रत्नों में ग्रहों की रश्मियों, रंगों, चुम्बकत्व की शक्ति होती है। रत्न व्यक्ति के भाग्य को शिखर तक पहुंचा सकता है। रत्न के अनुकूल प्रभाव को पाने के लिए उचित प्रकार से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए। ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए। रत्न धारण करते समय ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा का भी ख्याल रखना चाहिए। रत्न पहनते समय मात्रा का ख्याल रखना आवश्यक होता है अगर मात्रा सही नहीं हो तो फल प्राप्ति में विलम्ब होता है। इसलिए रत्न धारण करते समय यह विचार अवश्य कर लेना चाहिए कि जिस रत्न को धारण करने जा रहे हैं।
वह अपने से सम्बन्धित ग्रह की शक्ति को आकर्षित करने एवं परावर्तित करने की क्षमता रखता है। इसी प्रकार शुभ ग्रहों के अशुभ के शुभत्व पूर्ण रश्मियों को आकर्षित करके ग्रह की शक्ति बढ़कर भाग्य को चमका सकती है।
रत्न ग्रह को बली करने के लिए पहनाया जाता है। किसी ग्रह से संबंधित पीड़ा हरने के लिए, अन्यथा जिस ग्रह की दशा या अंर्तदशा चल रही हो, उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए।
लेकिन यह आवश्यक है कि वह ग्रह जातक की कुंडली में योगकारक हो, मारक न हो। अष्टमेश यदि लग्नेश न हो, तो सर्वदा त्याज्य ही है। योगकारक ग्रह यदि निर्बल हो, तो रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।
ग्रहों में व्यक्ति के सृजन एवं संहार की जितनी प्रबल शक्ति है उतनी ही शक्ति रत्नों में ग्रहों की शक्ति घटाने तथा बढ़ाने की होती है। वैज्ञानिक भाषा में रत्नों की इस शक्ति को हम आकर्षण या विकर्षण शक्ति कहते हैं। रत्नों में अपने से संबंधित ग्रहों की रश्मियों, चुम्बकत्व शक्ति तथा वाइब्रेशन (कम्पन) को खींचने की शक्ति होती है तथा परावर्तित कर देने की भी शक्ति होती है।
रत्न की इसी शक्ति के उपयोग के लिए इन्हें प्रयोग में लाया जाता है। हम जिस भौतिक युग में जी रहे हैं, वहां व्यक्ति जल्दी प्रगति की सीढ़ियां चढ़ना चाहता है। इसलिए वह रत्न, ज्योतिष एवं मंत्र का सहारा लेता है।
#ratna
वह अपने से सम्बन्धित ग्रह की शक्ति को आकर्षित करने एवं परावर्तित करने की क्षमता रखता है। इसी प्रकार शुभ ग्रहों के अशुभ के शुभत्व पूर्ण रश्मियों को आकर्षित करके ग्रह की शक्ति बढ़कर भाग्य को चमका सकती है।
रत्न ग्रह को बली करने के लिए पहनाया जाता है। किसी ग्रह से संबंधित पीड़ा हरने के लिए, अन्यथा जिस ग्रह की दशा या अंर्तदशा चल रही हो, उस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए।
लेकिन यह आवश्यक है कि वह ग्रह जातक की कुंडली में योगकारक हो, मारक न हो। अष्टमेश यदि लग्नेश न हो, तो सर्वदा त्याज्य ही है। योगकारक ग्रह यदि निर्बल हो, तो रत्न अवश्य धारण करना चाहिए।
ग्रहों में व्यक्ति के सृजन एवं संहार की जितनी प्रबल शक्ति है उतनी ही शक्ति रत्नों में ग्रहों की शक्ति घटाने तथा बढ़ाने की होती है। वैज्ञानिक भाषा में रत्नों की इस शक्ति को हम आकर्षण या विकर्षण शक्ति कहते हैं। रत्नों में अपने से संबंधित ग्रहों की रश्मियों, चुम्बकत्व शक्ति तथा वाइब्रेशन (कम्पन) को खींचने की शक्ति होती है तथा परावर्तित कर देने की भी शक्ति होती है।
रत्न की इसी शक्ति के उपयोग के लिए इन्हें प्रयोग में लाया जाता है। हम जिस भौतिक युग में जी रहे हैं, वहां व्यक्ति जल्दी प्रगति की सीढ़ियां चढ़ना चाहता है। इसलिए वह रत्न, ज्योतिष एवं मंत्र का सहारा लेता है।
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