शीतकारी कुंभक
शांतिपूर्वक सीधे बैठकर होठों को काक-चोंच वृत्ति बनाकर श्वास खींचो और फिर मुँह बंद कर लो एवं हवा को इस प्रकार गले से नीचे उतारो जैसे कि पानी के घूँट पीते हैं। थोड़ी देर बाद श्वास को धीरे-धीरे नाक द्वारा निकाल दो। इस क्रिया को प्रातः, सायं या रात्रि को करना चाहिए। एक समय में पाँच-सात बार करना पर्याप्त होगा। इससे रक्त की शुद्धि होती है, शूल तथा पेट की अन्य बीमारियों के लिए यह क्रिया लाभदायक है। सारांश यह है कि सरल क्रिया होते हुए भी इसका लाभ बहुत अधिक है। हाँ, अशुद्ध स्थान में अथवा भोजन के तीन-चार घंटे उपरांत तक यह क्रिया न की जाए।
• शीतल कुंभक
सीधे पालथी मारकर (पद्मासन उत्तम) है। उस ओर मुँह करके बैठो, जिस ओर शुद्ध वायु का प्रवाह हो और ओठों को इस प्रकार आगे बढ़ाओ जैसे सीटी बजाते समय बढ़ाया जाता है और मुँह बंद करके नथुनों से श्वास खींचो। इससे रक्त शुद्ध होता है। दिन भर में तीन बार यह क्रिया की जाए, किंतु एक बार १० मिनट से अधिक न हो।
#yog #swar #vigyan #kumbhak #td #aayurveda
शांतिपूर्वक सीधे बैठकर होठों को काक-चोंच वृत्ति बनाकर श्वास खींचो और फिर मुँह बंद कर लो एवं हवा को इस प्रकार गले से नीचे उतारो जैसे कि पानी के घूँट पीते हैं। थोड़ी देर बाद श्वास को धीरे-धीरे नाक द्वारा निकाल दो। इस क्रिया को प्रातः, सायं या रात्रि को करना चाहिए। एक समय में पाँच-सात बार करना पर्याप्त होगा। इससे रक्त की शुद्धि होती है, शूल तथा पेट की अन्य बीमारियों के लिए यह क्रिया लाभदायक है। सारांश यह है कि सरल क्रिया होते हुए भी इसका लाभ बहुत अधिक है। हाँ, अशुद्ध स्थान में अथवा भोजन के तीन-चार घंटे उपरांत तक यह क्रिया न की जाए।
• शीतल कुंभक
सीधे पालथी मारकर (पद्मासन उत्तम) है। उस ओर मुँह करके बैठो, जिस ओर शुद्ध वायु का प्रवाह हो और ओठों को इस प्रकार आगे बढ़ाओ जैसे सीटी बजाते समय बढ़ाया जाता है और मुँह बंद करके नथुनों से श्वास खींचो। इससे रक्त शुद्ध होता है। दिन भर में तीन बार यह क्रिया की जाए, किंतु एक बार १० मिनट से अधिक न हो।
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