दफ़नाने पे भी चैन न मिला, सो जलाने आई है,
शायद इसी सबब से मेरे मज़ार पे अपने महबूब के साथ आई है।
शमा-ए-ग़म का ये आलम कि बुझने का नाम नहीं,
आशिक़ की रूह को फिर से तड़पाने आई है।
@kataizaharila ©
शायद इसी सबब से मेरे मज़ार पे अपने महबूब के साथ आई है।
शमा-ए-ग़म का ये आलम कि बुझने का नाम नहीं,
आशिक़ की रूह को फिर से तड़पाने आई है।
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