पूजा करने के नियम क्या हैं ?
✤ सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, सभी कार्यों में भगवान विष्णु की पूजा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। प्रतिदिन पूजन के समय इन पंचदेवों का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।
✤ शिवजी, गणेश जी और भैरव जी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
✤ मां दुर्गा को दूर नहीं करना चाहिए। यह गणेश जी को विशेष रूप से निर्विकार की तरह माना जाता है।
✤ सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
✤ तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के अवशेषों को तोड़ता है तो पूजन में इन पुष्पों को भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है।
✤ प्लास्टिक की बोतल में या किसी भी अपवित्र धातु के पॉट में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और आयरन से बने पोइंटर। गंगाजल के भंडार में शुभ रहता है।
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✤ शैतान को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यहां इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।
✤ मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ नहीं दिखानी चाहिए।
✤ केतकी का फूल शिवलिंग पर नहीं करना चाहिए।
✤ किसी भी पूजा में मन की शांति के लिए दक्षिणा अवश्य लेनी चाहिए। दक्षिणा निकेत समय अपने दोषों को शामिल करने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी अलग करने पर विचार अवश्य करें।
✤ दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।
✤ माँ लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल दिया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ाया जा सकता है।
✤ शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक नहीं माने जाते हैं। अत: उदाहरण के लिए जल छिड़क कर पुन: लिंग पर निशान लगाया जा सकता है।
✤ आम तौर पर फूलों को हाथ में लेकर भगवान को भगवान को समर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढाने के लिए फूलों को किसी भी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और उसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को बचाकर रखना चाहिए।
✤ कांच के बर्तन में चंदन, घीसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।
✤ हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक बात से दीपक न जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।
✤ रविवार और रविवार को पीपल के पेड़ में जल संरक्षण नहीं करना चाहिए।
✤ पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख से करनी चाहिए। यदि संभव हो तो सुबह 6 से 8 बजे तक बीच में पूजा अवश्य करें।
✤ पूजा करते समय ध्यान दें कि आसन का आसन एक होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।
✤ घर के मंदिर में सुबह और शाम को दीपक जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।
✤ पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद एक ही स्थान पर 3-3 बार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
✤ रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रांति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।
✤ भगवान की आरती करते समय ध्यान दें ये बातें- भगवान के चरण की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान की समस्त क्रियाओं की कम से कम सात बार आरती करानी चाहिए।
✤ पूजाघर में मूर्तियाँ 1, 3, 5, 7, 9, 11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं, लेकिन गणेश जी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।
✤ गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो, शालिग्राम दो, सूर्य प्रतिमा दो, गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न स्थान। घर में बीच बीच में घर बिल्कुल वैसा ही वातावरण शुद्ध होता है।
✤ अपने मंदिर में विशेष प्रतिष्ठित मूर्तियाँ ही उपहार, काँच, लकड़ी और फ़ाइबर की मूर्तियाँ न रखें और खंडित, जलीकटी फोटो और बर्तन काँच तुरंत हटा दें। शिलालेखों के अनुसार खंडित ज्वालामुखी की पूजा की जाती है। जो भी मूर्ति स्थापित है, उसे पूजा स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित भगवान की पूजा अशुभ मानी जाती है। इस संबंध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि केवल भाषा ही कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं मानी जाती
✤ सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, सभी कार्यों में भगवान विष्णु की पूजा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। प्रतिदिन पूजन के समय इन पंचदेवों का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।
✤ शिवजी, गणेश जी और भैरव जी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
✤ मां दुर्गा को दूर नहीं करना चाहिए। यह गणेश जी को विशेष रूप से निर्विकार की तरह माना जाता है।
✤ सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
✤ तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के अवशेषों को तोड़ता है तो पूजन में इन पुष्पों को भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है।
✤ प्लास्टिक की बोतल में या किसी भी अपवित्र धातु के पॉट में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और आयरन से बने पोइंटर। गंगाजल के भंडार में शुभ रहता है।
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✤ मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ नहीं दिखानी चाहिए।
✤ केतकी का फूल शिवलिंग पर नहीं करना चाहिए।
✤ किसी भी पूजा में मन की शांति के लिए दक्षिणा अवश्य लेनी चाहिए। दक्षिणा निकेत समय अपने दोषों को शामिल करने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी अलग करने पर विचार अवश्य करें।
✤ दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।
✤ माँ लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल दिया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ाया जा सकता है।
✤ शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक नहीं माने जाते हैं। अत: उदाहरण के लिए जल छिड़क कर पुन: लिंग पर निशान लगाया जा सकता है।
✤ आम तौर पर फूलों को हाथ में लेकर भगवान को भगवान को समर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढाने के लिए फूलों को किसी भी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और उसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को बचाकर रखना चाहिए।
✤ कांच के बर्तन में चंदन, घीसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।
✤ हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक बात से दीपक न जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।
✤ रविवार और रविवार को पीपल के पेड़ में जल संरक्षण नहीं करना चाहिए।
✤ पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख से करनी चाहिए। यदि संभव हो तो सुबह 6 से 8 बजे तक बीच में पूजा अवश्य करें।
✤ पूजा करते समय ध्यान दें कि आसन का आसन एक होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।
✤ घर के मंदिर में सुबह और शाम को दीपक जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।
✤ पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद एक ही स्थान पर 3-3 बार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
✤ रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रांति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।
✤ भगवान की आरती करते समय ध्यान दें ये बातें- भगवान के चरण की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान की समस्त क्रियाओं की कम से कम सात बार आरती करानी चाहिए।
✤ पूजाघर में मूर्तियाँ 1, 3, 5, 7, 9, 11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं, लेकिन गणेश जी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।
✤ गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो, शालिग्राम दो, सूर्य प्रतिमा दो, गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न स्थान। घर में बीच बीच में घर बिल्कुल वैसा ही वातावरण शुद्ध होता है।
✤ अपने मंदिर में विशेष प्रतिष्ठित मूर्तियाँ ही उपहार, काँच, लकड़ी और फ़ाइबर की मूर्तियाँ न रखें और खंडित, जलीकटी फोटो और बर्तन काँच तुरंत हटा दें। शिलालेखों के अनुसार खंडित ज्वालामुखी की पूजा की जाती है। जो भी मूर्ति स्थापित है, उसे पूजा स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित भगवान की पूजा अशुभ मानी जाती है। इस संबंध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि केवल भाषा ही कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं मानी जाती