ग्ररूड पुराण।
भगवान विष्णु द्वारा गरुडको उपदेश, ग्ररूड पुराणका महात्म्य।
पोस्ट 166
भाग 5
सत्संग और विवेक यह दो प्राणीके मलरहित स्वस्थ दो नेत्र हैं। जिसके पास ये दोनों नहीं है, वह मनुष्य अँधा है। वह कुमार्ग पर कैसे नहीं जायेगा ? अर्थात् वह अवश्य ही कुमार्गगामी होगा। अपने-अपने वर्णाश्रम-धर्मको माननेवाले सभी मानव दूसरेके धर्मको नहीं जानते हैं, किंतु वे दंभके वशीभूत हो जाय तो अपना ही नाश करते हैं। व्रतचर्यादीमें लगे हुए प्रयासरत कुछ लोगोंसे क्या बनेगा ? क्योंकि अज्ञानसे स्वयं अपने आत्मतत्वको ढके हुए लोग प्रचारक बनकर देश-देशांतरमें विचरण करते हैं। नाम मात्रसे स्वयं संतुष्ट कर्मकांडमें लगे हुए मनुष्य तथा मंत्रोचार एवं होमादिसे युक्त याज्ञीक यज्ञविस्तारके द्वारा भ्रमित है। मेरी मायासे विमोहित मूढ लोग शरीर को सुखा देनेवाले एक भक्त तथा उपवासादि नियमोंसे अपने पुण्यरुप अदृष्टकी कामना करते हैं। शरीरकी ताड़ना मात्रसे ज्ञानी जन क्या मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं ? या व्यामिकी पीटनेसे महावीषधारी सर्प मर सकता है ? यह कदापि संभव नहीं है। जटाओंके भार और मृचर्मसे युक्त वेश धारण करनेवाले दांभिक ज्ञानियोंकी भाँती इस संसारमें भ्रमण करते हैं और लोगोंको भ्रमित करते हैं। लौकिक सुखमें आसक्त 'मैं ब्रह्मको जानता हूं' ऐसा कहनेवाले कर्म तथा ब्रह्म, इन दोनोंसे भ्रष्ट, दँभी एवं ढोंगी व्यक्तिका अत्यंतजके समान परित्याग कर देना चाहिये। घर को वनके समान मानकर निर्वस्त्र और लज्जारहित जो साधु गधे अन्य पशुओंकी भांति इस जगतमें घूमते रहते हैं, क्या वे विरक्त होते हैं ? कदापि नहीं। यदि मिट्टी, भस्म तथा धूलका लेप करनेसे मनुष्य मुक्त हो सकता है तो क्या मिट्टी और भस्ममें ही नीत्य रहनेवाला कुत्ता मुक्त नहीं हो जायगा ? वनवासी तापसजन घांस, फुस पत्ता तथा जलका ही सेवन करते हैं, क्या इन्हींके समान वनमें रहने वाले सियार, चूहे और मृगादि जीवजंतु तपस्वी हो सकते हैं ? जन्मसे लेकर मृत्युपर्यंत गंगा आदिका पवित्रतम नदियोंमें रहनेवाले मेंढक या मछली आदि प्रमुख जलचर प्राणी योगी हो सकते हैं ? कबूतर, शीलाहार और चातक पक्षी कभी भी पृथ्वीका जल नहीं पीते हे, क्या उनका व्रति होना संभव ह। अतः ये नित्यादि कर्म, लोकरंजनके कारक हे। हे खगेश्वर ! मोक्षका कारण तो साक्षात तत्वज्ञान है।
क्रमशः
भगवान विष्णु द्वारा गरुडको उपदेश, ग्ररूड पुराणका महात्म्य।
पोस्ट 166
भाग 5
सत्संग और विवेक यह दो प्राणीके मलरहित स्वस्थ दो नेत्र हैं। जिसके पास ये दोनों नहीं है, वह मनुष्य अँधा है। वह कुमार्ग पर कैसे नहीं जायेगा ? अर्थात् वह अवश्य ही कुमार्गगामी होगा। अपने-अपने वर्णाश्रम-धर्मको माननेवाले सभी मानव दूसरेके धर्मको नहीं जानते हैं, किंतु वे दंभके वशीभूत हो जाय तो अपना ही नाश करते हैं। व्रतचर्यादीमें लगे हुए प्रयासरत कुछ लोगोंसे क्या बनेगा ? क्योंकि अज्ञानसे स्वयं अपने आत्मतत्वको ढके हुए लोग प्रचारक बनकर देश-देशांतरमें विचरण करते हैं। नाम मात्रसे स्वयं संतुष्ट कर्मकांडमें लगे हुए मनुष्य तथा मंत्रोचार एवं होमादिसे युक्त याज्ञीक यज्ञविस्तारके द्वारा भ्रमित है। मेरी मायासे विमोहित मूढ लोग शरीर को सुखा देनेवाले एक भक्त तथा उपवासादि नियमोंसे अपने पुण्यरुप अदृष्टकी कामना करते हैं। शरीरकी ताड़ना मात्रसे ज्ञानी जन क्या मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं ? या व्यामिकी पीटनेसे महावीषधारी सर्प मर सकता है ? यह कदापि संभव नहीं है। जटाओंके भार और मृचर्मसे युक्त वेश धारण करनेवाले दांभिक ज्ञानियोंकी भाँती इस संसारमें भ्रमण करते हैं और लोगोंको भ्रमित करते हैं। लौकिक सुखमें आसक्त 'मैं ब्रह्मको जानता हूं' ऐसा कहनेवाले कर्म तथा ब्रह्म, इन दोनोंसे भ्रष्ट, दँभी एवं ढोंगी व्यक्तिका अत्यंतजके समान परित्याग कर देना चाहिये। घर को वनके समान मानकर निर्वस्त्र और लज्जारहित जो साधु गधे अन्य पशुओंकी भांति इस जगतमें घूमते रहते हैं, क्या वे विरक्त होते हैं ? कदापि नहीं। यदि मिट्टी, भस्म तथा धूलका लेप करनेसे मनुष्य मुक्त हो सकता है तो क्या मिट्टी और भस्ममें ही नीत्य रहनेवाला कुत्ता मुक्त नहीं हो जायगा ? वनवासी तापसजन घांस, फुस पत्ता तथा जलका ही सेवन करते हैं, क्या इन्हींके समान वनमें रहने वाले सियार, चूहे और मृगादि जीवजंतु तपस्वी हो सकते हैं ? जन्मसे लेकर मृत्युपर्यंत गंगा आदिका पवित्रतम नदियोंमें रहनेवाले मेंढक या मछली आदि प्रमुख जलचर प्राणी योगी हो सकते हैं ? कबूतर, शीलाहार और चातक पक्षी कभी भी पृथ्वीका जल नहीं पीते हे, क्या उनका व्रति होना संभव ह। अतः ये नित्यादि कर्म, लोकरंजनके कारक हे। हे खगेश्वर ! मोक्षका कारण तो साक्षात तत्वज्ञान है।
क्रमशः