📌 महिलाओं के प्रति भोगवादी एवं भारतीय दृष्टि Part 1
मानवी सभ्यता के इतिहास में स्त्री के प्रति दो प्रकार की दृष्टियाँ रही हैं।
एक दृष्टि में वह पुरुष की भोग्या और दासी है। पुरुष का उस पर पूर्ण अधिकार है अतः वह पुरुष की अनुगामिनी है।
दूसरी दृष्टि में वह पुरुष की सहचरी है। स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों मिलकर दम्पती रूप इकाई बनते हैं। अतः वह पुरुष की अर्धांगिनी और सहगामिनी है।
✍️ Feminism /फेमिनिज्म
आरम्भ में यह आंदोलन, west में 'फेमिनिज्म' के नाम से चर्चित हुआ। इसका प्रमुख वैचारिक उत्पति सिमोन दें बोउआर की पुस्तक 'द सेकेंड सेक्स' को माना जा सकता है, जो 1949 में प्रकाशित हुई और feminists आंदोलन का आधार ग्रंथ बनी।
हिंदी में इस किताब का अनुवाद प्रभा खेतान ने किया जो 1992 में 'स्त्रीः उपेक्षिता' नाम से छपकर खूब चर्चित हुआ।
'स्त्री पैदा नहीं होती, बना दी जाती है' यह पंक्तियां इसी पुस्तक से है। इसका आशय है कि जन्म से तो स्त्री पुरुष समान हैं किंतु पुरुषप्रधान समाज उसकी स्वायत्तता पर प्रतिबंध लगाकर उसे पुरुष से कमजोर बना देता है।
✍️देह की स्वतंत्रता
स्त्रीवादियों का मानना है कि स्त्री की सारी स्वतंत्रताओं का मूल देह की स्वतंत्रता है। पुरुष सर्वप्रथम स्त्री की देह पर अधिकार जमाता है, क्योंकि वह उसे अपनी भोग्या सम्पत्ति समझता है। इसका प्रतिकार करने के लिए उन्होंने "My body my choice" का नारा दिया।
और इसे प्रमोट करने के लिए कई तरह के साहित्य लिखे गए जिन साहित्य में महिलाओं को परिवार कुटुंब विवाह आदि का विरोध करने को कहा इस आधार पर की यह सब पितृसत्तात्मक व्यवस्थाएं हैं,
इस सब का कारण मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत है, मार्क्सवाद तो परिवार को पूंजीवादी संस्था मानता है।
✍️ईसाई धर्म में नारी
ईसाइयत के अनुसार स्त्री को पुरुष के शरीर की बाईं पसली से उसके आनंद के लिए बनाया गया।
धरती पर पहला पुरुष एडम और पहली स्त्री ईव थी। ईव ने ही एडम को वर्जित फल खाने के लिए प्रेरित किया। यही पहला पाप था, जिसका मूल कारण स्त्री ही बनी।
ईसाइयत के अनुसार गॉड पुरुष रूप में ही होता है। न्यू टेस्टामेंट में पॉल कहते हैं कि
✍️इस्लाम में नारी
इस्लामिक मान्यता में भी स्त्री को पुरुष से हीन दर्जा प्राप्त है। कुरान के दूसरे अध्याय 'सूरा अल बकरा' की आयत संख्या 228 के अनुसार 'मर्दों को उन पर एक दर्जा प्राप्त है' अर्थात् पुरुष का स्तर स्त्री से ऊपर है। इसी अध्याय की आयत संख्या 223 में कहा गया है कि '
आगे आयत संख्या 282 में उल्लेख है कि दो औरतों की गवाही एक पुरुष के बराबर होगी। अर्थात् स्त्री की हैसियत और अधिकार पुरुष से आधे हैं।
इन सब को छोड़ भी दिया जाए तो हल्ला जैसी और तीन तलाक जैसी प्रथा इस्लाम में महिलाओं की स्थिति को अच्छे से बता सकता है।
इसका मूल चिंतन woman was created for the man, from the man, after man
To be continue........
मानवी सभ्यता के इतिहास में स्त्री के प्रति दो प्रकार की दृष्टियाँ रही हैं।
एक दृष्टि में वह पुरुष की भोग्या और दासी है। पुरुष का उस पर पूर्ण अधिकार है अतः वह पुरुष की अनुगामिनी है।
दूसरी दृष्टि में वह पुरुष की सहचरी है। स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों मिलकर दम्पती रूप इकाई बनते हैं। अतः वह पुरुष की अर्धांगिनी और सहगामिनी है।
✍️ Feminism /फेमिनिज्म
आरम्भ में यह आंदोलन, west में 'फेमिनिज्म' के नाम से चर्चित हुआ। इसका प्रमुख वैचारिक उत्पति सिमोन दें बोउआर की पुस्तक 'द सेकेंड सेक्स' को माना जा सकता है, जो 1949 में प्रकाशित हुई और feminists आंदोलन का आधार ग्रंथ बनी।
हिंदी में इस किताब का अनुवाद प्रभा खेतान ने किया जो 1992 में 'स्त्रीः उपेक्षिता' नाम से छपकर खूब चर्चित हुआ।
'स्त्री पैदा नहीं होती, बना दी जाती है' यह पंक्तियां इसी पुस्तक से है। इसका आशय है कि जन्म से तो स्त्री पुरुष समान हैं किंतु पुरुषप्रधान समाज उसकी स्वायत्तता पर प्रतिबंध लगाकर उसे पुरुष से कमजोर बना देता है।
✍️देह की स्वतंत्रता
स्त्रीवादियों का मानना है कि स्त्री की सारी स्वतंत्रताओं का मूल देह की स्वतंत्रता है। पुरुष सर्वप्रथम स्त्री की देह पर अधिकार जमाता है, क्योंकि वह उसे अपनी भोग्या सम्पत्ति समझता है। इसका प्रतिकार करने के लिए उन्होंने "My body my choice" का नारा दिया।
और इसे प्रमोट करने के लिए कई तरह के साहित्य लिखे गए जिन साहित्य में महिलाओं को परिवार कुटुंब विवाह आदि का विरोध करने को कहा इस आधार पर की यह सब पितृसत्तात्मक व्यवस्थाएं हैं,
इस सब का कारण मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धांत है, मार्क्सवाद तो परिवार को पूंजीवादी संस्था मानता है।
✍️ईसाई धर्म में नारी
ईसाइयत के अनुसार स्त्री को पुरुष के शरीर की बाईं पसली से उसके आनंद के लिए बनाया गया।
धरती पर पहला पुरुष एडम और पहली स्त्री ईव थी। ईव ने ही एडम को वर्जित फल खाने के लिए प्रेरित किया। यही पहला पाप था, जिसका मूल कारण स्त्री ही बनी।
ईसाइयत के अनुसार गॉड पुरुष रूप में ही होता है। न्यू टेस्टामेंट में पॉल कहते हैं कि
"मैं किसी स्त्री को यह अनुमति नहीं दे रहा हूँ कि वह किसी पुरुष को सिखाने का साहस करें या यह बताए कि उसे क्या करना चाहिए। स्त्री को चुप रहना चाहिए। क्योंकि गॉड ने पहले एडम को बनाया बाद में ईव को।"
✍️इस्लाम में नारी
इस्लामिक मान्यता में भी स्त्री को पुरुष से हीन दर्जा प्राप्त है। कुरान के दूसरे अध्याय 'सूरा अल बकरा' की आयत संख्या 228 के अनुसार 'मर्दों को उन पर एक दर्जा प्राप्त है' अर्थात् पुरुष का स्तर स्त्री से ऊपर है। इसी अध्याय की आयत संख्या 223 में कहा गया है कि '
तुम्हारी स्त्रियां तुम्हारे लिए खेत के समान हैं, तो अपनी खेती में जिस तरह से चाहे, आओ और अपने लिए आगे बढ़ाओ ?...'
आगे आयत संख्या 282 में उल्लेख है कि दो औरतों की गवाही एक पुरुष के बराबर होगी। अर्थात् स्त्री की हैसियत और अधिकार पुरुष से आधे हैं।
इन सब को छोड़ भी दिया जाए तो हल्ला जैसी और तीन तलाक जैसी प्रथा इस्लाम में महिलाओं की स्थिति को अच्छे से बता सकता है।
इसका मूल चिंतन woman was created for the man, from the man, after man
To be continue........