गार्हस्थ्य ब्रह्मचर्यःश्री मनु महाराज ने गृहस्थाश्रम में ब्रह्मचर्य की व्याख्या इस प्रकार की हैःऋतुः स्वाभाविकः स्त्रीणां रात्रयः षोडश स्मृताः।
चतुर्भिरितरैः सार्द्धं अहोभिः सद्धिगर्हिते।।
अपनी धर्मपत्नी के साथ केवल ऋतुकाल में समागम करना, इसे गार्हस्थ्य ब्रह्मचर्य् कहते हैं।
रजोदर्शन के प्रथम दिन से सोलहवें दिन तक ऋतुकाल माना जाता है। इसमें मासिक धर्म की चार रात्रियाँ तथा ग्यारहवीं व तेरहवीं रात्रि निषिद्ध है। शेष दस रात्रियों में से दो सुयोग्य रात्रियों में स्वस्त्री-गमन करने वाला व्यक्ति गृहस्थ ब्रह्मचारी है।