।। हनुमान स्तुति ।।
विनय पत्रिका में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि हे हनुमान जी, आप गरुड़ के बल, बुद्धि और वेग के बड़े भारी गर्व को हरने वाले तथा कामदेव का नाश करने वाले ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी हो! रामायण सुनने से आपका शरीर पुलकित हो जाता है, नेत्र सजल हो जाते हैं और कंठ गद्गद हो जाता है।
जयति निर्भरानंद-संदोह कपिकेसरी,
केसरी- सुवन भुवनैकमा।
दिव्य भूम्यंजना-मंजुलाकर-
मने, भक्त-संताप-चिंतापहर्ता।।
जयति धर्मार्थ-कामापवर्गद विभो,
ब्रह्मलोकादि-वैभव-विरागी।
वचन-मानस-कर्म सत्य-
धर्मवती, जानकीनाथ-चरनानुरागी।।
जयति विहगेस-बलवुद्धि-बेगाति-
मद-मथन, मनमथ-मथन, ऊर्ध्वरेता।
महानाटक-निपुन, कोटि-कविकुल-
तिलक, गान गुन-गर्व-गंधर्वजेता।।
जयति मंदोदरी-केस-कर्षन,
विद्यमान दसकंठ भट-मुकुट मानी।
भूमिजा दुःख-संजात-रोषांतकृत
जातना जंतु कृत जातुधानी।।
जयति रामायन-स्रवन-संजात-रोमांच,
लोचन सजल, सिथिल बानी।
रामपदपद्म-मकरंद-मधुकर, पाहि,
दास तुलसी सरन, सूल पानी।।
व्याख्या-
हे हनुमानजी! आपकी जय हो! आप अतिशयानन्द के समूह, वानरों में साक्षात सिंह, केशरी के पुत्र और संसार के एकमात्र स्वामी हो। आप अंजनीरूपी दिव्य पृथ्वी की खान से निकली हुई मनोहर मणि हो और भक्तों के संतापों और चिंताओं को हरने वाले हो।
हे विभो! आपकी जय हो! आप धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के देने वाले हो और आपको ब्रह्मलोक आदि के वैभव से भी विराग है। आपने मन, वचन और कर्म से सत्य को ही अपना धर्मव्रत बना रखा है। आप श्रीराम जी के चरणों में अनुराग रखने वाले हो।
आपकी जय हो! आप गरुड़ के बल, बुद्धि और वेग के बड़े भारी गर्व को हरने वाले तथा कामदेव का नाश करने वाले ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी हो। आप महानाटक के निपुण रचयिता और अभिनेता हो, करोड़ों महाकवियों के कुल-तिलक हो और गान-विद्या के गुण का गर्व करने वाले गन्धवों को जीतने वाले हो।
आपकी जय हो! आप वीरों के सिरमौर महा अभिमानी रावण की उपस्थिति में उनकी स्त्री मन्दोदरी का केश पकड़कर खींचने वाले हो। आप जगज्जननी जानकी जी के दुःख से उत्पन्न क्रोध के वश हो। राक्षसियों की ऐसी यातना की थी, जैसी यमराज तमाम प्राणियों की किया करते हैं।
आपकी जय हो! रामायण सुनने से आपका शरीर पुलकित हो जाता है, नेत्र सजल हो जाते हैं और कंठ गद्गद हो जाता है। हे श्रीराम जी के चरण-कमलों के रस के भ्रमररूप हनुमान जी! त्राहि, त्राहि! हे त्रिशूलधारी रुद्ररूप हनुमान जी! तुलसी- दास आपकी शरण में है।
।। डॉ0 विजय शंकर मिश्र: ।।
@ancientindia1
विनय पत्रिका में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि हे हनुमान जी, आप गरुड़ के बल, बुद्धि और वेग के बड़े भारी गर्व को हरने वाले तथा कामदेव का नाश करने वाले ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी हो! रामायण सुनने से आपका शरीर पुलकित हो जाता है, नेत्र सजल हो जाते हैं और कंठ गद्गद हो जाता है।
जयति निर्भरानंद-संदोह कपिकेसरी,
केसरी- सुवन भुवनैकमा।
दिव्य भूम्यंजना-मंजुलाकर-
मने, भक्त-संताप-चिंतापहर्ता।।
जयति धर्मार्थ-कामापवर्गद विभो,
ब्रह्मलोकादि-वैभव-विरागी।
वचन-मानस-कर्म सत्य-
धर्मवती, जानकीनाथ-चरनानुरागी।।
जयति विहगेस-बलवुद्धि-बेगाति-
मद-मथन, मनमथ-मथन, ऊर्ध्वरेता।
महानाटक-निपुन, कोटि-कविकुल-
तिलक, गान गुन-गर्व-गंधर्वजेता।।
जयति मंदोदरी-केस-कर्षन,
विद्यमान दसकंठ भट-मुकुट मानी।
भूमिजा दुःख-संजात-रोषांतकृत
जातना जंतु कृत जातुधानी।।
जयति रामायन-स्रवन-संजात-रोमांच,
लोचन सजल, सिथिल बानी।
रामपदपद्म-मकरंद-मधुकर, पाहि,
दास तुलसी सरन, सूल पानी।।
व्याख्या-
हे हनुमानजी! आपकी जय हो! आप अतिशयानन्द के समूह, वानरों में साक्षात सिंह, केशरी के पुत्र और संसार के एकमात्र स्वामी हो। आप अंजनीरूपी दिव्य पृथ्वी की खान से निकली हुई मनोहर मणि हो और भक्तों के संतापों और चिंताओं को हरने वाले हो।
हे विभो! आपकी जय हो! आप धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के देने वाले हो और आपको ब्रह्मलोक आदि के वैभव से भी विराग है। आपने मन, वचन और कर्म से सत्य को ही अपना धर्मव्रत बना रखा है। आप श्रीराम जी के चरणों में अनुराग रखने वाले हो।
आपकी जय हो! आप गरुड़ के बल, बुद्धि और वेग के बड़े भारी गर्व को हरने वाले तथा कामदेव का नाश करने वाले ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी हो। आप महानाटक के निपुण रचयिता और अभिनेता हो, करोड़ों महाकवियों के कुल-तिलक हो और गान-विद्या के गुण का गर्व करने वाले गन्धवों को जीतने वाले हो।
आपकी जय हो! आप वीरों के सिरमौर महा अभिमानी रावण की उपस्थिति में उनकी स्त्री मन्दोदरी का केश पकड़कर खींचने वाले हो। आप जगज्जननी जानकी जी के दुःख से उत्पन्न क्रोध के वश हो। राक्षसियों की ऐसी यातना की थी, जैसी यमराज तमाम प्राणियों की किया करते हैं।
आपकी जय हो! रामायण सुनने से आपका शरीर पुलकित हो जाता है, नेत्र सजल हो जाते हैं और कंठ गद्गद हो जाता है। हे श्रीराम जी के चरण-कमलों के रस के भ्रमररूप हनुमान जी! त्राहि, त्राहि! हे त्रिशूलधारी रुद्ररूप हनुमान जी! तुलसी- दास आपकी शरण में है।
।। डॉ0 विजय शंकर मिश्र: ।।
@ancientindia1