दो दोषों की अधिकता में नाड़ों को विशेष गति दो दोषों की अधिकता होने पर श्रेष्ठ वैद्यों को सर्पादि की गतियों के अनुसार गति समझनी चाहिए। अर्थात् बात-पित्त की निश्चित अधिकता में सर्प तथा काक की गति समय भेद से प्रतीत होती है। बात-कफ की निश्वित अधिकता में सर्प तथा हंस की तरह गति समान भेद से प्रतीत होती है और पित्त-कफ की अधिकता में काक तथा हंस की गति की भाँति समय भेद से होती है ॥ १९ ॥
असाध्यनाडीलक्षणम् -
कचिन्मन्दां कचित्तीनां त्रुटितां बहते कचित् । कचित्सूक्ष्मां कश्चित्स्थूलां नाढ्यसाध्यगदे गतिम् ।। २० ।।
त्वगुध्वं दृश्यते नाडी प्रबद्देदतिचञ्चला। असाध्यलक्षणा प्रोक्ता पिच्छिला चातिचञ्चला ।। २१ ।।
असाध्य नाड़ी की गति का लक्षण असाध्य रोग के रोगी की नाड़ी कभी मन्द, कभी-कभी त्रुटित (रुक-रुक कर), कभी सूक्ष्म तथा कभी स्थूल गति से चलती है। यदि नाड़ी की गति चर्म के ऊपर स्पष्ट प्रतीत हो और अत्यन्त चञ्चलगति हो तो असाध्य रोग का लक्षण है। इसके अतिरिक्त अति पिच्छिल तथा चथल गति से युक्त नाड़ी प्रतीत हो तो भी असाध्य समझना चाहिए ॥ २०-२१ ॥
निर्दोषाया नाज्या लक्षणम् -
अनुवादूर्ध्वसंलग्गा समा च बहते यदि । निर्दोषा साच विज्ञेया नाडोलक्षणकोविदैः ।। २२ ।।
निर्दोष नाड़ी का लक्षण - यदि नाड़ी की गति अंगूठे के ऊपर की ओर चलती हो और उसकी गति समभाव से अर्थात् न मन्द हो और न शीघ्र हो तो निर्दोष नाड़ी समझनी चाहिए ।
१. मद्दा दाहेऽपि शीतत्वं शीतत्वे तापिता शिरा ।नाना विधगतिर्यस्य तस्य मृत्युर्न संशयः ॥
(नाड़ी दर्पण) जिस मनुष्य के देह में दाह अधिक हो किन्तु नाड़ी शीत प्रतीत हो और शरीर अत्यन्त शीतल हो तथा नाड़ी उष्ण प्रतीत हो एवं जिसकी नाड़ी अनेक प्रकार की गति से चलती हो तो रोगी की मृत्यु हो जाती है इसमें सन्देह नहीं है।
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@sanatanrahasya
असाध्यनाडीलक्षणम् -
कचिन्मन्दां कचित्तीनां त्रुटितां बहते कचित् । कचित्सूक्ष्मां कश्चित्स्थूलां नाढ्यसाध्यगदे गतिम् ।। २० ।।
त्वगुध्वं दृश्यते नाडी प्रबद्देदतिचञ्चला। असाध्यलक्षणा प्रोक्ता पिच्छिला चातिचञ्चला ।। २१ ।।
असाध्य नाड़ी की गति का लक्षण असाध्य रोग के रोगी की नाड़ी कभी मन्द, कभी-कभी त्रुटित (रुक-रुक कर), कभी सूक्ष्म तथा कभी स्थूल गति से चलती है। यदि नाड़ी की गति चर्म के ऊपर स्पष्ट प्रतीत हो और अत्यन्त चञ्चलगति हो तो असाध्य रोग का लक्षण है। इसके अतिरिक्त अति पिच्छिल तथा चथल गति से युक्त नाड़ी प्रतीत हो तो भी असाध्य समझना चाहिए ॥ २०-२१ ॥
निर्दोषाया नाज्या लक्षणम् -
अनुवादूर्ध्वसंलग्गा समा च बहते यदि । निर्दोषा साच विज्ञेया नाडोलक्षणकोविदैः ।। २२ ।।
निर्दोष नाड़ी का लक्षण - यदि नाड़ी की गति अंगूठे के ऊपर की ओर चलती हो और उसकी गति समभाव से अर्थात् न मन्द हो और न शीघ्र हो तो निर्दोष नाड़ी समझनी चाहिए ।
१. मद्दा दाहेऽपि शीतत्वं शीतत्वे तापिता शिरा ।नाना विधगतिर्यस्य तस्य मृत्युर्न संशयः ॥
(नाड़ी दर्पण) जिस मनुष्य के देह में दाह अधिक हो किन्तु नाड़ी शीत प्रतीत हो और शरीर अत्यन्त शीतल हो तथा नाड़ी उष्ण प्रतीत हो एवं जिसकी नाड़ी अनेक प्रकार की गति से चलती हो तो रोगी की मृत्यु हो जाती है इसमें सन्देह नहीं है।
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