समय निकलता गया।
महीने ,दो महीने में जब कभी उस लड़की के लिए कोई डाक आती, डाकिया एक आवाज देता और जब तक वह लड़की दरवाजे तक न आती तब तक इत्मीनान से डाकिया दरवाजे पर खड़ा रहता।
धीरे धीरे दिनों के बीच मेलजोल औऱ भावनात्मक लगाव बढ़ता गया।
एक दिन उस लड़की ने बहुत ग़ौर से डाकिये को देखा तो उसने पाया कि डाकिये के पैर में जूते नहीं हैं।वह हमेशा नंगे पैर ही डाक देने आता था ।
बरसात का मौसम आया।
फ़िर एक दिन जब डाकिया डाक देकर चला गया, तब उस लड़की ने,जहां गीली मिट्टी में डाकिये के पाँव के निशान बने थे,उन पर काग़ज़ रख कर उन पाँवों का चित्र उतार लिया।
अगले दिन उसने अपने यहाँ काम करने वाली बाई से उस नाप के जूते मंगवाकर घर में रख लिए ।
जब दीपावली आने वाली थी उससे पहले डाकिये ने मुहल्ले के सब लोगों से त्योहार पर बकसीस चाही ।
लेकिन छोटी लड़की के बारे में उसने सोचा कि बच्ची से क्या उपहार मांगना पर गली में आया हूँ तो उससे मिल ही लूँ।
साथ ही साथ डाकिया ये भी सोंचने लगा कि त्योहार के समय छोटी बच्ची से खाली हाथ मिलना ठीक नहीं रहेगा।बहुत सोच विचार कर उसने लड़की के लिए पाँच रुपए के चॉकलेट ले लिए।
उसके बाद उसने लड़की के घर का दरवाजा खटखटाया।
अंदर से आवाज आई...." कौन?
" मैं हूं गुड़िया...तुम्हारा डाकिया चाचा ".. उत्तर मिला।
लड़की ने आकर दरवाजा खोला तो बूढ़े डाकिये ने उसे चॉकलेट थमा दी औऱ कहा.." ले बेटी अपने ग़रीब चाचा के तरफ़ से "....
लड़की बहुत खुश हो गई औऱ उसने कुछ देर डाकिये को वहीं इंतजार करने के लिए कहा..
उसके बाद उसने अपने घर के एक कमरे से एक बड़ा सा डब्बा लाया औऱ उसे डाकिये के हाथ में देते हुए कहा , " चाचा..मेरी तरफ से दीपावली पर आपको यह भेंट है।
डब्बा देखकर डाकिया बहुत आश्चर्य में पड़ गया।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे।
कुछ देर सोचकर उसने कहा," तुम तो मेरे लिए बेटी के समान हो, तुमसे मैं कोई उपहार कैसे ले लूँ बिटिया रानी ?
"लड़की ने उससे आग्रह किया कि " चाचा मेरी इस गिफ्ट के लिए मना मत करना, नहीं तो मैं उदास हो जाऊंगी " ।
"ठीक है , कहते हुए बूढ़े डाकिये ने पैकेट ले लिया औऱ बड़े प्रेम से लड़की के सिर पर अपना हाथ फेरा मानो उसको आशीर्वाद दे रहा हो ।
बालिका ने कहा, " चाचा इस पैकेट को अपने घर ले जाकर खोलना।
घर जाकर जब उस डाकिये ने पैकेट खोला तो वह आश्चर्यचकित रह गया, क्योंकि उसमें एक जोड़ी जूते थे। उसकी आँखें डबडबा गई ।
डाकिये को यक़ीन नहीं हो रहा था कि एक छोटी सी लड़की उसके लिए इतना फ़िक्रमंद हो सकती है।
अगले दिन डाकिया अपने डाकघर पहुंचा और उसने पोस्टमास्टर से फरियाद की कि उसका तबादला फ़ौरन दूसरे इलाक़े में कर दिया जाए।
पोस्टमास्टर ने जब इसका कारण पूछा, तो डाकिये ने वे जूते टेबल पर रखते हुए सारी कहानी सुनाई और भीगी आँखों और रुंधे गले से कहा, " सर..आज के बाद मैं उस गली में नहीं जा सकूँगा। उस छोटी अपाहिज बच्ची ने मेरे नंगे पाँवों को तो जूते दे दिये पर मैं उसे पाँव कैसे दे पाऊँगा ?"
इतना कहकर डाकिया फूटफूट कर रोने लगा ।
डाकिया रुंधे गले और भीगी आंखों से पोस्टमास्टर के सामने अपनी भावनाओं को समेटने की कोशिश कर रहा था। उसने कहा:
"सर, मैं एक साधारण डाकिया हूँ। मेरा काम चिट्ठियां और खुशियां बांटना है। लेकिन उस नन्ही बच्ची ने मुझे ऐसा तोहफा दिया, जिससे मेरी आत्मा कांप उठी। वह बच्ची, जो खुद चल नहीं सकती, उसने मेरे नंगे पांवों की तकलीफ देखी और अपने छोटे से दिल से मुझे ये जूते दे दिए।"
उसने गहरी सांस ली और अपनी आंखें पोंछते हुए आगे कहा:
"मैं हर रोज़ उस गली में जाता हूँ, लेकिन अब मैं उसके सामने नहीं जा सकता। जब-जब मैं उसे देखूंगा, मुझे यह अहसास होगा कि वह मेरे लिए तो इतना कर गई, लेकिन मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता। मेरे पास उसकी मदद करने का कोई साधन नहीं है, और यह बात मुझे भीतर से तोड़ रही है।"
पोस्टमास्टर ने उसकी बात ध्यान से सुनी और संवेदनशीलता से कहा:
"लेकिन तुम्हारा काम उस बच्ची के लिए उम्मीद और खुशी लेकर जाना है। अगर तुम वहां जाना बंद कर दोगे, तो शायद वह तुम्हारी उस मुस्कान और स्नेह को खो दे, जो उसे सबसे ज्यादा सुकून देता है।"
डाकिया सिर झुकाए बैठा रहा। उसने धीरे से जवाब दिया:
"सर, मुझे समझ नहीं आता कि क्या करूं। उस बच्ची का प्यार मेरे लिए अनमोल है, लेकिन उसका दर्द मेरी आत्मा को झकझोर देता है। मैं चाहता हूँ कि वह खुश रहे, लेकिन मैं अपनी असमर्थता का सामना नहीं कर सकता।"
पोस्टमास्टर ने डाकिये के कंधे पर हाथ रखा और कहा:
"कभी-कभी, हमारी मौजूदगी ही किसी के लिए सबसे बड़ा उपहार होती है। तुम उसकी खुशी का हिस्सा हो, और यह तोहफा तुमसे कोई नहीं छीन सकता। अगर तुम उससे दूरी बनाओगे, तो उसे लगेगा कि उसने तुम्हें खो दिया। उसकी खुशी के लिए तुम्हें हिम्मत दिखानी होगी।"