तुम किस्सा बन खत्म हो गए
मैं कहानी बन चलती रही
तुम बन दरख़्त स्थिर हो गए
मैं बन हवा बहती ही रही
तुम झील की तरह ठहरे रहे
मैं नदी की तरह बहती रही
तुम सूरज की तरह तपते रहे
मैं बन चांद शीतल ही रही
तुम निर्भाव सूखे से बने रहे
मैं बन बारिश बरसती ही रही
तुम भाव की तरह बदलते ही रहे
मैं प्यार की तरह बढ़ती ही रही
तुम शायद जिंदगी से आहत ही रहे
मैं जिंदगी में जिंदगी जीती रही
तुम बस पुरुष थे इसलिए निराकार रहे
मैं स्त्री बन एकाकार होती ही रही
तुम पूर्ण होकर भी अपूर्ण ही रहे
मैं तुम्हारे पीछे होकर भी पूर्ण ही रही
फिर तुम बन महादेव इष्ट हुए
मैं बन भस्म तुम पर चढ़ती ही रही
@kataizaharila
मैं कहानी बन चलती रही
तुम बन दरख़्त स्थिर हो गए
मैं बन हवा बहती ही रही
तुम झील की तरह ठहरे रहे
मैं नदी की तरह बहती रही
तुम सूरज की तरह तपते रहे
मैं बन चांद शीतल ही रही
तुम निर्भाव सूखे से बने रहे
मैं बन बारिश बरसती ही रही
तुम भाव की तरह बदलते ही रहे
मैं प्यार की तरह बढ़ती ही रही
तुम शायद जिंदगी से आहत ही रहे
मैं जिंदगी में जिंदगी जीती रही
तुम बस पुरुष थे इसलिए निराकार रहे
मैं स्त्री बन एकाकार होती ही रही
तुम पूर्ण होकर भी अपूर्ण ही रहे
मैं तुम्हारे पीछे होकर भी पूर्ण ही रही
फिर तुम बन महादेव इष्ट हुए
मैं बन भस्म तुम पर चढ़ती ही रही
@kataizaharila