काम, क्रोध और लोभ आत्मा का नाश करने वाले तीन घोर शत्रू है इन तीनों में से क्रोध सबसे भयानक है। यह बडी बुरी बला है और सभी बुराईयों और लडाईयों का घर है। क्रोध उस बारूद के समान है, जो दूसरों का नाश करने से पूर्व जिसमें यह रहता है उसे ही भस्म कर देता है। क्रोध की अग्नि भी दूसरों को जलाने से पहले जहां उत्पन्न होती है उसे ही जलाती है। क्रोध दूसरों को हानि पहुंचाने से पूर्व क्रोध करने वाले को ही जलाता है और कुरूप बना देता है। क्रोध से आंखे लाल हो जाती हैं, चेहरा भयंकर और विकराल हो जाता है। यह शरीर को जलाता है, हृदय को तपाता है, रक्त संचार को अनियमित कर देता है, व्याकुलता बढाता है, वाणी को कठोर कर्कश बनाता है और धर्म को छुडाता है। क्रोध से मनुष्य का धैर्य, विद्या, ज्ञान, विवेक सबका नाश हो जाता है ।
क्रोध अहंकार से उपजता है, मूढता से बढता है और पश्चाताप पर समाप्त होता है। यह मन में बुरे विचारों और भावों को जन्म देता है जिसके फलस्वरुप द्वेष, घृणा, वैमनस्य, प्रतिकार, दुख, अभिमान आदि उत्पन्न होते हैं। क्रोध में मनुष्य माता, पिता, आचार्य, संबंधियों आदि का भी अपमान कर बैठता है। क्रोधी मनुष्य दूसरों को दुखी करता है या नहीं पर स्वयं अंदर ही अंदर जलता रहता है। इस भयंकर रोग से शारीरिक, मानसिक, आत्मिक हर प्रकार की अवनति होती है ।
क्रोध के साथ यदि विवेक का अंकुश भी रहे तो यह एक रामबाण औषधि का काम करता है, जिस प्रकार बहुत से रोगों के उपचार में संखियां तक दी जाती हैं। परिवार के सदस्यों, सहयोगियों तथा अधीनस्थों को सुधारने के लिए और बिगाड़ से बचाने के लिए क्रोध के विवेकपूर्ण प्रदर्शन की आवश्यकता होती है। दंड और प्रताडना का भी उपयोग करना पडता है। यदि इस स्थिति का त्याग कर दिया जाए तो फिर मां, बाप, अध्यापक, अधिकारी आदि अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकेंगे। क्रोध का विवेकपूर्ण और व्यवहारिक प्रदर्शन वास्तव में प्रेम भाव का ही एक रूप है और इसके प्रयोग में बहुत संयम बरतना होता है। क्रोध केवल दूसरों को आत्म सुधार की प्रेरणा देने के एक सशक्त साधन के रूप में ही प्रयुक्त होना चाहिए ।
क्रोध निवारण के अनेक उपाय हैं। मौन धारण करके मन ही मन गायत्री मंत्र का जाप करने से क्रोध के विषय से ध्यान हट जाता है और वह शांत हो जाता है। यदि किसी की गलती पर क्रोध आए तो यह भी ध्यान करना चाहिए कि ऐसी गलती हम से भी हो सकती है। इस प्रकार विवेकानुसार विचार करने से क्रोध का वेग कम हो जाता है और बार बार के अभ्यास से अंततः उस पर विजय पाई जा सकती है। धैर्य और क्षमा का अभ्यास क्रोध निवारण के सर्वोत्तम उपाय हैं। धैर्य उसे शांत कर देता है और क्षमा तो समूल नष्ट कर देती है ।