तुम नहीं जानती, तुम क्या हो,
मगर मेरे लिए, तुम ही इबादत हो।
तुम ही मेरी मंज़िल, तुम ही आसमाँ हो,
हर गजरे का आशियाना तेरा गेसूआ हो।
तुम ही सावन की पहली फुहार,
तुम ही पतझड़ की आख़िरी सदा हो।
तुम ही तीर्थ-यात्रा, तुम ही से कबा हो,
तुमसे ही सज्दा, तुमसे ही पूजा ।
तुम ही दीपक की जलती लौ,
तुम ही हर हसरत, तमन्ना हो।
ये लहू मेरा जो यूँ बेपरवाह बहता है,
तेरे माथे का सिन्दूर बन सजा हो।
तुम ही सर्द रात, तुम ही धूप-ए-सहर,
काजल-काजल तेरी आँखों में बिछा हो।
एक हसीन चेहरा, जो कतरा आँसू न बहाए,
तुम ही बीता हुआ लम्हा, तुम ही आने वाला कल हो।
तुम ही अधूरी कहानी, तुम ही मुकम्मल ग़ज़ल हो।
~केशव
मगर मेरे लिए, तुम ही इबादत हो।
तुम ही मेरी मंज़िल, तुम ही आसमाँ हो,
हर गजरे का आशियाना तेरा गेसूआ हो।
तुम ही सावन की पहली फुहार,
तुम ही पतझड़ की आख़िरी सदा हो।
तुम ही तीर्थ-यात्रा, तुम ही से कबा हो,
तुमसे ही सज्दा, तुमसे ही पूजा ।
तुम ही दीपक की जलती लौ,
तुम ही हर हसरत, तमन्ना हो।
ये लहू मेरा जो यूँ बेपरवाह बहता है,
तेरे माथे का सिन्दूर बन सजा हो।
तुम ही सर्द रात, तुम ही धूप-ए-सहर,
काजल-काजल तेरी आँखों में बिछा हो।
एक हसीन चेहरा, जो कतरा आँसू न बहाए,
तुम ही बीता हुआ लम्हा, तुम ही आने वाला कल हो।
तुम ही अधूरी कहानी, तुम ही मुकम्मल ग़ज़ल हो।
~केशव