने भाजपा के छल को समझती उससे पहले चुनाव आ गया और भाजपा को राम मन्दिर का शिलान्यास कराने वाला सोच कर वोट दे दिया जिससे लोकसभा में भाजपा सीधे 2 सीट से 85 सीट पे आ गयी।
● शिलान्यास के समय विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में सिंह द्वारा के पास एक बहुत बड़ा गड्ढा खना जिसमे लाखो लोगो ने उस दिन राम के नाम पर रुपया पैसा सोना चाँदी उस गड्ढे में डाले क्योंकि लोगो से संघीयो यानी विश्व हिन्दू परिषद वालो ने राम मन्दिर के नाम पर उस गड्ढे में डलवाया। सोने चांदी से पटा वो गड्ढे का धन कहा गया ये बात आजतक आम जनता को नही पता है। एक कमरे के बराबर वाले उस गड्ढे का चित्र संलग्न।
● जब जगद्गुरु शंकराचार्य सहित वैदिक विद्वानो ने शास्त्र के आधार पर इस नकली शिलान्यास को उजागर कर दिया तो भाजपायी संघी चिढ़ गए और तब से स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज को कांग्रेसी कहना आरम्भ कर अपने कार्यकर्ताओं से गाली दिलवाना शुरू कर दिया जो आजतक चला आ रहा है।
●कांग्रेस सरकार के तत्कालीन गृहमन्त्री बूटा सिंह संघ और विहिप के साथ मिलकर शंकाराचार्य जी के विरोध में अयोध्या में गर्भगृह से 192 फिट दूर शिलान्यास किये थे जिसका विरोध जगद्गुरु शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने किया था अतः असली कांग्रेसी तो स्वयं
●अखिल भारतीय राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति तब से लेकर आज तक कोर्ट में मजबूती से केस लड़ती रही और 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट और 2019 के सुप्रीम कोर्ट का जो निर्णय हिन्दुओ के पक्ष में आया उसका प्रमुख कारण जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज बने।
● 3 जून 1989 के चित्रकूट सम्मेलन के बाद शंकराचार्य जी ने देश के अनेक बड़े संतों को लेकर समाज मे राम जी के लिए जनजागरण करने उतर गए जिसका प्रभाव बहुत बड़ा पड़ा। मध्यप्रदेश के झोतेश्वर में एक बार 5 लाख से अधिक जनता पहुँची जो इनके व्यक्तित्व, इनके प्रभाव की विशालता को दर्शाती है।
● उस समय विश्व हिन्दू परिषद के पास हिन्दुओं के वोट के लिए कोई मुद्दा नही था बीजेपी के पास दो सीटें थी, जब उन्होंने शंकराचार्य को राम मन्दिर पर आगे आते देखा और जनता को इससे प्रभावित होते देखा तो वो शंकराचार्य के इस मुद्दे को लपक लिये और इसे 1989 के दिसम्बर में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भुनाना शुरू कर दिए।
● 1989 में ही राम मन्दिर के आंदोलन के समय शंकराचार्य ने काशी के पंडितो से राम मन्दिर के शिलान्यास का शुभ मुहूर्त निकलवाया जो कि उत्तरायण में 7 मई 1989 तय हुआ।
● चित्रकूट के उस सम्मेलन का कोई राजनीतिक उद्देश्य नही था क्योंकि शंकराचार्य जी का सदैव से यह मानना था कि धर्म सम्बन्धी विषयों का राजनीतिकरण नही होना चाहिए, पर धर्म के नाम पर राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले दल को ये कहाँ मान्य था कि वो धर्म का राजनीतिकरण करके हिन्दूओं के भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करे अतः उसे तो करना ही था।
● बीजेपी यानी विश्व हिन्दू परिषद यानी संघ को बहुत ही जल्दी यह समझ में आ गया था कि यह राम मन्दिर एक बहुत बड़ा मुद्दा है जिससे वह सत्ता की सीढ़ियों तक आसानी से पहुँच सकती है अतः ये मौका हाथ से न चला जाये और हिन्दू जनता, शंकराचार्य जी को राम मन्दिर का उद्धारक न मान ले उससे पहले ही क्यों न वही शिलान्यास का दिखावा कर दे क्योंकि इसी वर्ष दिसम्बर में केंद्र और राज्य में चुनाव भी होने वाले थे।
अतः उसने राम मन्दिर के विषय को हिन्दू समाज में ले जाने का निश्चय किया जिससे कि हिंदुओं का वोट उसे मिल सके।
●पर यहाँ तो पहले से ही जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज एवं उनके साथ अन्य साधु-संत देशभर में राम मंदिर निर्माण के लिए नागरिकों में अलख जगाना शुरू कर चूकें थें। तब शंकराचार्य जी को पता भी नहीं था कि कल को बीजेपी विश्व हिन्दू परिषद द्वारा, इस विषय का राजनीतिकरण हो जाएगा।
● दिसम्बर 1989 से 9वी लोकसभा के चुनाव का तारीख तय हो चुका था। उधर अगले साल शुभ मुहूर्त 7 मई 1990 को राम मन्दिर के शिलान्यास की तारीख शंकराचार्य जी द्वारा तय हो चुका था।
●देश भर में घूम घूम कर देश की जनता को शंकराचार्य जी ने राम मन्दिर के लिए पहले ही जागरूक कर दिया अतः विश्व हिन्दू परिषद भाजपा ने चुनाव को देखते हुए योजना बनायी और शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के शिलान्यास के तर्ज पर चुनाव से ठीक पहले आनन फानन में दक्षिणायन के गलत मुहूर्त में 9 नवम्बर 1989 को अयोध्या जाकर राम मन्दिर का एक फर्जी शिलान्यास कर दिया। दरअसल वह शिलान्यास गर्भ गृह पे न होकर 192 फिट दूर सिंहद्वार पर कर दिया। इस नकली शिलान्यास का लाभ चुनाव में भाजपा को मिल गया और भारत की जनता ने भाजपा के छल को समझती उससे पहले चुनाव आ गया और भाजपा को राम मन्दिर का शिलान्यास कराने वाला सोच कर वोट दे दिया जिससे लोकसभा में भाजपा सीधे 2 सीट से 85 सीट पे आ गयी।
● शिलान्यास के समय विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में सिंह द्वारा के पास एक बहुत बड़ा गड्ढा खना जिसमे लाखो लोगो ने उस दिन राम के नाम पर रुपया पैसा सोना चाँदी उस गड्ढे में डाले क्योंकि लोगो से संघीयो यानी विश्व हिन्दू परिषद वालो ने राम मन्दिर के नाम पर उस गड्ढे में डलवाया। सोने चांदी से पटा वो गड्ढे का धन कहा गया ये बात आजतक आम जनता को नही पता है। एक कमरे के बराबर वाले उस गड्ढे का चित्र संलग्न।
● जब जगद्गुरु शंकराचार्य सहित वैदिक विद्वानो ने शास्त्र के आधार पर इस नकली शिलान्यास को उजागर कर दिया तो भाजपायी संघी चिढ़ गए और तब से स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज को कांग्रेसी कहना आरम्भ कर अपने कार्यकर्ताओं से गाली दिलवाना शुरू कर दिया जो आजतक चला आ रहा है।
●कांग्रेस सरकार के तत्कालीन गृहमन्त्री बूटा सिंह संघ और विहिप के साथ मिलकर शंकाराचार्य जी के विरोध में अयोध्या में गर्भगृह से 192 फिट दूर शिलान्यास किये थे जिसका विरोध जगद्गुरु शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी महाराज ने किया था अतः असली कांग्रेसी तो स्वयं