*#नित्यसन्ध्योपासना में भी विधर्मीयोंने बहोत तोड़ मरोड़ कर गड़बड़ी कर दी हैं* --
(१)आर्यसमाजी (संकीर्णवर्णसंकर)की तरह उनकी मिश्र सन्ध्योपासना पद्धति न विधाक्रम न शाखा का कोई ठीकाना-- द्विजों के लिये अनुपयुक्त हैं।
(२)गायत्रीपरिवार की (मिश्र // शाखारंडदोषयुक्त--- सभी वेदशाखा के द्विज के लिये उपयुक्त नहीं)
(३)स्वाध्यायपरिवार पांडुरंग आठवले (माधवबाग मुंबई)वालो की त्रिकालसंध्या -- अज्ञानीयो ! यह दैनिक प्रार्थना के मंत्र हैं सन्ध्योपासना की विधा नहीं-- और ये मंत्रों में भी सभी वर्ण का सभी मंत्रों में अधिकार नहीं हैं।।
द्विज होकर भी यदि ये सन्ध्योपासना कर रहे हैं तो निश्चित ही पतित हैं। पुनः(फिरसे)जनेऊ के बिना इनकी शुद्धि नहीं हैं।।
*#स्वशाखीय सन्ध्योपासना का महत्व हैं -- परशाखीय या कपोलकल्पित का नहीं -->*
#स्वसूत्रोक्तविधानेन_सन्ध्यावन्दनमाचरेत्। #अन्यथा_यस्तु_कुरुते_आसुरीं_तनुमाप्नुयात्।। विश्वामित्र संहिता।।
*अपने गोत्र के वेद-शाखानुसार ही सन्ध्योपासना करें।सातदिन स्वशाखीय-नित्यसन्ध्योपासनात्याग करने मात्र से द्विज द्विजत्व से पतित हो जाता हैं उनका प्रायश्चित्त पूर्वक पुनः उपनयन होगा तब ही वे पुनः द्विजत्व को प्राप्त होगे अन्यथा द्विजाधिकारी के सभी वैदिककर्मों का अनधिकार हो जायगा* --
#सन्ध्यातिक्रमणं_यस्य_सप्तरात्रमपिच्युतम्। #उन्माददोषयुक्तोपि_पुनः_संस्कार_मर्हति।।शौनकः।।
विस्तार से समजिये -- कोई सामवेदी कौथुमीशाखा का है तो उन्हे कौथुमीशाखा की, कोई यजुर्वेदीय माध्यंदिनी शाखा का हैं तो उन्हें माध्यंदिनी की, कोई, ऋग्वेदीय शाकलशाखा का हैं तो उन्हें शाकलशाखा की, कोई अथर्वर्वेदी पिप्पलादशाखा का हैं तो उन्हें पिप्पलादशाखा की ही सन्ध्योपासना करनी चाहिये - अन्य शाखा की नहीं । नहीं तो सिधा पतन निश्चित हैं।
*साभार पुलकित शास्त्रीजी*
*वैदिक ब्राह्मण ग्रुप गुजरात*🙏🙏🙏🙏
(१)आर्यसमाजी (संकीर्णवर्णसंकर)की तरह उनकी मिश्र सन्ध्योपासना पद्धति न विधाक्रम न शाखा का कोई ठीकाना-- द्विजों के लिये अनुपयुक्त हैं।
(२)गायत्रीपरिवार की (मिश्र // शाखारंडदोषयुक्त--- सभी वेदशाखा के द्विज के लिये उपयुक्त नहीं)
(३)स्वाध्यायपरिवार पांडुरंग आठवले (माधवबाग मुंबई)वालो की त्रिकालसंध्या -- अज्ञानीयो ! यह दैनिक प्रार्थना के मंत्र हैं सन्ध्योपासना की विधा नहीं-- और ये मंत्रों में भी सभी वर्ण का सभी मंत्रों में अधिकार नहीं हैं।।
द्विज होकर भी यदि ये सन्ध्योपासना कर रहे हैं तो निश्चित ही पतित हैं। पुनः(फिरसे)जनेऊ के बिना इनकी शुद्धि नहीं हैं।।
*#स्वशाखीय सन्ध्योपासना का महत्व हैं -- परशाखीय या कपोलकल्पित का नहीं -->*
#स्वसूत्रोक्तविधानेन_सन्ध्यावन्दनमाचरेत्। #अन्यथा_यस्तु_कुरुते_आसुरीं_तनुमाप्नुयात्।। विश्वामित्र संहिता।।
*अपने गोत्र के वेद-शाखानुसार ही सन्ध्योपासना करें।सातदिन स्वशाखीय-नित्यसन्ध्योपासनात्याग करने मात्र से द्विज द्विजत्व से पतित हो जाता हैं उनका प्रायश्चित्त पूर्वक पुनः उपनयन होगा तब ही वे पुनः द्विजत्व को प्राप्त होगे अन्यथा द्विजाधिकारी के सभी वैदिककर्मों का अनधिकार हो जायगा* --
#सन्ध्यातिक्रमणं_यस्य_सप्तरात्रमपिच्युतम्। #उन्माददोषयुक्तोपि_पुनः_संस्कार_मर्हति।।शौनकः।।
विस्तार से समजिये -- कोई सामवेदी कौथुमीशाखा का है तो उन्हे कौथुमीशाखा की, कोई यजुर्वेदीय माध्यंदिनी शाखा का हैं तो उन्हें माध्यंदिनी की, कोई, ऋग्वेदीय शाकलशाखा का हैं तो उन्हें शाकलशाखा की, कोई अथर्वर्वेदी पिप्पलादशाखा का हैं तो उन्हें पिप्पलादशाखा की ही सन्ध्योपासना करनी चाहिये - अन्य शाखा की नहीं । नहीं तो सिधा पतन निश्चित हैं।
*साभार पुलकित शास्त्रीजी*
*वैदिक ब्राह्मण ग्रुप गुजरात*🙏🙏🙏🙏