• वीर्य सूक्ष्म रूप में शरीर के सभी कोशाणुओं में पाया जाता है। जिस प्रकार गन्ने में शर्करा तथा दुग्ध में मक्खन सर्वत्र व्याप्त होता है, उसी प्रकार वीर्य समग्र शरीर में व्याप्त रहता है। जिस प्रकार मक्खन निकाल लेने पर छाछ पतली रह जाती है उसी प्रकार वीर्य का अपव्यय होने से वह पतला पड़ जाता है। जितना ही अधिक वीर्य का नाश होता है उतनी ही अधिक दुर्बलता आती है । योगशास्त्र में कहा है: “मरणं बिन्दुपतनात् जीवनं बिन्दुरक्षणात् । " - वीर्य का नाश ही मृत्यु है और वीर्य की रक्षा ही जीवन है। यह मनुष्य का सबसे कीमती खजाना है । यह मुखमण्डल को ब्रह्म तेज तथा बुद्धि को बल प्रदान करती है।