Ancient India | प्राचीन भारत


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*फाल्गुन मास की पूर्णिमा कों मनाये जाने वाले पर्व होली का प्राचीनतम नाम वासन्ती नव सस्येष्टि है अर्थात् बसन्त ऋतु के नये अनाजों से किया हुआ यज्ञ!होली होलक का अपभ्रंश है। तिनके की अग्नि में भुने हुए (अधपके) शमो-धान्य (फली वाले अन्न) को होलक कहते हैं। यह होलक वात-पित्त-कफ तथा श्रम के दोषों का शमन करता है।हम प्रतिवर्ष होली जलाते हैं,उसमें आखत डालते हो जो आखत हैं-वे अक्षत का अपभ्रंश रुप हैं,अक्षत चावलों को कहते हैं और अवधि भाषा में आखत को आहुति कहते हैं। कुछ भी हो चाहे आहुति हो,चाहे चावल हों,यह सब यज्ञ की प्रक्रिया है।आप जो परिक्रमा देते हैं यह भी यज्ञ की प्रक्रिया है।आइये हम सब अपने घरों में होली रुपी विशाल यज्ञ को सम्पन्न करते हैं। होली की पावन अग्नि में सभी के जीवन की मायूसी,दरिद्रता दूर हो और सुख,स्वास्थ्य और शांति आये, होली पर्व की सभी कों शुभकामनाये!!*🎉🎊
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Om Namaha Shivaya ❤️ @ancientindia1




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Har Har Mahadev 🙏💐❤️🌟
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*भक्त नरसी मेहता चरित (37)*
*******

🌇🌸अमृत है हरि नाम जगत में,
इसे छोड़ विषय विष पीना क्या
हरि नाम नही तो जीना क्या
काल सदा अपने रस डोले
ना जाने कब सर चढ़ बोले*

*भगवान श्रीकृष्ण ने नर्सिरूप धर विधि पूर्वक श्राद्ध सम्पन्न किया*

*'भगवान के आज्ञा अनुसार घर पर श्राद्ध की सब सामग्री तैयार थी । भगवान श्राद्ध करने बैठ गये । भगवान का स्पर्श पाने मात्र से मूर्ख ब्राह्मण समस्त वेद-शास्त्र का प्रकण्ड विद्वान बन गया और उसने अत्यंत विधि पूर्वक श्राद्ध का काम पूरा कराया ।

जो भगवान *'मूक करोति वाचालं पंगु लड़घयते गिरिम' की शक्ति रखते हैं , उनके लिए इसमें आश्चर्य ही क्या था ?*

श्राद्ध समाप्त हो जाने पर भगवान ने ब्राह्मण को पचास स्व॔ण मुद्राएँ दक्षिणा में दीं और बड़े आदर के साथ भोजन कराया । नागर-वेष धारी भगवान के अनुचरों ने समस्त नागर-जाति को बुलाकर अत्यंत प्रेम और आदर के साथ भोजन कराया , सबको एक एक स्वर्णमुद्र भी भेट की । सब लोग अत्यंत सन्तुष्ट हुये । इस प्रकार सँध्या समय तक भक्त राज का सारा कार्य समाप्त कर अपने अनुचरों के साथ भगवान अन्तर्हित हो गये ।'*

सारा कार्य समाप्त हो जाने पर अन्त में माणिकबाई प्रसाद पाने बैठी । ठीक इसी समय भक्त राज ने हाथ में घृत का पात्र लेकर घर में प्रवेश किया । वह अत्यंत देर हो जाने तथा श्राद्ध न करने के कारण मन ही मन संकुचित हो रहे थे । उन्हें देखते ही आश्चर्च के साथ माणिकबाई ने प्रश्न किया - *"स्वामिन ! ब्राह्मण भोजन समाप्त करके आप यह क्या ला रहे हैं ?"*

नरसीराम ने विस्मय से साथ कहा - "अरे तू क्या कहती है ? ब्राह्मण भोजन और श्राद्ध हो गया ? मैं तो प्रातःकाल ही जो घृत लेने के लिए गया सो अभी आ रहा हूँ । रास्ते में एक भक्त मिल गये , उन्हीं के यहाँ थोड़ा भजन करके मैं अभी आ रहा हूँ । इसी से मुझे देर भी हो गयी।"

चकित होकर माणिक बाई ने कहा - *"तो फिर विधिवत श्राद्ध करके हजारों मनुष्यों को भोजन किसने कराया ? मैंने तो स्पष्ट देखा कि आप ही सब कुछ कर रहे हैं । आप मुझसे मजाक क्यों कर रहे हैं ।"*

'प्रिये ! मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ ; मै तो अभी आ रहा हूँ ।

*'अवश्य ही यह सब मेरे प्रियतम श्री कृष्ण का कार्य हैं । मेरा स्वरूप बनाकर स्वयं मनमोहन ने ही मेरे धर्म की रक्षा की है । भगवान की कितनी महती दया है ।'*

इतना कहते -कहते दोनों पति -पत्नी के नेत्रों से प्रेमाश्रु बरसने लगे । वे अत्यंत प्रेम प्रसाद ग्रहन करके दोनों पति-पत्नी मग्न होकर भगवद भजन करने बैठ गये.

सांवरो कन्हैया मेरो मन में वसो है,
मुरली बजाने वालो मन में वसो रे,
मन में वसो रे कान्हा तन में वसो रे,
कारो कन्हैया मेरो मन में वसो रे,
अरे तिर्शी नजरियां वालो मन में वसो रे,
माखन चुराने वालो मन में वसो रे ,
सांवरो कन्हैया मेरो मन में वसो है,

यमुना किनारे वो तो मुरली भजाये,
गोपियाँ संग वो तो रास रचाये,
मीठी मीठी तान सुनाये जग प्यारे,
अरे पीले पीताम्भर वारो मन में वसो रे,
सांवरो कन्हैया मेरो मन में वसो है,

गोकुल नगरिया में माखन चुराए,
वृन्दावन में वो रास रचाये मथुरा नगरियां को वो धीर बँधाये,
धेनु चराने वारो मन में वासो रे,
मधु को रिझाने वरो मन में वसो रे
सांवरो कन्हैया मेरो मन में वसो है,

क्रमशः ..................!

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REMAINING ABSORBED IN KRISHNA

Śrīla Prabhupāda: Because somehow or other Ajamila became absorbed in thinking of Narayana, or Krsna, at the time of death, he immediately became eligible for liberation, even though he had acted sinfully throughout his entire life. One can think of Krsna in any capacity. The gopis, Krsna's cowherd girlfriends, were absorbed in thinking of Krsna out of what appeared to be lusty desire, Sisupala became absorbed in thinking of Krsna out of anger, and Kamsa incessantly thought of Krsna out of fear. Kamsa and Sisupala were demons, but because they thought of the Supreme Personality of Godhead throughout their lives and at the time of death, they were granted liberation by Krsna Himself.

(A Second Chance: The Story of a Near-Death Experience)
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Waheguru
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