Noma’lum dan repost
सब बड़े ही मगरूर हो गए हैं यहाँ,
कोई नही अब रूठे को मनाने को
नही बची अब बस्ती शरीफ़ों की,
तू बिगड़ने दे अब इस जमाने को।
~ कवि रंजन
कोई नही अब रूठे को मनाने को
नही बची अब बस्ती शरीफ़ों की,
तू बिगड़ने दे अब इस जमाने को।
~ कवि रंजन