सनातनी हरिप्रकाश सरोहा सरोहा dan repost
वह सन 712 था। जब मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के राजा दाहिर के ऊपर हमला किया।
हमला तो हमेशा देश पर पर पहले भी होते रहे।
मगर यह हमला मगर उन सबसे अलग था।
मोहम्मद बिन कासिम द्वारा राजा दाहिर को हरा दिया गया।
हराने के बाद
लूटमार हुआ। बलात्कार हुआ।
इन्सानो की मन्डी सजी। खरीद फरोख्त हुआ।
राजा दाहिर की पुत्रियों को अरब के खलीफा को तोहफे मे दिया गया।
तमाम मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा गया।
देश पर पहले भी हुण, शक, कुषाण, यवन, सिकन्दर का हमला हुआ।
उस हमले मे जमीन और सम्पत्ति का नुकसान हुआ।
मगर अब हमला सभ्यता सम्मान और धर्म के उपर होने लगा था।
यह हमला केवल जमीन के लिए नहीं था।
सभ्यता को खत्म करने के लिए भी था।
यह हिंदुस्तानी सभ्यता के ऊपर बर्बर अरबी सभ्यता की पहली जीत थी.
कोई देश अपना जमीन गवॉ देता है तो वह वापस भी प्राप्त कर सकता है मगर यदि सभ्यता गवा देता है।
तब वह उस देश का हिस्सा नहीं रह जाता है।
क्योंकि देश मात्र जमीन का टुकड़ा नहीं।
देश अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति अपनी भाषाओं से बनता है।
इन सबके खात्मे के साथ देश के खत्म होने की बारी आ जाती है।
फिर अवसर मिलते ही उस अलगाव की औपचारिकता भी पूरी हो जाती है।
आज सिन्ध बलोचिस्तान मे और पुर्बी बगाल मे सनातन सभ्यता का फैलाव होता तो वहॉ कभी पाकिस्तान का जन्म न होता।
यही वजह है कि पाकिस्तान अपना जनक मोहम्मद बिन कासिम को मानता है।
जिसने सिन्ध मे सनातन को रौदकर इस्लामी परचम लहराया था।
*यदि आज की सेक्यूलर पार्टियाँ अपने मकसद मे कामयाब रही तो आगे बनने वाला पाकिस्तान के जनक यही नेता होगे*
फिर इसके बाद बप्पा रावल और राजा सुहेलदेव जैसे राजा भी हुए।
जिसने इस्लामी आक्रांताओ को 500 सालों तक रोके रखा।
इस बीच
मोहमूद गजनवी लूटमार कर चला गया।
मोहम्मद गौरी ने देश को लूटा मंदिर को लूटा सम्मान को लूटा सभ्यता को लूटा।
फिर तो क्रम ही चल पडा।
*लुटेरे आते रहे, हम लुटते रहे*।
*लगातार हमले होते रहे।*
*और हम हारते रहे*।
*मगर कभी भी हारने की वजह नही जानने का प्रयास नही किया*
*कोई सबक नहीं सीखा*
*सच्चाई बाहर आती तो सेक्यूलर राजनीति की हवा निकल जाती यही इसकी वजह थी।*
हम यही नहीं तय कर सके कि लड़ाई किससे हो रही है।
हम अभी यही देख नही सके कि हमला किस पर हो रहा हैं।
हम यही तय नहीं कर पाए कि दुश्मन कौन है
और दुश्मनी किससे है।
यही तो दुश्मन की जीत की सबसे बड़ी वजह रही है।
जब मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान के ऊपर हमला किया तो जयचंद और दूसरे राजाओं ने मात्र मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की लड़ाई समझा।और उस लडाई से दूर रहे।
परिणाम अगला नम्बर उनका आया।
जबकि यह सभ्यता की लड़ाई सुरू हो चुकी थी।
इसे मौहम्मद गौरी का हमला समझा।
यह इस्लाम का हमला था।
इसे जमीन की और सम्पत्ति की हार समझा।
जब किया हिंदुत्व की हार थी।
सभ्यता की हार थी।
गौर करने वाली बात थी, अब लड़ाई का पैटर्न बदल चुका था लेकिन इस लड़ाई को पुराने पैटर्न से देखने की वजह से हमें बहुत नुकसान उठाना पड़ा।
अब लड़ाई हिंदुस्तान के ऊपर नहीं,
हिंदू सभ्यता के ऊपर हो रही थी, हिंदु के ऊपर ही नहीं हिंदुत्व के ऊपर हो भी रही थी,
और हमलावर अरबी कबीलाई सभ्यता और इस्लामी मजहब के संक्रमण के साथ प्रवेश कर रहे थे।
इस विनाशकारी संक्रमण के साथ में देश का हिस्सा किस्तों में खत्म हो रहा था।
लेकिन हमने इससे निपटने की कोई तैयारी नहीं कर रखी थी।
हिंदू समाज एक नागरिक समाज है
हमारा मुकाबला इस्लाम की सैनिक समाज से हो रहा था.
सैनिकों में क्या होता है चाहे डॉक्टर हो, चाहे कारपेंटर हो,
चाहे टेलर हो या तकनीशियन हो। वह पहले सैनिक होता है।
पहले उसका सैनिक प्रशिक्षण होता है।
उसके बाद उसका विभागीय काम शुरू होता।
उसी तरह मुस्लिम किसी भी पेशे से हो। इस्लाम मे हर मुस्लिम के लिए जिहाद करना फर्ज है।
यानि पहला कर्तब्य गैर मुस्लिमो से लडना।
इस्लामी शासन और इस्लाम के विस्तार लिये लडना।
दारूल हरब से दारूल इस्लाम के लिए लडना।
इसलिए लडाई के वक्त सम्पूर्ण हर मुस्लिम सैनिक हो जाते।
हिन्दुओ मे वैसा नही है।
हिन्दुओ मे लडने के लिए अलग जातियाँ थी।
बाकी जातियो ने सोचा होगा। हमें इस लडाई से क्या मतलब। हमें तो मतलब अपने धंधे से है।
जो जीतेंगे वही राज करेंगे।
राजपाट हमें तो मिलना नहीं है। लेकिन या भूल गए कि, जब धर्म ही नहीं बचेगा, सभ्यता ही नहीं बचेगी, तो धंधा कहां से बच जाएगा।
यही वजह थी कि हम मघ्य भारत तक सिमट कर रह गये।
हम करोड़ो में होने के बाद भी हारते रहे। क्योंकि हमारे लडाके लाखो मे भी नही थे।
और वे लाखों में थे।