विशेष योग
(१) बन्धु पूज्य योग- चौथे भाव या चौथे भाव के स्वामी को गुरु
देखता हो तो यह योग होता है। यह योग होने से जातक अपने कुटुम्ब एवं भाइयों में आदर प्राप्त करता है।
(२) रवि योग-दशम् भाव में सूर्य हो और दशम भाव का स्वामी ति के साथ तीसरे भाव में हो तो रवियोग होता है। जिस जातक की कृष्ण्डली में ऐसा योग होता है, वह नौकरी में उच्च पद प्राप्त करता है और सफल वैज्ञानिक होता है। जीवन के १५वें साल के बाद वह प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
(३) चन्द्र योग- समस्त ग्रह यदि लग्न ३, ५, ७, ६ और ११वें भाव में हों तो चन्द्र योग होता है। इस प्रकार के योग वाला व्यक्ति महान भूमिपति होता है, नौकरों पर उसकी आज्ञा चलती है और आर्थिक दृष्टि से अटूट सम्पत्ति का मालिक होता है।
(४) भातृ मूल धन प्राप्ति योग लग्नेश और द्वितीयेश यदि ती भाव में हों तो उपर्युक्त योग बनता है। इस प्रकार का योग स बाला जातक भाइयों से पूर्ण सहायता प्राप्त करता तथा उसके जी को ऊँचा उठाने में भाइयों का पूर्ण सहयोग मिलता है।
(५) भ्रातृवर्धन योग तृतीयेश या मंगल या तीसरा भाव सा ग्रहों से युक्त हो या दृष्ट हों तो उपर्युक्त योग बनता है। जिस कुष में यह योग होता है, उसे भाइयों का पूर्ण सुख प्राप्त होता है तथा भ द्वारा कमाया हुआ घन वह भोगता है।
(६) सोबरनाशा योग- तृतीयेश और मंगल आदि आठवें भार हों तो ऐसा योग बनता है। यह योग रखने वाला व्यक्ति भाइयों लाभ नहीं उठाता और उसकी आँत्रों के सामने समस्त भाइयों का क्षय जाता है।
(७) इक भगनी योग बुध, मंगल और तृतीयेश तीनों तीसरे भ में हों तो यह योग बनता है। जिस कुण्डली में यह योग होता है स एक ही बहन होती है।
(=) द्वादश सहोदर योग- यदि तृतीयेश केन्द्र में हो तथा से एवं गुरु त्रिकोण में बैठकर इनमें से कोई एक तृतीयेश को देखता हो उपर्युक्त योग होता है, जिस जातक की कुण्डली में यह योग होता उसके कुल बारह भाई-बहिन होते हैं।
(६) सप्त संख्य सहोदर योग द्वादशेश और भौम साथ में बैठे। तथा चन्द्र गुरु तृतीय भाव में हों एवं शुक्र द्वारा दृष्ट हों तो उपर्यु योग बनता है। जिस जातक की कुण्डली में यह योग होता है, उसे ही भाइयों का सहयोग प्राप्त होता है।
(१०) पराक्रम योग तृतीयेश कारक ग्रह के साथ हो तथा उच्च राशि या स्वराशि में हो तो पराक्रम योग बनता है। इस योग रखने वाला जातक सैनिक होता है तथा युद्ध में पूर्ण विजय दिखाकर लाभ करता है।
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(१) बन्धु पूज्य योग- चौथे भाव या चौथे भाव के स्वामी को गुरु
देखता हो तो यह योग होता है। यह योग होने से जातक अपने कुटुम्ब एवं भाइयों में आदर प्राप्त करता है।
(२) रवि योग-दशम् भाव में सूर्य हो और दशम भाव का स्वामी ति के साथ तीसरे भाव में हो तो रवियोग होता है। जिस जातक की कृष्ण्डली में ऐसा योग होता है, वह नौकरी में उच्च पद प्राप्त करता है और सफल वैज्ञानिक होता है। जीवन के १५वें साल के बाद वह प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
(३) चन्द्र योग- समस्त ग्रह यदि लग्न ३, ५, ७, ६ और ११वें भाव में हों तो चन्द्र योग होता है। इस प्रकार के योग वाला व्यक्ति महान भूमिपति होता है, नौकरों पर उसकी आज्ञा चलती है और आर्थिक दृष्टि से अटूट सम्पत्ति का मालिक होता है।
(४) भातृ मूल धन प्राप्ति योग लग्नेश और द्वितीयेश यदि ती भाव में हों तो उपर्युक्त योग बनता है। इस प्रकार का योग स बाला जातक भाइयों से पूर्ण सहायता प्राप्त करता तथा उसके जी को ऊँचा उठाने में भाइयों का पूर्ण सहयोग मिलता है।
(५) भ्रातृवर्धन योग तृतीयेश या मंगल या तीसरा भाव सा ग्रहों से युक्त हो या दृष्ट हों तो उपर्युक्त योग बनता है। जिस कुष में यह योग होता है, उसे भाइयों का पूर्ण सुख प्राप्त होता है तथा भ द्वारा कमाया हुआ घन वह भोगता है।
(६) सोबरनाशा योग- तृतीयेश और मंगल आदि आठवें भार हों तो ऐसा योग बनता है। यह योग रखने वाला व्यक्ति भाइयों लाभ नहीं उठाता और उसकी आँत्रों के सामने समस्त भाइयों का क्षय जाता है।
(७) इक भगनी योग बुध, मंगल और तृतीयेश तीनों तीसरे भ में हों तो यह योग बनता है। जिस कुण्डली में यह योग होता है स एक ही बहन होती है।
(=) द्वादश सहोदर योग- यदि तृतीयेश केन्द्र में हो तथा से एवं गुरु त्रिकोण में बैठकर इनमें से कोई एक तृतीयेश को देखता हो उपर्युक्त योग होता है, जिस जातक की कुण्डली में यह योग होता उसके कुल बारह भाई-बहिन होते हैं।
(६) सप्त संख्य सहोदर योग द्वादशेश और भौम साथ में बैठे। तथा चन्द्र गुरु तृतीय भाव में हों एवं शुक्र द्वारा दृष्ट हों तो उपर्यु योग बनता है। जिस जातक की कुण्डली में यह योग होता है, उसे ही भाइयों का सहयोग प्राप्त होता है।
(१०) पराक्रम योग तृतीयेश कारक ग्रह के साथ हो तथा उच्च राशि या स्वराशि में हो तो पराक्रम योग बनता है। इस योग रखने वाला जातक सैनिक होता है तथा युद्ध में पूर्ण विजय दिखाकर लाभ करता है।
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