हे जगदम्बिके ! तब तक ही हरि एवं हर में, मनुष्यों में भेदबुद्धि उत्पन्न होती है। करालवदना काली, श्रीमत् एकजटा शिवा से भिन्न रहती हैं । (तब तक) षोडशी एवं भैरवी भिन्ना हैं। (तब तक) भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, अन्नपूर्णा भिन्त्रा हैं। (तब तक) बगलामुखी भी भिन्ना हैं ।।84।।
(तब तक) मातङ्गी एवं कमला भिन्ना हैं; वाणी एवं राधिका भिन्ना हैं, चेष्टाएँ भिन्ना है; क्रियाएँ भिन्ना हैं; आचार समूह भी भिन्न हैं ।।85।।
जब तक भवानी के पादपद्म में ऐक्य-ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है; जब तक परम पावन तारिणी के अद्वैत (एक) पादपद्म में ऐक्य-ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है, तब तक यह भेद रहता है ।186।।
हे चार्वङ्गि ! हृत्पद्म-गृह में ज्ञान का पार ( पराकाष्ठा) उत्पन्न होने पर, समस्त ही ब्रह्ममय है एवं विध ऐक्य ज्ञान उत्पन्न होता है ।18711
हे देवेशि ! समस्त जीव को यह ऐक्यज्ञान (प्राप्त) हो सकता है। हे शङ्करि ! यह ऐक्यज्ञान उत्पन्न होने पर, पाप नहीं है, पुण्य नहीं है, यम (मृत्यु) नहीं है, नरक नहीं है, सुख नहीं है, दुःख नहीं है। उसी प्रकार, रोग से भय भी नहीं है ।।88।।
#mundmala #tantra
(तब तक) मातङ्गी एवं कमला भिन्ना हैं; वाणी एवं राधिका भिन्ना हैं, चेष्टाएँ भिन्ना है; क्रियाएँ भिन्ना हैं; आचार समूह भी भिन्न हैं ।।85।।
जब तक भवानी के पादपद्म में ऐक्य-ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है; जब तक परम पावन तारिणी के अद्वैत (एक) पादपद्म में ऐक्य-ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है, तब तक यह भेद रहता है ।186।।
हे चार्वङ्गि ! हृत्पद्म-गृह में ज्ञान का पार ( पराकाष्ठा) उत्पन्न होने पर, समस्त ही ब्रह्ममय है एवं विध ऐक्य ज्ञान उत्पन्न होता है ।18711
हे देवेशि ! समस्त जीव को यह ऐक्यज्ञान (प्राप्त) हो सकता है। हे शङ्करि ! यह ऐक्यज्ञान उत्पन्न होने पर, पाप नहीं है, पुण्य नहीं है, यम (मृत्यु) नहीं है, नरक नहीं है, सुख नहीं है, दुःख नहीं है। उसी प्रकार, रोग से भय भी नहीं है ।।88।।
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