जिसको अष्टसिद्धि कहते हैं अर्थात् अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशिता और वशिता प्राप्त करता है अब इन आठों सिद्धि के लक्षण कहते हैं योगीका शरीर इच्छामात्रसे परमाणुवत् हे।जाय उस- को अणिमा कहते हैं और योगी इच्छापूर्वक प्रकृति- को अपनेमें करके आकाशवत् स्थूल होजाय उसको महिमा कहते हैं और अति हलके शरीरका पर्वतके समान भारी होजाना उसको गरिमा कहते हैं और बहुत भारी पर्वतके समानको रुईके सदृश होजाना इसको लघिमा कहते हैं और सर्व पदार्थ इच्छामात्रसे योगीके समीप होजाय उसको प्राप्ति कहते हैं और दृझ्यादृश्य अर्थात् कभी देख पडे कभी न देखपडे इसको प्राकाम्य कहतेहैं और भूत भविष्य पदार्थको • जन्म मरणकी रचना करनेमें समर्थ होय उसको ईशि- ता कहते हैं और भूत भविष्य वर्तमान पदार्थको इच्छा से अपने आधीन करलेना इसको वशित्वसिद्धि कहते हैं और योगी पाप पुण्यके समुद्रको तरके अपनी इच्छा पूर्वक त्रैलोक्यमें विचरताहै ॥ ६१ ॥
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