सेवानिवृत्त सचिव (IAS) राजीव यदुवंशी का आत्मबोध लेख।
रिटायरमेंट के बाद यह मेरी पहली दिवाली थी। मेरे मन में उन सभी वर्षों की यादें ताज़ा हो गईं, जो मैंने सेवा में बिताए थे। खासतौर पर वरिष्ठ पदों पर रहते हुए। दिवाली से एक हफ़्ते पहले, लोग तरह-तरह के उपहार लेकर आना शुरू कर देते थे। उपहार इतने ज़्यादा होते थे कि जिस कमरे में हम सारा सामान रखते थे, वह किसी उपहार की दुकान जैसा लगता था। कुछ चीज़ों को लोग घृणा भरी नज़रों से देखते थे और उन्हें हमारे अनजान रिश्तेदारों को देने के लिए अलग रख देते थे। सूखे मेवे इतने ज़्यादा होते थे कि अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में बाँटने के बाद भी बहुत सारे बच जाते थे। लेकिन इस बार, स्थिति बिल्कुल अलग थी। दोपहर के 2 बज चुके थे, लेकिन कोई भी हमें दिवाली की शुभकामना देने नहीं आया था। मैं अचानक भाग्य के इस उलटफेर से बहुत ही उदास महसूस कर रहा था। अपनी इस सोच से बचते हुये मैंने एक अख़बार का आध्यात्मिकता वाला कॉलम पढ़ना शुरू कर दिया।
*सौभाग्य से, मुझे एक दिलचस्प कहानी मिली। यह जो एक गधे के बारे में थी। जो पूजा समारोह के लिए देवी-देवताओं की मूर्तियों को अपनी पीठ पर लाद कर ले जा रहा था। रास्ते में जब वह गांवों से गुजरता तो लोग मूर्तियों के आगे सिर झुकाते। हर गांव में पूजा-अर्चना के लिए भीड़ जुटती। गधे को लगने लगा कि गांव वाले उसे प्रणाम कर रहे हैं और वह इस सम्मान और आदर से रोमांचित ही हो उठा।*
मूर्तियों को पूजा स्थल पर छोड़ने के बाद गधे के मालिक ने उस पर सब्जियां लाद दी और वे वापसी की यात्रा पर निकल पड़े। इस बार गधे पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। वह अल्पज्ञानी जानवर इतना निराश हुआ कि उसने गांव वालों का ध्यान खींचने के लिए बार-बार रेंकना शुरू कर दिया। शोर से वे लोग चिढ़ गए और उन्होंने उस बेचारे प्राणी को पीटना शुरू कर दिया, जिसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उसने ऐसा क्या किया कि उसे इतना क्रूर व्यवहार झेलना पड़ा है। अचानक मुझे बोध हुआ कि वास्तव में, मैं भी इस गधे जैसा ही था। सम्मान और आदर के वे सारे उपहार मेरे लिए नहीं थे बल्कि मेरे ऊपर लदी उन मूर्तियों को थे। अब जब मुझे इस सच्चाई का बोध हुआ तो मैं मेहमानों का इंतजार करने के बजाए मैंने दिवाली मनाने में अपनी पत्नी के साथ शामिल होना चाहा, लेकिन वो भी मुझे साथ लेने के मूड में नहीं थी। उसने तीखा जवाब दिया: 'जब मैं इतने सालों से कहती रही कि तुम गधे के अलावा कुछ नहीं हो, तो तुमने कभी नहीं माना। पर आज एक अखबार में छपी खबर ने सच्चाई उजागर कर दी तो तुमने उसे तुरंत स्वीकार कर लिया।
*_इसलिए समय रहते अपनी पद-प्रतिष्ठा के साथ–साथ समाज के लिए भी लिखना, बोलना और सहयोग करना सीख जायें वर्ना गधे जैसे हालात होंगे।_*
*सारांश: जो व्यक्ति अपनी नौकरी के दौरान, अपने पद को देख, जरूरत से ज्यादा फड़फड़ाने की कोशिश में रहता है और मौका-बेमौका लोगों को धौंस दिखाता होता है, उसका सेवानिवृत्ति उपरांत ज्यादातर यही हाल होता है। आगे उसका जिन्दगी में जब भी किसी भुक्तभोगी व्यक्ति से वास्ता पड़ता है तो वे भी कभी मौका नहीं चूकते। वे व्यक्ति भी उसकी सरेआम खूब धुलाई करते हैं। इन्सान का सरल स्वभाव ही इन्सानी जिन्दगी को सरल और सफल बनाता है।*
रिटायरमेंट के बाद यह मेरी पहली दिवाली थी। मेरे मन में उन सभी वर्षों की यादें ताज़ा हो गईं, जो मैंने सेवा में बिताए थे। खासतौर पर वरिष्ठ पदों पर रहते हुए। दिवाली से एक हफ़्ते पहले, लोग तरह-तरह के उपहार लेकर आना शुरू कर देते थे। उपहार इतने ज़्यादा होते थे कि जिस कमरे में हम सारा सामान रखते थे, वह किसी उपहार की दुकान जैसा लगता था। कुछ चीज़ों को लोग घृणा भरी नज़रों से देखते थे और उन्हें हमारे अनजान रिश्तेदारों को देने के लिए अलग रख देते थे। सूखे मेवे इतने ज़्यादा होते थे कि अपने रिश्तेदारों और दोस्तों में बाँटने के बाद भी बहुत सारे बच जाते थे। लेकिन इस बार, स्थिति बिल्कुल अलग थी। दोपहर के 2 बज चुके थे, लेकिन कोई भी हमें दिवाली की शुभकामना देने नहीं आया था। मैं अचानक भाग्य के इस उलटफेर से बहुत ही उदास महसूस कर रहा था। अपनी इस सोच से बचते हुये मैंने एक अख़बार का आध्यात्मिकता वाला कॉलम पढ़ना शुरू कर दिया।
*सौभाग्य से, मुझे एक दिलचस्प कहानी मिली। यह जो एक गधे के बारे में थी। जो पूजा समारोह के लिए देवी-देवताओं की मूर्तियों को अपनी पीठ पर लाद कर ले जा रहा था। रास्ते में जब वह गांवों से गुजरता तो लोग मूर्तियों के आगे सिर झुकाते। हर गांव में पूजा-अर्चना के लिए भीड़ जुटती। गधे को लगने लगा कि गांव वाले उसे प्रणाम कर रहे हैं और वह इस सम्मान और आदर से रोमांचित ही हो उठा।*
मूर्तियों को पूजा स्थल पर छोड़ने के बाद गधे के मालिक ने उस पर सब्जियां लाद दी और वे वापसी की यात्रा पर निकल पड़े। इस बार गधे पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। वह अल्पज्ञानी जानवर इतना निराश हुआ कि उसने गांव वालों का ध्यान खींचने के लिए बार-बार रेंकना शुरू कर दिया। शोर से वे लोग चिढ़ गए और उन्होंने उस बेचारे प्राणी को पीटना शुरू कर दिया, जिसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उसने ऐसा क्या किया कि उसे इतना क्रूर व्यवहार झेलना पड़ा है। अचानक मुझे बोध हुआ कि वास्तव में, मैं भी इस गधे जैसा ही था। सम्मान और आदर के वे सारे उपहार मेरे लिए नहीं थे बल्कि मेरे ऊपर लदी उन मूर्तियों को थे। अब जब मुझे इस सच्चाई का बोध हुआ तो मैं मेहमानों का इंतजार करने के बजाए मैंने दिवाली मनाने में अपनी पत्नी के साथ शामिल होना चाहा, लेकिन वो भी मुझे साथ लेने के मूड में नहीं थी। उसने तीखा जवाब दिया: 'जब मैं इतने सालों से कहती रही कि तुम गधे के अलावा कुछ नहीं हो, तो तुमने कभी नहीं माना। पर आज एक अखबार में छपी खबर ने सच्चाई उजागर कर दी तो तुमने उसे तुरंत स्वीकार कर लिया।
*_इसलिए समय रहते अपनी पद-प्रतिष्ठा के साथ–साथ समाज के लिए भी लिखना, बोलना और सहयोग करना सीख जायें वर्ना गधे जैसे हालात होंगे।_*
*सारांश: जो व्यक्ति अपनी नौकरी के दौरान, अपने पद को देख, जरूरत से ज्यादा फड़फड़ाने की कोशिश में रहता है और मौका-बेमौका लोगों को धौंस दिखाता होता है, उसका सेवानिवृत्ति उपरांत ज्यादातर यही हाल होता है। आगे उसका जिन्दगी में जब भी किसी भुक्तभोगी व्यक्ति से वास्ता पड़ता है तो वे भी कभी मौका नहीं चूकते। वे व्यक्ति भी उसकी सरेआम खूब धुलाई करते हैं। इन्सान का सरल स्वभाव ही इन्सानी जिन्दगी को सरल और सफल बनाता है।*