महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता:।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्॥ १३॥
परन्तु हे पृथानन्दन! दैवी प्रकृतिके आश्रित अनन्यमनवाले महात्मालोग मुझे सम्पूर्ण प्राणियोंका आदि (और) अविनाशी समझकर (मेरा) भजन करते हैं।
On the other hand, Arjuna, great souls who have adopted the divine nature, knowing Me as the prime source of all beings and the imperishable, eternal, worship Me constantly with one pointedness of mind. (9:13)
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्॥ १३॥
परन्तु हे पृथानन्दन! दैवी प्रकृतिके आश्रित अनन्यमनवाले महात्मालोग मुझे सम्पूर्ण प्राणियोंका आदि (और) अविनाशी समझकर (मेरा) भजन करते हैं।
On the other hand, Arjuna, great souls who have adopted the divine nature, knowing Me as the prime source of all beings and the imperishable, eternal, worship Me constantly with one pointedness of mind. (9:13)