महाभारत में ब्रह्मचर्य पर प्रमुख श्लोक एवं उनके अर्थ -१. महाभारत (शांतिपर्व 12.174.3)
श्लोक: "ब्रह्मचर्यं परमं तपः।"
अर्थ: ब्रह्मचर्य ही परम तपस्या है।
२. महाभारत (शांतिपर्व 12.246.17)
श्लोक: "ब्रह्मचर्येण यत्तेजो न हि तत्सूर्यतापितम्।"
अर्थ: ब्रह्मचर्य से उत्पन्न तेज इतना दिव्य होता है कि सूर्य की गर्मी भी उसे क्षीण नहीं कर सकती।
३. महाभारत (शांतिपर्व 12.174.3)
श्लोक: "ब्रह्मचर्यं परमं धर्मं ब्रह्मचर्येण तप्यते।
ब्रह्मचर्येण लोका हि स्थीयन्ते सर्व एव हि॥"
अर्थ: ब्रह्मचर्य परम धर्म है। इसी के द्वारा तपस्या सिद्ध होती है। संपूर्ण लोक ब्रह्मचर्य के प्रभाव से ही स्थिर रहते हैं।
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