ब्रह्मचर्य


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ब्रह्मचर्य ही जीवन है 🙏🏻
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"ब्रह्मचर्यं परमं तेजः" (महाभारत, शांतिपर्व)
अर्थ: ब्रह्मचर्य ही परम तेज है।


✨ शक्ति और दीर्घायु का आधार
✨ एकाग्रता और आत्मविश्वास का स्रोत
✨ मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग

संयम अपनाओ, जीवन महान बनाओ 🔥






8.3.2025
प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन सुख पूर्वक जीना चाहता है। यह सही बात है। सुख पूर्वक ही जीवन जीना चाहिए। परंतु वह जानता नहीं, कि *"मैं सुखपूर्वक जीवन कैसे जी पाऊंगा? सही ज्ञान के अभाव में वह अपनी मनमानी से अपना जीवन जीना चाहता है। अथवा जैसे संसार के लोग झूठ छल कपट चोरी बेईमानी रिश्वतखोरी इत्यादि पाप कर्म करते हैं, उन्हें देखकर व्यक्ति उनकी नकल करने लगता है।" "लोग ऐसे पाप कर्म करके भले ही धन कुछ अधिक कमा लें, परंतु वे सुखी तो नहीं हैं। वे सदा तनाव में रहते हैं। उनके जीवन में शांति आनंद निर्भयता तृप्ति संतोष नहीं है।" इस बात को वह नहीं देखता। इसका परिणाम यह होता है कि "उनकी नकल करने वाला व्यक्ति भी जीवन में अशांत दुखी और तनाव युक्त रहता है।"*
वेद आदि शास्त्रों में बताया है, कि *"यदि आप सुख शांतिपूर्वक जीवन जीना चाहते हों, तो अपने कर्मों को शुद्ध करें। कर्मों को आप शुद्ध तब कर पाएंगे, जब आपका मन शुद्ध हो। आपके विचार शुद्ध हों। तो अपने मन की शुद्धि के लिए जो आपके अंदर काम क्रोध लोभ ईर्ष्या द्वेष अविद्या अभिमान आदि दोष हैं, उन्हें दूर करें।" "यही अशुद्धि आपके मन को दूषित करती है। आपके विचारों को दूषित करती है। इसी अशुद्धि के कारण आप बुरे काम करते हैं। जिसका परिणाम आपके जीवन में दुख और अशांति होता है।"*
*"जैसे बर्तन को बाहर से कम साफ करना पड़ता है, लेकिन अंदर से अधिक साफ करना पड़ता है, तब वह ठीक प्रकार से शुद्ध होता है।" "ऐसे ही बाहर से अपने शरीर की शुद्धि पर भी ध्यान देवें। उसका निषेध नहीं है। परंतु उसके साथ साथ अपने मन की शुद्धि करने में अधिक परिश्रम करें। वह अधिक महत्वपूर्ण है। तभी आपके कर्म शुद्ध होंगे और आपका जीवन सुख-शांति मय बन पाएगा, अन्यथा नहीं।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*






अधिक ब्रह्मचर्य का पालन करने से जो सुख और आनंद मिलता है, वह ब्रह्मचर्य को न करने से स्वप्न में भी प्राप्त नहीं होता।




महाभारत में ब्रह्मचर्य पर प्रमुख श्लोक एवं उनके अर्थ -

१. महाभारत (शांतिपर्व 12.174.3)

श्लोक: "ब्रह्मचर्यं परमं तपः।"

अर्थ: ब्रह्मचर्य ही परम तपस्या है।

२. महाभारत (शांतिपर्व 12.246.17)

श्लोक: "ब्रह्मचर्येण यत्तेजो न हि तत्सूर्यतापितम्।"

अर्थ: ब्रह्मचर्य से उत्पन्न तेज इतना दिव्य होता है कि सूर्य की गर्मी भी उसे क्षीण नहीं कर सकती।

३. महाभारत (शांतिपर्व 12.174.3)

श्लोक: "ब्रह्मचर्यं परमं धर्मं ब्रह्मचर्येण तप्यते।
ब्रह्मचर्येण लोका हि स्थीयन्ते सर्व एव हि॥"

अर्थ: ब्रह्मचर्य परम धर्म है। इसी के द्वारा तपस्या सिद्ध होती है। संपूर्ण लोक ब्रह्मचर्य के प्रभाव से ही स्थिर रहते हैं।

@Brahmacharyalife






"युवास्य सत्यमुप सीदति तपः स ब्रह्मचार्यग्निमनिन्द्यानि च।"
ऋग्वेद (10.136.2)


जो युवा तप और ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह सत्य के समीप पहुँचता है। उसका जीवन पवित्र और तेजस्वी बनता है।

"ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुपाघ्नत।"
यजुर्वेद (19.30)


देवताओं ने ब्रह्मचर्य और तप के बल पर मृत्यु पर विजय प्राप्त की। जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह दीर्घायु, तेजस्वी और शक्तिशाली बनता है।


"ब्रह्मचर्येण कन्या युवानं विन्दते पतिम्।"
अथर्ववेद (11.5.17)


ब्रह्मचर्य के पालन से स्त्री-पुरुष दोनों अपने जीवन में श्रेष्ठता प्राप्त करते हैं। यह आत्मसंयम, पवित्रता और सफलता का मार्ग है।


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🙏🏻भगवान शिव की दृष्टि में धर्म 🚩


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