एकासने निविष्ठा ये भुञ्जाना हौक भाजने । एकपात्रे पिवन्तो ये ते यान्ति निरयं ध्रुवम्!
योगामृत का कुल्ला करने से, मद्यभाण्ड की परिक्रमा करने से एवं कण्ठ के ऊपर तक मद्यपान करने से देवता के शाप की प्राप्ति होती है। जो लोग एक आसन पर बैठकर एक ही पात्र में भोजन करते हैं और एक ही पात्र से पान करते हैं, उन्हें निश्चित ही नरक में जाना पड़ता है।।
ये सेवन्ते कुलद्रव्यमेकग्रामे स्थिते गुरी। तत्कुलजे च तत्पुत्रे स्वज्येष्ठे कुलदेशिके
विनानुज्ञां स पापात्मा रौरवं निरयं ब्रजेत् । उच्छिष्ठो न स्पृशेच्चक्रं कुलद्रव्यं तथा गुरुम् ॥५७३॥
बहिः प्रक्षाल्य च जलैः कुलद्रव्याणि दापयेत् । मद्यभाण्डं समुद्धत्य न पात्रं परिपूजयेत् ॥५७४॥
गुरु, गुरुकुल में उत्पत्र, गुरुपुत्र, अपने ज्येष्ठ और कुलदेशिक के साथ एक ही माम में स्थित रहने पर भी जो लोग उनकी विना आज्ञा प्राप्त किये कुलद्रव्य का सेवन करते हैं, वे पापात्मा रौरव नरक में गमन करते हैं।r
जूठे हाथ-मुँह से चक्र, कुलद्रव्य एवं गुरु का स्पर्श नहीं करना चाहियेः अपितु बाहर जल से हाथ-मुँह धोकर कुलद्रव्य का स्पर्श करना चाहिये। मद्यभाण्ड को उठाकर पात्र का पूजन नहीं करना चाहिये।
#meru
योगामृत का कुल्ला करने से, मद्यभाण्ड की परिक्रमा करने से एवं कण्ठ के ऊपर तक मद्यपान करने से देवता के शाप की प्राप्ति होती है। जो लोग एक आसन पर बैठकर एक ही पात्र में भोजन करते हैं और एक ही पात्र से पान करते हैं, उन्हें निश्चित ही नरक में जाना पड़ता है।।
ये सेवन्ते कुलद्रव्यमेकग्रामे स्थिते गुरी। तत्कुलजे च तत्पुत्रे स्वज्येष्ठे कुलदेशिके
विनानुज्ञां स पापात्मा रौरवं निरयं ब्रजेत् । उच्छिष्ठो न स्पृशेच्चक्रं कुलद्रव्यं तथा गुरुम् ॥५७३॥
बहिः प्रक्षाल्य च जलैः कुलद्रव्याणि दापयेत् । मद्यभाण्डं समुद्धत्य न पात्रं परिपूजयेत् ॥५७४॥
गुरु, गुरुकुल में उत्पत्र, गुरुपुत्र, अपने ज्येष्ठ और कुलदेशिक के साथ एक ही माम में स्थित रहने पर भी जो लोग उनकी विना आज्ञा प्राप्त किये कुलद्रव्य का सेवन करते हैं, वे पापात्मा रौरव नरक में गमन करते हैं।r
जूठे हाथ-मुँह से चक्र, कुलद्रव्य एवं गुरु का स्पर्श नहीं करना चाहियेः अपितु बाहर जल से हाथ-मुँह धोकर कुलद्रव्य का स्पर्श करना चाहिये। मद्यभाण्ड को उठाकर पात्र का पूजन नहीं करना चाहिये।
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