अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: समाज में बदलाव और महिलाओं की वास्तविक स्वतंत्रता पर मेरे विचार
हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, लेकिन भारत में, विशेष रूप से बिहार में, महिलाओं की स्वतंत्रता अब भी सीमित है। यह सच है कि बिहार एक विकसित होता राज्य है और हालात धीरे-धीरे बेहतर हो रहे हैं, लेकिन हमें इसे और तेजी से सुधारने की जरूरत है। यह बदलाव अकेले सरकार नहीं कर सकती, हमें भी अपनी सोच और समाज की मानसिकता को बदलना होगा।
यह बेहद दुखद है कि जब लड़कियों को स्कॉलरशिप मिलती है, तो कुछ लोगों को इससे परेशानी होती है। सवाल यह है कि अगर आपको 1 लाख रुपये दिए जाएं और बदले में आपकी स्वतंत्रता छीन ली जाए, तो क्या आप इसे स्वीकार करेंगे? बिल्कुल नहीं। फिर लड़कियों से यह उम्मीद क्यों की जाती है कि वे बिना किसी शिकायत के इस स्थिति को स्वीकार कर लें? महिलाओं के पास स्वतंत्रता नहीं है, वे अपनी मर्जी से कहीं आ-जा नहीं सकतीं, अपने जीवन से जुड़े फैसले खुद नहीं ले सकतीं। सरकार की यह पहल सिर्फ आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक कोशिश है कि लड़कियों को पढ़ने और आगे बढ़ने का अधिक अवसर मिले। हमें यह समझना होगा कि लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना कोई अन्याय नहीं, बल्कि समाज के संतुलन को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सोशल मीडिया पर अक्सर कुछ महिलाओं की नकारात्मक हरकतों को दिखाकर पूरे महिला समाज को जज किया जाता है। यह सरासर गलत है। अगर कुछ गिने-चुने लोग गलत राह पर चलते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि पूरा महिला समाज गलत है। यह धारणा कि अगर महिलाओं को आज़ादी मिल गई तो वे "बिगड़ जाएंगी," संकीर्ण मानसिकता को दर्शाती है। हमें यह समझने की जरूरत है कि स्वतंत्रता का मतलब अनैतिक होना नहीं है, बल्कि यह अपने जीवन के फैसले खुद लेने की शक्ति है। हमें महिलाओं को उनके कार्यों और क्षमताओं के आधार पर परखना चाहिए, न कि इस डर से कि अगर उन्हें स्वतंत्रता दी गई तो वे गलत दिशा में चली जाएंगी।
समाज को महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित और समावेशी बनाने की जरूरत है। यह बदलाव केवल कानूनों और नीतियों से संभव नहीं होगा, बल्कि इसके लिए मानसिकता में बदलाव जरूरी है। अगर हम सच में प्रगति की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो हमें महिलाओं के लिए ऐसे माहौल का निर्माण करना होगा जहाँ वे बिना किसी डर और प्रतिबंध के अपनी जिंदगी जी सकें।
अक्सर घर के कामों को हल्के में लिया जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एक घर को संभालना किसी फैक्ट्री या कंपनी को चलाने से कम मुश्किल नहीं है? अगर आपको इस पर भरोसा नहीं है, तो कभी एक दिन सुबह से रात तक घर के सभी काम करके देखिए। आपको महसूस होगा कि यह कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है। घर संभालना सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि परिवार और समाज की बुनियाद है। फिर भी, इसे कभी असली काम की तरह नहीं माना जाता। यह मानसिकता बदलनी चाहिए और महिलाओं की मेहनत को सम्मान मिलना चाहिए।
महिला दिवस केवल एक दिन मनाने का विषय नहीं है, बल्कि यह आत्ममंथन का अवसर है। हमें यह देखना होगा कि हम महिलाओं के लिए किस तरह का समाज बना रहे हैं। क्या हम उन्हें वह स्वतंत्रता और सम्मान दे रहे हैं, जिसकी वे हकदार हैं? अगर नहीं, तो हमें इसे बदलने की दिशा में काम करने की जरूरत है। महिलाओं की स्वतंत्रता, शिक्षा और सम्मान, इन सबको सुनिश्चित करना सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। आइए, इस बदलाव की ओर पहला कदम हम आज ही उठाएं।